ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 10
ऋषिः - शशकर्णः काण्वः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - निचृदार्षीपङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
यद्वां॑ क॒क्षीवाँ॑ उ॒त यद्व्य॑श्व॒ ऋषि॒र्यद्वां॑ दी॒र्घत॑मा जु॒हाव॑ । पृथी॒ यद्वां॑ वै॒न्यः साद॑नेष्वे॒वेदतो॑ अश्विना चेतयेथाम् ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । वा॒म् । क॒क्षीवा॑न् । उ॒त । यत् । विऽअ॑श्वः । ऋषिः॑ । यत् । वा॒म् । दी॒र्घऽत॑माः । जु॒हाव॑ । पृथी॑ । यत् । वा॒म् । वै॒न्यः । सद॑नेषु । ए॒व । इत् । अतः॑ । अ॒श्वि॒ना॒ । चे॒त॒ये॒था॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्वां कक्षीवाँ उत यद्व्यश्व ऋषिर्यद्वां दीर्घतमा जुहाव । पृथी यद्वां वैन्यः सादनेष्वेवेदतो अश्विना चेतयेथाम् ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । वाम् । कक्षीवान् । उत । यत् । विऽअश्वः । ऋषिः । यत् । वाम् । दीर्घऽतमाः । जुहाव । पृथी । यत् । वाम् । वैन्यः । सदनेषु । एव । इत् । अतः । अश्विना । चेतयेथाम् ॥ ८.९.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 10
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(अश्विना) हे सेनाध्यक्षसभाध्यक्षौ ! (यद्, वाम्) यदि युवाम् (कक्षीवान्) रज्जुहस्तो भटः (उत) अथवा (यद्, व्यश्वः, ऋषिः) यदि अश्वरहितः पदातिर्विद्वान् (यद्, वाम्) यदि च युवाम् (दीर्घतमाः) तमःप्रधानः (यद्वाम्) यदि युवाम् (पृथी, वैन्यः) विशालबुद्धिर्विद्वत्पुत्रः (सादनेषु) यज्ञेषु (जुहाव) आह्वयेत् (अतः) इमम् (चेतयेथाम्, एव, इत्) जानीतमेव हि ॥१०॥
विषयः
पुनस्तमेवार्थमाह ।
पदार्थः
हे अश्विना=अश्विनौ पुण्यकृतौ राजानौ । यद्=यथा येन प्रकारेण । कक्षीवान्=जितेन्द्रिय ऋषिः । वाम्=युवाम् । जुहाव=स्तौति । उत=अपि च । यद्=यथा । व्यश्वो=गुणैर्विशेषेण व्यापको विख्यातः कश्चिदृषिः । वाम्=युवाम् । जुहाव=स्तौति । यद्=यथा । दीर्घतमाः=“तमु काङ्क्षायाम्” दीर्घाकाङ्क्षी महाशयोऽभिलाषी कश्चित् स्तौति । यद्=यथा । वैन्यो विज्ञानी । पृथी=प्रथितयशा विख्यातः । वाम्=युवाम् । सादनेषु=सदनेषु=गृहेषु । स्तौति । एवेत्=एवमेव । स्तुवतो मम । अतः=इदम् स्तोत्रम् । चेतयेथाम्=अवगच्छतम्=शृणुतमित्यर्थः ॥१० ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(अश्विना) हे सेनाध्यक्ष तथा सभाध्यक्ष ! (यद्, वाम्) यदि आपको (कक्षीवान्) हाथ में रज्जु रखनेवाला शूर (उत) अथवा (यद्, व्यश्वः, ऋषिः) जो अश्वरहित=पदाति विद्वान् (यद्, वाम्) यदि आपको (दीर्घतमाः) तमोगुणी शूर (यद्वाम्) और यदि आपको (पृथी, वैन्यः) तीक्ष्ण बुद्धिवाला विद्वानों का पुत्र (सादनेषु) यज्ञों में (जुहाव) आह्वान करें (अतः) तो इसको (चेतयेथाम्, एव, इत्) आप निश्चय जानें ॥१०॥
भावार्थ
