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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 6
    ऋषिः - शशकर्णः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः

    यन्ना॑सत्या भुर॒ण्यथो॒ यद्वा॑ देव भिष॒ज्यथ॑: । अ॒यं वां॑ व॒त्सो म॒तिभि॒र्न वि॑न्धते ह॒विष्म॑न्तं॒ हि गच्छ॑थः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । ना॒स॒त्या॒ । भु॒र॒ण्यथः॑ । यत् । वा॒ । दे॒व॒ । भि॒ष॒ज्यथः॑ । अ॒यम् । वा॒म् । व॒त्सः । म॒तिऽभिः । न । वि॒न्ध॒ते॒ । ह॒विष्म॑न्तम् । हि । गच्छ॑थः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यन्नासत्या भुरण्यथो यद्वा देव भिषज्यथ: । अयं वां वत्सो मतिभिर्न विन्धते हविष्मन्तं हि गच्छथः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । नासत्या । भुरण्यथः । यत् । वा । देव । भिषज्यथः । अयम् । वाम् । वत्सः । मतिऽभिः । न । विन्धते । हविष्मन्तम् । हि । गच्छथः ॥ ८.९.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 6
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (नासत्या, देव) हे सत्यकर्माणौ देवौ ! (यत्, भुरण्यथः) यद्युवां जगत् पालयथः (यद्, वा) यच्च (भिषज्यथः) दण्डदानेन ओषधिदानेन वा प्रजां शान्तां नीरोगां च कुरुथः अतः (अयं, वाम्, वत्सः) अयं ते वत्सः प्रजा (मतिभिः) केवलस्तुतिभिः (न) नहि (विन्धते) विन्दते (हि) यतः (हविष्मन्तं) ऐश्वर्यवन्तम् (गच्छथः) याथः ॥६॥

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    विषयः

    राजकर्त्तव्यमाह ।

    पदार्थः

    हे नासत्या=नासत्यौ=हे सत्यस्वभावौ राजानौ ! यद्=यौ युवाम् । भुरण्यथः=सर्वान् मनुष्यान् पोषयथः । भुरण् धारणपोषणयोः । हे देवा=देवौ । यद्वा=यौ च युवाम् । भिषज्यथः=मनुष्यजाते रोगोपशमनं कुरुथः । भिषज् चिकित्सायाम् । तौ=वाम् । अयं वत्सः पालनीयः शिशुः । मतिभिर्बुद्धिभिर्द्वारभूताभिः । न विन्धते=न विन्दते=न लभ्यते । वर्णविकारश्छान्दसः । कुत इति चेदुच्यते । हि=यस्मात् । युवाम् । हविष्मन्तं क्रियावन्तं पुरुषं गच्छथः । न केवलं ज्ञानवन्तम् ॥६ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (नासत्या, देव) हे सत्यकर्मवाले देव ! (यत्, भुरण्यथः) जो आप सबका पोषण करते (यद्, वा) और जो (भिषज्यथः) दण्ड द्वारा अथवा ओषधि द्वारा प्रजा को शान्त और नीरोग करते हैं, ऐसे आपको (अयम्, वाम्, वत्सः) यह आपकी वत्सरूप प्रजा (मतिभिः) केवल स्तुतियों से (न, विन्धते) नहीं पा सकती (हि) क्योंकि आप (हविष्मन्तम्) ऐश्वर्य्यवान् के समीप ही (गच्छथः) जाते हैं ॥६॥

    भावार्थ

    हे सत्यवादी सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! आप शासन तथा सहायता द्वारा सम्पूर्ण प्रजा को सन्तुष्ट रखते हैं। आप ऐसी कृपा करें कि हम लोग आपको प्राप्त होकर अपनी आवश्यकताओं को आप पर प्रकट कर सकें और आपके समीपी होकर उत्तम शिक्षाओं द्वारा उच्च पद को प्राप्त हों ॥६॥

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    विषय

    राजकर्त्तव्य का उपदेश देते हैं ।

    पदार्थ

    (नासत्या) हे सत्यस्वभाव राजा और अमात्यवर्ग ! (यत्) जो आप दोनों (भुरण्यथः) सब मनुष्यों को पोसते हैं यद्वा (देवा) हे देव ! देवो (यत्) जो आप (भिषज्यथः) मनुष्यों की दवा करते करवाते हैं, उन आपको (अयम्+वाम्+वत्सः) यह अनाथ बालक (मतिभिः) मति के द्वारा (न+विन्धते) नहीं पाता है (हि) क्योंकि आप दोनों (हविष्मन्तम्) क्रियावान् पुरुष के निकट में ही (गच्छथः) जाते हैं ॥६ ॥

    भावार्थ

    राजा राज्य में जहाँ-तहाँ भवन स्थापित कर असमर्थों को भोजनादिकों से रक्षा और क्रियावान् पुरुषों का साहाय्य किया करे ॥६ ॥

