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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 11
    ऋषिः - शशकर्णः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - त्रिपादविराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    या॒तं छ॑र्दि॒ष्पा उ॒त न॑: पर॒स्पा भू॒तं ज॑ग॒त्पा उ॒त न॑स्तनू॒पा । व॒र्तिस्तो॒काय॒ तन॑याय यातम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या॒तम् । छ॒र्दिः॒ऽपौ । उ॒त । नः॒ । प॒रः॒ऽपाः । भू॒तम् । ज॒ग॒त्ऽपौ । उ॒त । नः॒ । त॒नू॒ऽपा । व॒र्तिः । तो॒काय॑ । तन॑याय । या॒त॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यातं छर्दिष्पा उत न: परस्पा भूतं जगत्पा उत नस्तनूपा । वर्तिस्तोकाय तनयाय यातम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यातम् । छर्दिःऽपौ । उत । नः । परःऽपाः । भूतम् । जगत्ऽपौ । उत । नः । तनूऽपा । वर्तिः । तोकाय । तनयाय । यातम् ॥ ८.९.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 11
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 32; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    हे अश्विनौ ! (नः) अस्माकम् (छर्दिष्पौ, यातम्) गृहरक्षकौ सन्तौ आयातम् (उत) अथ च (परस्पौ, भूतम्) शत्रुभ्यो रक्षकौ भवतम् (जगत्पौ) जगत्पालकौ भवन्तौ (नः, तनूपौ) अस्माकम् शरीरपालकौ स्यातम् (तोकाय) पुत्रस्य (तनयाय) पौत्रस्य च (वर्तिः) गृहम् (यातम्) आयातम् ॥११॥

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    विषयः

    राजकर्त्तव्यमाह ।

    पदार्थः

    हे अश्विनौ ! युवाम् । छर्दिष्पा=छर्दिष्पौ=छर्दिर्गृहं तस्य पालकौ इव । यातम् । तम् । उत नोऽस्माकम् । परस्पा=परस्पौ=परमतिशयेन पालकौ । भूतम्=भवतम् । पारस्करादित्वात्सुट् । यद्वा । परस्पौ=शत्रुभ्यः पालकौ । पुनः । जगत्पा=जगतां जङ्गमानां पदार्थानां पालकौ भवतम् । उत तनूपा=शरीरपालकौ भवतम् । हे अश्विनौ । एतत्सर्वार्थम् । मम तोकाय=तोकस्य=पुत्रस्य । तनयाय=तनयस्य पौत्रस्य च । वर्त्तिर्गृहम् । यातम्=गच्छतम् ॥११ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    हे व्यापकशक्तिवाले ! (नः) हमारे (छर्दिष्पौ, यातम्) गृहों की रक्षा करनेवाले होकर आवें (उत) और (परस्पौ, भूतम्) शत्रु से बचानेवाले हों (जगत्पौ) संसारपालक आप (नः, तनूपौ) हमारे शरीर के रक्षक हों (तोकाय) पुत्र के (तनयाय) पौत्र के (वर्तिः) घर को (यातम्) आएँ ॥११॥

    भावार्थ

    हे बलवान् सबकी रक्षा करनेवाले सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! आप शत्रुओं से हमारी और हमारे गृह=अन्तःपुर की रक्षा करें और हमारे पुत्र-पौत्रों की भी रक्षा करते हुए उन्हें विद्यादान द्वारा योग्य बनावें ॥११॥

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    विषय

    राजकर्तव्य कहते हैं ।

    पदार्थ

    हे पुण्यवान् राजा और अमात्यवर्ग ! आप दोनों (छर्दिष्पा) गृहरक्षक के समान (यातम्) हम लोगों की ओर जाएँ अर्थात् प्रजाओं के गृहों की रक्षा के लिये आप बाहर इधर-उधर जाया करें । (उत+नः) और हम प्रजाओं के (परस्पा) अतिशय पालक (भूतम्) होवें, यद्वा हम लोगों को शत्रुओं से बचानेवाले होवें और (जगत्पा) हमारे जङ्गम गौ आदि पदार्थों के पालक आप होवें (उत+नः) तथा हमारे (तनूपा) शरीरों और बच्चों के रक्षक होवें । हे अश्विद्वय ! इन सब कार्य्यों के लिये (तोकाय) हमारे पुत्र के तथा (तनयाय) पौत्र के (वर्तिः) गृह में (यातम्) जाया करें ॥११ ॥

