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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 4
    ऋषिः - शशकर्णः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः

    अ॒यं वां॑ घ॒र्मो अ॑श्विना॒ स्तोमे॑न॒ परि॑ षिच्यते । अ॒यं सोमो॒ मधु॑मान्वाजिनीवसू॒ येन॑ वृ॒त्रं चिके॑तथः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । वा॒म् । घ॒र्मः । अ॒श्वि॒ना॒ । स्तोमे॑न । परि॑ । सि॒च्य॒ते॒ । अ॒यम् । सोमः॑ । मधु॑ऽमान् । वा॒जि॒नी॒व॒सू॒ इति॑ वाजिनीऽवसू । येन॑ । वृ॒त्रम् । चिके॑तथः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं वां घर्मो अश्विना स्तोमेन परि षिच्यते । अयं सोमो मधुमान्वाजिनीवसू येन वृत्रं चिकेतथः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । वाम् । घर्मः । अश्विना । स्तोमेन । परि । सिच्यते । अयम् । सोमः । मधुऽमान् । वाजिनीवसू इति वाजिनीऽवसू । येन । वृत्रम् । चिकेतथः ॥ ८.९.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 30; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (अश्विना) हे सेनाध्यक्षसभाध्यक्षौ ! (वाम्) युवयोः (अयम्, धर्मः) अयं युद्धादिकार्यप्रारम्भदिवसः (स्तोमैः) स्तुतिभिः (परिषिच्यते) उत्साहवर्द्धकः क्रियते (वाजिनीवसू) हे बलयुक्तसेनाधनौ ! (अयम्, मधुमान्, सोमः) अयं ते सोमः मधुरः (येन) येन सोमेन (वृत्रं) शत्रुम् (चिकेतथः) जानीथः ॥४॥

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    विषयः

    पुनस्तमेवार्थमाह ।

    पदार्थः

    हे अश्विना=हे अश्विनौ अश्वयुक्तौ राजानौ ! वाम्=युवयोर्निमित्तम् । अयं घर्मः=“घृ क्षरणदीप्त्योः” किञ्चित् क्षरणशीलं तरलं पेयं वस्तु घर्मः सः । स्तोमेन=पवित्रविधिना । परिषिच्यते=प्रस्तूयते=पच्यते । तथा । हे वाजिनीवसू=वाजिनी बलवती बुद्धिः सैव वसूनि धनानि ययोस्तौ । अयं सोमोऽपि । मधुमान्=मधुरोऽस्ति । इमौ घर्मसोमौ प्रथमं पिबतम् । येन पानेन । वृत्रमावरकं विघ्नम् । चिकेतथः=निवारयितव्यतया=ज्ञास्यथः ॥४ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (अश्विना) हे सेनाध्यक्ष तथा सभाध्यक्ष ! (अयम्) यह (वाम्) आपका (धर्मः) युद्धादि कार्य्य के प्रारम्भ का दिवस (स्तोमैः) स्तोत्रों द्वारा (परिषिच्यते) उत्साहवर्धक किया जाता है (वाजिनीवसू) हे बलयुक्त सेनारूप धनवाले ! (अयम्, मधुमान्, सोमः) यह मधुर सोम है, (येन) जिससे आप (वृत्रम्) अपने शत्रु को (चिकेतथः) जानते हैं ॥४॥

    भावार्थ

    हे बलसम्पन्न सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! हम लोग युद्ध के प्रारम्भ में स्तोत्रों द्वारा आपके विजय की प्रार्थना करते हैं, आप इस सोमरस को पान करके शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें ॥४॥

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    विषय

    पुनः उसी अर्थ को कहते हैं ।

    पदार्थ

    (अश्विना) हे अश्वयुक्त राजा और अमात्यवर्ग ! (वाम्) आप दोनों के निमित्त जो (अयम्+वाम्+घर्मः) यह तरल पेय वस्तु (स्तोमेन) पवित्र विधि के साथ (परिषिच्यते) बनाया जाता है और हे (वाजिनीवसू) हे बुद्धिधनो=हे सर्वधनो ! (अयम्+सोमः) यह सोमरस भी (मधुमान्) परम मधुर है, इनको प्रथम आप पीवें (येन) जिससे आप (वृत्रम्) निवारणीय विघ्न को (चिकेतथः) जान सकेंगे ॥४ ॥