हे मान्यवर सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! यदि आपको ऐश्वर्य्यसम्पन्न तथा निर्धन विद्वान् अथवा तमोगुणी शूरवीर वा बुद्धिमान् विद्वान् पुरुष आह्वान करें, तो आप उनका निमन्त्रण स्वीकार कर अवश्य आवें और अपने उपदेश से इस मनुष्यसुधारक यज्ञ को पूर्ण करें ॥१०॥
विषय
पुनः उसी अर्थ को कहते हैं ।
पदार्थ
(अश्विना) हे पुण्यकृत राजा और अमात्यवर्ग (यद्) जिस प्रकार (वाम्) आप दोनों का गुणगान (कक्षीवान्) जितेन्द्रिय (ऋषिः) मन्त्रद्रष्टा कवि (जुहाव) स्तुति करते हैं । (उत) और (व्यश्वः+ऋषिः) गुणों से जो विख्यात ऋषि हैं, वे (यद्) जैसे (वाम्) आप दोनों की स्तुति गाते हैं और (दीर्घतमाः) दीर्घयशोभिलाषी जन (यद्) जैसे (वाम्) आपको (जुहाव) गाते हैं (वैन्यः) ज्ञानी का पुत्र (पृथुः) विख्यात पुरुष (यद्) जैसे (वाम्) आपको (सादनेषु) गृहों पर गाते हैं, (एव+इत्) वैसे ही स्तुति करते हुए मेरे (अतः) इस स्तोत्र को भी (चेतयेथाम्) स्मरण रक्खें ॥१० ॥
भावार्थ
विद्वान् भी देशोद्धारक राजा और अमात्यादिवर्ग का यशोगान से सम्मान करें ॥१० ॥
विषय
पक्षान्तर में राजा और सेनापति के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( अश्विनौ ) जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषो ! अश्व सैन्यादि के स्वामी राजा सेनापति आदि पुरुषो ! ( वां ) तुम दोनों को ( यत् ) जिससे ( कक्षीवान् ) अंगुलियों वाला, सिद्धहस्त, कुशल वा अन्यों की बागडोर अपने हाथों में रखने वाला पुरुष, ( उत ) और ( यत् ) जब ( व्यश्वः ) विविध या विशेष अश्वों या विद्वानों का स्वामी, विविध विद्याओं में निष्णात और ( यत् ) जिस कारण से ( दीर्घतमाः ) बड़ी २ लम्बी चौड़ी आकांक्षाओं वाला, उत्साही ( ऋषिः ) दूरदर्शी पुरुष ( वां वां ) तुम लोगों को (जुहाव) उत्तम उपदेश करे वा तुम्हें किसी उत्तम कार्य के लिये बुलावे और ( यद्वा ) जिससे तुम दोनों को ( वैन्यः ) तेजस्वी, यश का इच्छुक (पृथी) बड़े राष्ट्र-ऐश्वर्य का स्वामी ( सादनेषु ) नाना स्थानों, पदों पर ( एव जुहाव इत् ) कार्य करने के लिये बुलावे ( अतः ) उससे पूर्व हे जितेन्द्रिय पुरुषो ! आप दोनों अवश्य ( चेतयेथाम् ) ज्ञान प्राप्त करलो । अर्थात् स्त्री पुरुषों को बाल्यकाल में खूब ज्ञान प्राप्त करना चाहिये जिससे कोई अधिकारी सेनापति, उत्साही विजिगीषु यशोर्थी राजा आदि उनको उत्तम पदों पर नियुक्त करने के लिये सादर बुलावे। एकत्रिंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शशकर्ण: काण्व ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, ४, ६ बृहती। १४, १५ निचृद् बृहती। २, २० गायत्री। ३, २१ निचृद् गायत्री। ११ त्रिपाद् विराड् गायत्री। ५ उष्णिक् ककुष् । ७, ८, १७, १९ अनुष्टुप् ९ पाद—निचृदनुष्टुप्। १३ निचृदनुष्टुप्। १६ आर्ची अनुष्टुप्। १८ वराडनुष्टुप् । १० आर्षी निचृत् पंक्तिः। १२ जगती॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
'कक्षीवान्- पृथी वैन्य'
पदार्थ