    भावार्थ

    राजा प्रजाओं की सर्व वस्तुओं की रक्षा करें और करावें ॥११ ॥

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    विषय

    पक्षान्तर में राजा और सेनापति के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे (अश्विनौ ) जितेन्द्रिय एवं अश्व स्थादि के स्वामी जनो ! आप दोनों ( नः ) हमारे ( तोकाय तनयाय ) पुत्र पौत्रादि के हितार्थ ( वर्त्तिः यातम् ) वृत्ति या वेतनादि भी प्राप्त करो। आप दोनों ( नः ) हमारे ( छर्दिष्पा भूतम् ) गृहों की रक्षा करने वाले होवो। ( नः परस्पा भूतम् ) हमें शत्रु से बचाने वाले होवे । ( उत नः जगत्पा तनूपा भूतम् ) और हमारे जंगम पशु सम्पत्ति और हमारे शरीरों के भी रक्षक होवो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शशकर्ण: काण्व ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, ४, ६ बृहती। १४, १५ निचृद् बृहती। २, २० गायत्री। ३, २१ निचृद् गायत्री। ११ त्रिपाद् विराड् गायत्री। ५ उष्णिक् ककुष् । ७, ८, १७, १९ अनुष्टुप् ९ पाद—निचृदनुष्टुप्। १३ निचृदनुष्टुप्। १६ आर्ची अनुष्टुप्। १८ वराडनुष्टुप् । १० आर्षी निचृत् पंक्तिः। १२ जगती॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    छर्दिष्पा तनूपा

    पदार्थ

    [१] हे प्राणापानो! आप (छर्दिष्पाः) = हमारे शरीरगृह के रक्षक होते हुए (यातम्) = हमें प्राप्त होवो । (उत) = और (नः) = हमारे लिये (परस्पा:) = अतिशयेन रक्षक (भूतम्) = होइये। (जगत्पा:) = इस संसार के आप रक्षक हों, (उत) = और (नः) = हमारे (तनूपा) = शरीरों के आप रक्षक बनें। [२] (तोकाय तनयाय) = हमारे पुत्र-पौत्रों के लिये भी (वर्तिः) = रथमार्ग को (यातम्) = प्राप्त कराइये, अर्थात् वे सदा सन्मार्ग पर चलनेवाले हों।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना हमारा सब प्रकार से रक्षण करनेवाली हो। हमारे पुत्र-पौत्रों को भी यह सन्मार्ग पर ले चलनेवाली बने।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Come, be protectors of our home and family, be protectors of others too, be protectors of the world and protectors of our body’s health and social structure. Come home to us for the sake of our children and grand children.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे बलवान व सर्वांचे रक्षण करणाऱ्या सभाध्यक्षा व सेनाध्यक्षा, तुम्ही शत्रूंपासून आमच्या घरांचे = अंत:पुराचे रक्षण करा व आमच्या पुत्रपौत्रांचे रक्षण करत त्यांना विद्यादानाद्वारे योग्य बनवा. ॥११॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    Governance guide : Communication & intelligence network

    Word Meaning

    Government facilitates formation of good behavior and livelihood opportunities for future generations. It should ensure internal safety and protection from wild animals, external enemies. To carry out these duties government should maintain very close contacts and channels of communication. हमारे घरों की रक्षा करने और पर राष्ट्रों से रक्षा के हेतु प्रजाजनों में आया जाया करो. भावी संतान में सभ्य व्यवहार और जीवनयापन के उपयुक्त साधनों को स्थापित करने मे शासन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. देश में आन्तरिक सुरक्षा इत्यादि के लिए जनसाधारण से निकट, सीधा सम्पर्क रखना चाहिये.

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