ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 31/ मन्त्र 11
ऋषिः - मनुर्वैवस्वतः
देवता - दम्पत्योराशिषः
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ऐतु॑ पू॒षा र॒यिर्भग॑: स्व॒स्ति स॑र्व॒धात॑मः । उ॒रुरध्वा॑ स्व॒स्तये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआ । ए॒तु॒ । पू॒षा । र॒यिः । भगः॑ । स्व॒स्ति । स॒र्व॒ऽधात॑मः । उ॒रुः । अध्वा॑ । स्व॒स्तये॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऐतु पूषा रयिर्भग: स्वस्ति सर्वधातमः । उरुरध्वा स्वस्तये ॥
स्वर रहित पद पाठआ । एतु । पूषा । रयिः । भगः । स्वस्ति । सर्वऽधातमः । उरुः । अध्वा । स्वस्तये ॥ ८.३१.११
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 31; मन्त्र » 11
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 40; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 40; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Come Pusha, lord of health and nurture, Bhaga, gracious lord of wealth and power, wielder and controller of all power and prosperity for happiness and well being, and may our path of progress be wide open for all round happiness and well being.
मराठी (1)
भावार्थ
पोषणकर्ता परमात्मा सर्वांना कर्मानुसार फळ देतो. ॥११॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
सर्वं पुष्णाति दधातीति पूषा परमात्मा, ऐतु अस्मान् उपासकान् प्रति आगच्छतु । कीदृशः । रयिः । राति जीवेभ्यः स्वस्वकर्मानुसारेण फलानि ददातीति रयिः परमदाता । पुनः । भगो भजनीयः सेवनीयः । पुनः सर्वधातमः सर्वेषां धातृतमः । आधारेण सर्वपदार्थानां धारयितृतमः । ईदृक् सः । स्वस्ति कल्याणं करोतु । तस्मिन् आगते । अस्माकम् । स्वस्तये कल्याणाय अध्वा गमनमार्गः । उरु विस्तीर्णो निरुपद्रवो भवतु ॥११ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
(रयिः) सब जीवों को स्वस्वकर्मानुसार फल देनेवाला (भगः) सब का सेव्य तथा (सर्वधातमः) अपने आधार से सब पदार्थ को धारण करनेवाला (पूषा) पोषणकर्ता परमात्मा (स्वस्ति) कल्याण के साथ (ऐतु) हम उपासकों के निकट आवे । उसके आने के पश्चात् (अध्वा) हम लोगों का मार्ग (स्वस्तये) कल्याण के लिये (उरुः) विस्तीर्ण होवे ॥११ ॥
विषय
पूषा परमेश्वर से प्रार्थना।
भावार्थ
( स्वस्तये ) सुख, कल्याण की वृद्धि के लिये, ( पूषा ) सर्वपोषक स्वामी, वा भूमि हमें ( आ-एतु ) प्राप्त हो ( सर्व-धातमः ) सबको उत्तम रीति से पालन पोषण करने में समर्थ ( रयिः ) ऐश्वर्य, ( भगः ) सम्पदा और ( उरु: अध्वा ) बड़ा मार्ग प्राप्त हो। ( २ ) परमेश्वर पोषक होने से 'पूषा', ऐश्वर्यवान् सेवनीय होने से रयि और भग है। वही महान् प्राप्तव्य होने से 'उरु अध्वा' है। वह हमें सुख-कल्याणकारक हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मनुर्वैवस्वत ऋषिः॥ १—४ इज्यास्तवो यजमानप्रशंसा च। ५—९ दम्पती। १०—१८ दम्पत्योराशिषो देवताः॥ छन्दः—१, ३, ५, ७, १२ गायत्री। २, ४, ६, ८ निचृद् गायत्री। ११, १३ विराड् गायत्री। १० पादनिचृद् गायत्री। ९ अनुष्टुप्। १४ विराडनुष्टुप्। १५—१७ विराट् पंक्तिः। १८ आर्ची भुरिक् पंक्तिः॥
विषय
विशाल मार्ग
पदार्थ
[१] (रयिः) = धनों का देनेवाला, (भगः) = भजनीय, (सर्वधातमः) = सबका धारण करनेवाला (पूषा) = पोषक देव (आ एतु) = हमें सर्वथा प्राप्त हो और (स्वस्त) = हमारा कल्याण हो। [२] (उरुः अध्वा) = विशाल मार्ग (स्वस्तये) = हमारे अविनाश के लिये हो। हम संकुचित मार्ग से न चलते हुए विशाल मार्ग से चलें।
भावार्थ
भावार्थ- हमें पोषक प्रभु प्राप्त हों। उनके प्राप्त होने पर हम सदा विशाल मार्ग का ही आक्रमण करेंगे। यह विशाल मार्ग पर चलना हमारे अविनाश का कारण बनेगा।
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