[१] हे (अश्विना) = प्राणापानो ! (यद्) = जब (वाम्) = आपको (कक्षीवान्) = बद्ध कक्ष्यावाला [one who has girded up one's loins] कमरकसे हुए, दृढ़ निश्चयी पुरुष (जुहाव) = पुकारता है, (उत) = और (यद्) = जब (व्यश्वः) = विशिष्ट इन्द्रियाश्वोंवाला पुरुष पुकारता है और (यद्) = जब (वाम्) = आपको दीर्घतमाः = तमोगुण को विदीर्ण करनेवाला (ऋषिः) = तत्त्वद्रष्टा पुरुष पुकारता है। और अन्ततः (यद्) = जब (वैन्यः) = लोकहित की प्रबल कामनावाला [वनेतिः चर्मन्तकर्मा] पृथी अत्यन्त विस्तारवाला, सारी वसुधा ही को अपना कुटुम्ब बना लेनेवाला आपको पुकारता है। तो हे प्राणापानो! आप (अतः) = इस प्रार्थना व आराधना के द्वारा (सादनेषु एव इत्) = यज्ञ गृहों में ही (चेतयेथाम्) = चेतना युक्त करते हो। अर्थात् आप इन आराधकों को सदा यज्ञशील बनाते हो। [२] हमारा जीवन प्रथमाश्रम में 'कक्षीवान्' का जीवन हो, जीवनयात्रा में आगे बढ़ने के लिये दृढ़ निश्चयी पुरुष का जीवन हो । 'कक्षीवान्' शब्द की भावना ही ब्रह्मचर्य सूक्त में 'मेखलया' शब्द से व्यक्त हुई हैं। द्वितीयाश्रम में हमें 'व्यश्व' बनना है, विशिष्ट इन्द्रियाश्वोंवाला हमें इन्द्रियाश्वों को विषयों की घास चरने में ही व्यस्त नहीं रहने देना । तृतीयाश्रम में तप व स्वाध्याय के द्वारा तमोगुण का विदारण करके 'दीर्घतमा' बनना है। चतुर्थ में सर्वलोकहित की कामना करते हुए अधिक से अधिक व्यापक परिवारवाला [वसुधारूप परिवारवाला] 'पृथी वैन्य' बन जाना है। ये सब बातें हो तभी सकेंगी जब हम प्राणसाधना में प्रवृत्त होंगे। प्राणसाधना से जीवन यज्ञमय रहेगा, अन्यथा यह भोग-प्रधान बन
भावार्थ
भावार्थ- हम प्राणसाधना करते हुए 'कक्षीवान्, व्यश्व, दीर्घतमा व पृथी वैन्य' बनें।
इंग्लिश (1)
Meaning
Ashvins, when the cavalier or the pedestrian or the sagely seer or the long time plodder or the ruler or the intellectual calls on you to the yajnic session, you listen. Hence, pray listen to our call too and come
मराठी (1)
भावार्थ
हे मान्यवर सभाध्यक्षा व सेनाध्यक्ष, जर तुम्हाला ऐश्वर्यसंपन्न व निर्धन विद्वान किंवा तमोगुणी शूरवीर किंवा बुद्धिमान विद्वान पुरुषांनी आमंत्रित केल्यास तुम्ही त्यांचे निमंत्रण स्वीकार करून अवश्य या व आपल्या उपदेशाने या मनुष्य सुधारक यज्ञाला पूर्ण करा. ॥१०॥
हिंगलिश (1)
Subject
Self less multi dimension service
Word Meaning
Service of your cabinet should be Self less, Far sighted, with universally applicable and Technologically facilitated aesthetic wisdom. राष्ट्र के मन्त्री ऋषि आचरण वाले-निस्वार्थ राष्ट्र यज्ञ मे आहुत, दीर्घतमा – दीर्घदर्शी, कक्षीवान-विविध विद्याओं शिल्पों के ज्ञाता, व्यश्व- सैन्य बल में समर्थ, पृथी-विशाल बुद्धि वाले, वैन्य –राष्ट्र की शोभा सौन्दर्य और कान्ति बढ़ाने वाले हों.
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