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    विषय

    जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( नासत्या ) असत्याचरण न करने वाले सदा सत्यकर्मा, सत्यभाषी, सत्यवती होकर आप दोनों ( हविष्मन्तं हि ) नासिकास्थ प्राणों के समान उत्तम अन्न वाले प्रजाजन को माता पितावत् ( भुरण्यथः ) पालन करते हो, ( यद्वा ) जो आप दोनों ( हविष्मन्तं हि भिषज्यथः ) उत्तम पवित्र अन्न वाले के ही रोगों को दूर करते हो और ( हविष्मन्तं हि गच्छथः ) उत्तम अन्नादि के स्वामी राष्ट्रवासी जन को ही तुम होते हो, ( अयं ) यह ( वत्सः ) राष्ट्र निवासी जन बालक के समान होकर ही ( मतिभिः ) बुद्धियों वा स्तुतियों से भी ( वां ) तुम दोनों को ( न विन्धते ) प्राप्त नहीं कर सकता, अर्थात् केवल गुणस्तवन मात्र से यह तुम्हारे उपकार से उर्ऋण नहीं हो सकता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शशकर्ण: काण्व ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, ४, ६ बृहती। १४, १५ निचृद् बृहती। २, २० गायत्री। ३, २१ निचृद् गायत्री। ११ त्रिपाद् विराड् गायत्री। ५ उष्णिक् ककुष् । ७, ८, १७, १९ अनुष्टुप् ९ पाद—निचृदनुष्टुप्। १३ निचृदनुष्टुप्। १६ आर्ची अनुष्टुप्। १८ वराडनुष्टुप् । १० आर्षी निचृत् पंक्तिः। १२ जगती॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    यन्नसत्या

    पदार्थ

    [१] हे (नासत्या) = हमारे जीवनों से सब असत्यों को दूर करनेवाले प्राणापानो! आप (यत्) = जब (भुरण्यथः) = हमारे सब रोगों की चिकित्सा करते हो, तो (अयम्) = यह (वाम्) = आपका (वत्सः) = प्रिय आराधक (मतिभिः) = केवल ज्ञानों से (न विन्धते) = आपको प्राप्त नहीं करता। (हि) = निश्चय से आप (हविष्मन्तम्) = दानपूर्वक अदन करनेवाले व्यक्ति को (गच्छथः) = प्राप्त होते हो। [२] प्राणसाधना करनेवाला पुरुष यह अच्छी तरह समझ लेता है कि ये प्राणापान हमारा पालन करते हैं, ये ही हमारे सब रोगों को दूर करते हैं। ऐसा समझता हुआ यह पुरुष केवल प्राणों का स्तवन ही नहीं करता रहता। यह इस स्तवन के साथ त्यागपूर्वक अदन की वृत्तिवाला बनकर प्राणसाधना में प्रवृत्त होता है । 'हविष्मान्' बनता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणापान हमारा पालन करते हैं, सब रोगों की चिकित्सा करते हैं। इनका हम स्तवन करें तथा त्यागपूर्वक अदनवाले बनकर हम प्राणसाधना में प्रवृत्त हों ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Ashvins, harbingers of energy, health and replenishment, ever true unfailing agents of natural law and life’s growth, when you vibrate, radiate and energise, when you nourish, heal, resuscitate and revive things to live and grow, this conscientious darling seeker of your power and presence understands you not by observation, analysis and thought, in your entirety, because you reveal yourself only to the faithful who come to you with homage. (Life is a mystery. You can know the secret of this mystery only by being what it is, by identifying with it in meditation.)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे सत्यवादी सभाध्यक्षा व सेनाध्यक्षा, तुम्ही शासन व साह्य यामुळे संपूर्ण प्रजेला संतुष्ट ठेवता. तेव्हा अशी कृपा करा की, आम्ही तुमच्यासमोर गरजा मांडाव्या व तुमच्या जवळचे बनून उत्तम शिक्षणाद्वारे उच्च पद प्राप्त करावे. ॥६॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    On Governance

    Word Meaning

    Performing with promptness the assigned tasks of governance, free from corrupt behavior , the authorities should implement programs for enhancing public knowledge wisdom & education, remedy famine and disease caused by vagaries of weather. Like a child many in public may not be able to appreciate the role played by the government. But there will be many who voluntarily contribute their taxes as an offerings in national effort. Such people automatically get close recognition. असत्य व्यवहार से रहित राष्ट्र द्वारा सोंपे कार्यों को शीघ्रता से कर के राज्ञ कर्मी राष्ट्र में अज्ञान, दुर्भिक्ष अनावृष्टि आदि रोगों की चिकित्सा समय समय पर करते हैं. बच्चों की तरह कुछ प्रजाजनों को सरकार के सारे कार्यों का मूल्यांकन ठीक ठीक नहीं हो पाता. परंतु कुछ प्रजावर्ग राज्ञ कर को राष्ट्रयज्ञ में हविरूप से स्वयमेव आहुति रूप से देते हैं. उस प्रजावर्ग की ओर राजतंत्र स्वाभाविक रूप से आकर्षित होते हैं.

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