ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 31/ मन्त्र 13
ऋषिः - मनुर्वैवस्वतः
देवता - दम्पत्योराशिषः
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
यथा॑ नो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा वरु॑ण॒: सन्ति॑ गो॒पाः । सु॒गा ऋ॒तस्य॒ पन्था॑: ॥
स्वर सहित पद पाठयथा॑ । नः॒ । मि॒त्रः । अ॒र्य॒मा । वरु॑णः । सन्ति॑ । गो॒पाः । सु॒ऽगाः । ऋ॒तस्य॑ । पन्थाः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यथा नो मित्रो अर्यमा वरुण: सन्ति गोपाः । सुगा ऋतस्य पन्था: ॥
स्वर रहित पद पाठयथा । नः । मित्रः । अर्यमा । वरुणः । सन्ति । गोपाः । सुऽगाः । ऋतस्य । पन्थाः ॥ ८.३१.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 31; मन्त्र » 13
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 40; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 40; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Since Mitra, lord of love, light and friendship, Aryama, universal guide and path maker, and Varuna, lord of judgement and justice, are our protectors, may our paths of advancement and rectitude be simple, straight and easy.
मराठी (1)
भावार्थ
मित्र इत्यादी नावाद्वारे प्रभू भक्ती केल्यास लक्ष्यप्राप्ती सहजपणे होते. ॥१३॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
वेदेषु बहुभिर्नामभिः परमात्मा गीयते । कस्यांचिदृचि अनेकानि नामानि कीर्त्यन्ते । तत्र नामकृतबहुवचनमपि भवति अतस्तानि खलु पृथग् देवानां नामानि सन्तीति भ्रम एव भाष्यकाराणाम्, तानि ईश्वरनामानि लिङ्गदर्शनात् । मित्रः सर्वैः सह स्नेहकर्ता यो मित्रवाच्य ईशोऽस्ति । अर्य्यमा अर्य्यैर्गृहस्थैः पुरुषैर्मान्यो योऽर्य्यमन् वाच्योऽस्ति । वरुणः सर्वैः स्वीकरणीयो यो वरुणवाच्य ईशः । एते । नोऽस्माकं गोपा रक्षकाः । यथा सन्ति सन्तु तादृशीं सुबुद्धिं अस्मभ्यं दत्त । अपि च यथा अस्माकम् क्रतस्य सत्यस्य पन्थाः पन्थानो मार्गाः । सुगाः । सुगमनाः । सरला भवेयुः, तथा कृपां कुरुत ॥१३ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
वेदों में बहुत नामों से परमात्मा गाया गया है । किसी-२ ऋचा में बहुत नाम आ गए हैं । वहाँ नामकृत बहुवचन भी है । अतः नाम पृथक्-२ देवों के हैं । ऐसा भ्रम भाष्यकारों को हुआ है । वे ईश्वर के ही नाम हैं, क्योंकि उसका चिह्न पाया जाता है । (मित्रः) सबके साथ स्नेहकर्ता जो मित्र-वाच्य परमात्मा है, (अर्य्यमा) गृहस्थ पुरुषों से माननीय जो अर्य्यमा-वाच्य ईश्वर है, (वरुणः) सबका स्वीकरणीय जो वरुण-वाच्य ब्रह्म है, वे (यथा) जिस प्रकार (नः) हम उपासकों के (गोपाः सन्ति) रक्षक होवें । ऐसी सुबुद्धि हम लोगों को देवें और जैसे हम लोगों के (ऋतस्य) सत्य के (पन्थाः) मार्ग (सुगाः) सुगमनीय=सरल होवें, ऐसी कृपा करें ॥१३ ॥
विषय
विद्वानों से प्रार्थना।
भावार्थ
( यथा ) जिस प्रकार ( मित्रः ) स्नेहवान् ( अर्यमा ) न्यायकारी और ( वरुणः ) सर्वश्रेष्ठ, कष्टों के वारक जन ( नः ) हमारे ( गोपाः सन्ति ) रक्षक होते हैं उसी प्रकार ( ऋतस्य ) सत्य, न्याय और वेद का ( पन्थाः ) मार्ग ( सु-गाः ) सुखसे गमन करने योग्य है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मनुर्वैवस्वत ऋषिः॥ १—४ इज्यास्तवो यजमानप्रशंसा च। ५—९ दम्पती। १०—१८ दम्पत्योराशिषो देवताः॥ छन्दः—१, ३, ५, ७, १२ गायत्री। २, ४, ६, ८ निचृद् गायत्री। ११, १३ विराड् गायत्री। १० पादनिचृद् गायत्री। ९ अनुष्टुप्। १४ विराडनुष्टुप्। १५—१७ विराट् पंक्तिः। १८ आर्ची भुरिक् पंक्तिः॥
विषय
स्नेह, संयम, निर्देषता व सत्य
पदार्थ
[१] (यथा) = जिस प्रकार (नः) = हमारे लिये (मित्रः) = स्नेह की देवता, (अर्यमा) = शत्रु नियमन की देवता [ अरीन् यच्छति ] (वरुणः) = निर्देषता का भाव (गोणः) = रक्षक (सन्ति) = हैं, इसी प्रकार (ऋतस्य पन्थाः) = सत्य के मार्ग (सुगाः) = शोभनतया गन्तव्य हैं, कल्याण की ओर ले चलनेवाले हैं। [२] जीवनयात्रा में 'स्नेह, संयम व निर्देषता' का धारण आवश्यक है। यही मार्ग हमारा रक्षण करेगा। सत्य के मार्ग से चलते हुए हम सदा शुभ को प्राप्त होंगे।
भावार्थ
भावार्थ- हमारे जीवनों में 'स्नेह, संयम, निर्देषता व सत्य' हों।
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