ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 20
प्र द्यु॒म्नाय॒ प्र शव॑से॒ प्र नृ॒षाह्या॑य॒ शर्म॑णे । प्र दक्षा॑य प्रचेतसा ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । द्यु॒म्नाय॑ । प्र । शव॑से । प्र । नृ॒ऽसह्या॑य । शर्म॑णे । प्र । दक्षा॑य । प्र॒ऽचे॒त॒सा॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र द्युम्नाय प्र शवसे प्र नृषाह्याय शर्मणे । प्र दक्षाय प्रचेतसा ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । द्युम्नाय । प्र । शवसे । प्र । नृऽसह्याय । शर्मणे । प्र । दक्षाय । प्रऽचेतसा ॥ ८.९.२०
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 20
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 33; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 33; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(प्रचेतसा) हे प्रकृष्टज्ञानवन्तौ ! (द्युम्नाय) अन्नाय (प्र) प्ररक्षतम् (शवसे) बलाय (प्र) प्ररक्षतम् (नृषाह्याय, शर्मणे) नृभिः सोढव्याय सुखाय (प्र) प्ररक्षतम् (दक्षाय) चातुर्याय (प्र) प्ररक्षतम् ॥२०॥
विषयः
प्रातर्विधिमाह ।
पदार्थः
प्रचेतसा=प्रचेतसौ=प्रकृष्टमनसौ=उदारमनस्कौ राजानौ ! द्युम्नाय=‘अत्र द्युम्नायेत्यादौ क्रियाग्रहणं कर्तव्यमिति कर्मणः सम्प्रदानत्वाच्चतुर्थी’ अस्माकं द्युम्नं गवादिसमस्तधनम् । प्ररक्षतमिति शेषः । शवसे=शवो बलं प्ररक्षतम् । नृषाह्याय=नृभिः सोढव्याय । शर्मणे=शर्म कल्याणम् । प्ररक्षतम् । पुनः । दक्षाय=दक्षं वृद्धिञ्च प्ररक्षतमिति प्रार्थये ॥२० ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(प्रचेतसा) हे प्रकृष्ट ज्ञानवाले ! (द्युम्नाय) उत्तम अन्न के लिये (प्र) सुरक्षा करें (शवसे) बलार्थ (प्र) सुरक्षा करें (नृषाह्याय, शर्मणे) मनुष्यों के अनुकूल सुख के लिये (प्र) सुरक्षा करें (दक्षाय) चातुर्य शिक्षा के अर्थ (प्र) सुरक्षित करें ॥२०॥
भावार्थ
इस मन्त्र में अभ्युदय तथा निःश्रेयस सिद्धि की प्रार्थना की गई है अर्थात् ज्ञानवृद्ध पुरुषों से ज्ञानलाभ करके अभ्युदय और निःश्रेयस की वृद्धि करनी चाहिये ॥२०॥
विषय
प्रातःकालिक विधि कहते हैं ।
पदार्थ
(प्रचेतसा) प्रकृष्टमनस्क उदारचित्त राजा और अमात्यवर्ग हमारे (द्युम्नाय) गवादि समस्त धन को (प्र) अच्छे प्रकार बचावें (शवसे) हमारे बल को (प्र) अच्छे प्रकार बचावें । (नृषाह्याय) मनुष्ययोग्य (शर्मणे) कल्याण की (प्र) अच्छे प्रकार रक्षा करें (दक्षाय) हमारी वृद्धि की भी (प्र) अच्छे प्रकार रक्षा करें ॥२० ॥
भावार्थ
राजा स्वसैन्यों से प्रजाओं के समस्त धनों की रक्षा करे ॥२० ॥
विषय
शिक्षा, आतिथ्य और ज्ञानप्राप्ति सम्बन्धी अनेक उपदेश ।
भावार्थ
हे ( प्र-चेतसा ) उत्तम चित्त और ज्ञान वाले जनो ! आप दोनों ( द्युम्नाय ) उत्तम ऐश्वर्य, ( शवसे ) बल और (नृ-षाह्याय ) सब शत्रु-नायकों को पराजय करने, ( शर्मणे ) शत्रुहिंसक बल और प्रजा को शान्तिदायक शरण देने और ( दक्षाय ) बल और ज्ञान को प्राप्त करने के लिये ( प्र प्र प्र प्र ) सदा उत्तम से उत्तम मार्ग पर आगे बढ़ो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शशकर्ण: काण्व ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, ४, ६ बृहती। १४, १५ निचृद् बृहती। २, २० गायत्री। ३, २१ निचृद् गायत्री। ११ त्रिपाद् विराड् गायत्री। ५ उष्णिक् ककुष् । ७, ८, १७, १९ अनुष्टुप् ९ पाद—निचृदनुष्टुप्। १३ निचृदनुष्टुप्। १६ आर्ची अनुष्टुप्। १८ वराडनुष्टुप् । १० आर्षी निचृत् पंक्तिः। १२ जगती॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
'द्युम्न - शवस्-शर्म- दक्ष'
पदार्थ
[१] हे (प्रचेतसा) = प्रकृष्ट ज्ञान को प्राप्त करानेवाले प्राणापानो! आप हमारी (द्युम्नाय) = ज्ञान- ज्योति के लिये (प्र) [ भवतम्] = होवो । (शवसे) = बल के लिये (प्र) [ भवतम् ] = होवो । [२] इसी प्रकार (नृषाह्याय) = शत्रु नायकों का, काम-क्रोध-लोभरूप शत्रु सेनापतियों का पराभव करनेवाले (शर्मणे) = सुख के लिये (प्र) [ भवतम् ] = होइये और (दक्षाय) = [ growth] सब प्रकार की उन्नति के लिये प्र [ भवतम् ] = होइये ।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना द्वारा हमें 'ज्ञान-बल- शत्रु पराजय जनित सुख व विकास' प्राप्त हो ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Then for wealth, honour and excellence, for strength and courage and joy and prosperity for the peace and protection of humanity and achievement of dexterity and competence. O harbingers of light and awareness, bless them.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात अभ्युदय व नि:श्रेयस सिद्धीची प्रार्थना केलेली आहे. अर्थात् ज्ञानवृद्ध पुरुषांकडून ज्ञान लाभ करून अभ्युदय व नि:श्रेयसची वृद्धी केली पाहिजे. ॥२०॥
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