ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 31/ मन्त्र 1
ऋषि: - मनुर्वैवस्वतः
देवता - ईज्यास्तवो यजमानप्रशंसा च
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
यो यजा॑ति॒ यजा॑त॒ इत्सु॒नव॑च्च॒ पचा॑ति च । ब्र॒ह्मेदिन्द्र॑स्य चाकनत् ॥
स्वर सहित पद पाठयः । यजा॑ति । यजा॑ते । इत् । सु॒नव॑त् । च॒ । पचा॑ति । च॒ । ब्र॒ह्मा । इत् । इन्द्र॑स्य । चा॒क॒न॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो यजाति यजात इत्सुनवच्च पचाति च । ब्रह्मेदिन्द्रस्य चाकनत् ॥
स्वर रहित पद पाठयः । यजाति । यजाते । इत् । सुनवत् । च । पचाति । च । ब्रह्मा । इत् । इन्द्रस्य । चाकनत् ॥ ८.३१.१
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 31; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 38; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 38; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
English (1)
Meaning
The yajamana who performs yajna himself or has yajna performed by a priest, presses and prepares the soma himself or has it prepared through a priest pleases Indra and obtains the knowledge of Divinity and Veda.
मराठी (1)
भावार्थ
कर्मशील व्यक्तीलाच ईश्वर प्रेम करतो ॥१॥
हिन्दी (1)
पदार्थ
(यः) जो आदमी (यजाति) स्वयं दान-आदान युक्त सत्कर्म करता है (इत्) और (यजाते) यज्ञ करता है; (च) तथा (सुनवत्) किसी पदार्थ आदि का निष्पन्न कर्ता है (च) और (पचाति) पका कर संस्कार करता है उस (इन्द्रस्य) कर्मशक्ति सम्पन्न को (ब्रह्मा इत्) महान् प्रभु भी (चाकनत्) चाहता है ॥१॥
भावार्थ
जो व्यक्ति कर्मठ है उसी से परमात्मा प्यार किशोर। ??
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