    भावार्थ

    राजा विविध भोगों को भोगता हुआ प्रजाओं की रक्षा करे ॥४ ॥

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    विषय

    जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( अश्विना ) जितेन्द्रिय पुरुषो ! ( वां ) आप दोनों का ( अयं ) यह ( धर्मः ) तेजोयुक्त प्रभाव या सामर्थ्य है जिसको ( स्तोमै : ) स्तुति योग्य वचनों या वेदमन्त्रों द्वारा ( परिषिच्यते ) परिषेक किया जाता, जिसकी प्रतिष्ठा की जाती है। हे ( वाजिनीवसू ) ज्ञान, बलादि से युक्त क्रिया के धनी जनो ! ( अयं मधुमान् सोमः ) यह मधुर अन्नादि से युक्त ऐश्वर्य वा उत्पादक बल है, ( येन ) जिससे आप दोनों ( वृत्रं ) जीवन के रोग दुःखादि विघ्न समूह को दूर करने में समर्थ हो। इसी बल वीर्य की ब्रह्मचर्यादि से तुम सदा रक्षा करो, उसी का महान् आदर है। उसी की लोक में प्रतिष्ठा है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शशकर्ण: काण्व ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, ४, ६ बृहती। १४, १५ निचृद् बृहती। २, २० गायत्री। ३, २१ निचृद् गायत्री। ११ त्रिपाद् विराड् गायत्री। ५ उष्णिक् ककुष् । ७, ८, १७, १९ अनुष्टुप् ९ पाद—निचृदनुष्टुप्। १३ निचृदनुष्टुप्। १६ आर्ची अनुष्टुप्। १८ वराडनुष्टुप् । १० आर्षी निचृत् पंक्तिः। १२ जगती॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    धर्म-सोम

    पदार्थ

    [१] हे (अश्विना) = प्राणापानो! (अयम्) = यह (वाम्) = आपका (घर्म:) = तेज स्तोमेन प्रभु-स्तवन के साथ (परिषिच्यते) = शरीर में चारों ओर सिक्त होता है। जब प्रभु-स्तवन के साथ प्राणसाधना चलती है, तो शरीर में सब अंग तेजस्विता से सिक्त होते हैं। [२] हे (वाजिनीवसू) = शक्तिरूप धनोंवाले प्राणापानो! (अयम्) = यह (वाम्) = आपका, आपके द्वारा शरीर में सुरक्षित होनेवाला, (सोमः) = सोम [वीर्य शक्ति] (मधुमान्) = जीवन को मधुर बनाने वाला है। (येन) = जिस सोम के द्वारा (वृत्रम्) = ज्ञान की आवरणभूत वासना को (चिकेतथः) = आप हन्तव्य रूप में जानते हो। [ हन्तव्यतया जानीथः, हिन्दी में भी यह शब्द प्रयोग 'अच्छा, मैं तुझे समझ लूँगा' इस रूप में होता है]। सोम शक्ति के रक्षण से ही वासनाओं का विनाश होकर ज्ञान की वृद्धि होती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु-स्तवन के साथ प्राणसाधना के चलने पर शरीर में तेजस्विता व सोम का रक्षण होता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This is the yajnic fire of the season, Ashvins, which is dedicated and exalted in your honour with the chant of hymns, and this is the soma sweetened and seasoned for you, O heroes of the battle for wealth and victory, by which you would know and dare the enemy, the demon of darkness, ignorance, injustice and poverty.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे बलसंपन्न सभाध्यक्षा व सेनाध्यक्षा, आम्ही युद्धाच्या प्रारंभी स्तोत्रांद्वारे तुमच्या विजयाची प्रार्थना करतो. तुम्ही या सोमरसाचे प्राशन करून शत्रूंवर विजय प्राप्त करा. ॥४॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    Gross National Happiness-Intellect driven governance.

    Word Meaning

    Pursue vigorously wise policies, to promote nature’s gifts for health and life positive nutrition, disease preventing, water, food and milk to ward off miseries of deprivation and promote harmony. सदुपदेशामृत द्वारा राष्ट्र यज्ञ मेधावियों से सींचा जाता है.जिस से अन्न, बल, सम्पत्ति देने वाली पृथ्वी मधुर रस,जल, दूध द्वारा दुर्भिक्ष जैसे ओग से राष्ट्र की रक्षा करते हैं.

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