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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 7
    ऋषिः - शशकर्णः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    आ नू॒नम॒श्विनो॒ॠषि॒: स्तोमं॑ चिकेत वा॒मया॑ । आ सोमं॒ मधु॑मत्तमं घ॒र्मं सि॑ञ्चा॒दथ॑र्वणि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । नू॒नम् । अ॒श्विनोः॑ । ऋषिः॑ । स्तोम॑म् । चि॒के॒त॒ । वा॒मया॑ । आ । सोम॑म् । मधु॑मत्ऽतमम् । घ॒र्मम् । सि॒ञ्चा॒त् । अथ॑र्वणि ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ नूनमश्विनोॠषि: स्तोमं चिकेत वामया । आ सोमं मधुमत्तमं घर्मं सिञ्चादथर्वणि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । नूनम् । अश्विनोः । ऋषिः । स्तोमम् । चिकेत । वामया । आ । सोमम् । मधुमत्ऽतमम् । घर्मम् । सिञ्चात् । अथर्वणि ॥ ८.९.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 7
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (ऋषिः) विद्वान् (अश्विनोः, स्तोमम्) तयोः स्तोत्रं (वामया) वननीयबुद्ध्या (नूनम्) निश्चयम् (आचिकेत) सम्यग्जानीयात् (मधुमत्तमं) अतिमधुरम् (सोमम्) सोमरसम् (धर्मम्) यज्ञ सम्बन्धिनम् (अथर्वणि) हिंसारहितकर्मणि (आसिञ्चात्) आसिक्तं सिद्धं कुर्यात् ॥७॥

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    विषयः

    राज्ये विद्वत्कर्त्तव्यमाह ।

    पदार्थः

    ऋषिः=महाकविर्मन्त्रदृष्टा । नूनमवश्यम् । अश्विनोः= यशोयुक्तम् । वामया=वामं सुन्दरं स्तोमम् । आचिकेत=अभिजानीयात्=विरचयेत् । कित ज्ञाने । छान्दसो लिट् । पुनः । मधुमत्तममतिशयेन मधुमन्तम् । घर्मम्=क्षरणशीलम् । सोमम्=सोमरसम् । अथर्वणि अग्नौ । आसिञ्चात्=जुहुयात् ॥७ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (ऋषिः) विद्वान् पुरुष (अश्विनोः, स्तोमम्) उन सेनाध्यक्ष सभाध्यक्ष के स्तोत्रों को (वामया) अपनी तीक्ष्णबुद्धि से (नूनम्) निश्चय (आचिकेत) जाने (मधुमत्तमम्) अतिमधुर (धर्मम्, सोमम्) यज्ञीय सोमरस को (अथर्वणि) हिंसारहित यज्ञकर्मों में (आसिञ्चात्) आसिक्त=सिद्ध करे ॥७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र का भाव यह है कि सब नीतिज्ञ विद्वान् पुरुष क्षात्रबल=राजमर्यादा को भले प्रकार जानें, ताकि राजनियम के विरुद्ध चलकर दण्ड के भागी न हों और राजकीय पुरुषों का उत्तमोत्तम पदार्थों द्वारा सत्कार करें, जिससे वे सर्वत्र सत्कारार्ह सिद्ध हों ॥७॥

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    विषय

    राज्य में विद्वान् का कर्तव्य कहते हैं ।

    पदार्थ

    (ऋषिः) महाकवि मन्त्रद्रष्टा जन (नूनम्) अवश्य ही (अश्विनोः) धर्मपरायण राजा और अमात्यादिकों के यशोयुक्त (वामया) सुन्दर (स्तोमम्) गानग्रन्थ (चिकेत) रचें । तथा (मधुमत्तमम्) अतिशय मधुर (घर्मम्) क्षरणशील (सोमम्) सोमरस को (अथर्वणि) अग्नि में (सिञ्चात्) हवन करें ॥७ ॥

    भावार्थ

    विद्वज्जन देश का इतिहास लिखें और स्वयं कर्म करते हुए अन्यों से करवावें ॥७ ॥

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    विषय

    जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( ऋषिः ) मन्त्रार्थ द्रष्टा विद्वान् पुरुष ( नूनम् ) अवश्य ही, ( वामया ) अपनी उत्तम बुद्धि से और अच्छी रीति से ( अश्विनोः ) जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों को ( स्तोमं ) उत्तम स्तुति योग्य मन्त्रों का उपदेश ( आचिकेत ) करे, उनको उसका ज्ञान दे। ( अथर्वणि ) स्थिर, शान्त प्रज्ञावान् पुरुष में ही वह अग्नि ( धर्म: ) तीव्र घृत वा तेज के समान ( मधुमत्तमम् ) वा अति मधुर ( सोमं ) ओषधि रसवत् उत्तम ज्ञान और तेज का ( सिञ्चात् ) सेचन, प्रदान करे। अथवा वह विद्वान् गुरु ( अथर्वणि ) अथर्ववेद की समाप्ति पर वा अहिंसा शम, आदि भाव में ( मधुमत्तमं ) उत्तम वेद के ज्ञान से युक्त ( सोमं ) विद्याक्षेत्र में उत्पन्न ( धर्मं ) सुतप्त, तपस्वी, तेजस्वी शिष्य को ( सिञ्चात् ) स्नान करावे, उसे स्नातक बनावे ।

    टिप्पणी

    अथवा—सवनं यज्ञः, यजुर्वेदः, मधु ऋग्वेदः। धर्मः सामवेदः। तेषु निष्णातं शिष्यमथर्वणि सिञ्चेत् अथर्ववेदे व्युत्पादयेत्॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शशकर्ण: काण्व ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, ४, ६ बृहती। १४, १५ निचृद् बृहती। २, २० गायत्री। ३, २१ निचृद् गायत्री। ११ त्रिपाद् विराड् गायत्री। ५ उष्णिक् ककुष् । ७, ८, १७, १९ अनुष्टुप् ९ पाद—निचृदनुष्टुप्। १३ निचृदनुष्टुप्। १६ आर्ची अनुष्टुप्। १८ वराडनुष्टुप् । १० आर्षी निचृत् पंक्तिः। १२ जगती॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    मधुमत्तमं धर्मम्

    पदार्थ

    [१] (ऋषिः) = तत्त्वद्रष्टा-ज्ञानी पुरुष (नूनम्) = निश्चय से (अश्विनोः स्तोमम्) = प्राणापान के स्तवन को (वामया) = सुन्दर वाणी के द्वारा (आचिकेत) = सर्वथा करने के लिये जानता है। प्राणापान का स्तवन करता हुआ प्राणसाधना में प्रवृत्त होता है। [२] इस प्राणसाधना में प्रवृत्त होने के द्वारा यह ऋषि (अथर्वणि) [ न थर्वति = चरति ] = न डाँवाडोल होनेवाले चित्त के होने पर (सोमम्) = सोम शक्ति को (आसिञ्चात्) = अपने शरीर में ही सर्वतः सिक्त करता है। यह सोम (मधुमत्तमम्) = जीवन को अत्यन्त मधुर बनानेवाला है और (धर्मम्) = यह तेजस्विता ही तेजस्विता है, अपने रक्षक को तेजस्वी बनानेवाला है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्राणापान के लाभों का स्तवन करते हुए प्राणसाधना द्वारा सोम की शरीर में ऊर्ध्वगति करनेवाले हों। यह सोम हमें माधुर्य व तेज प्राप्त करायेगा।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    In truth, the visionary sage has realised the song and story of the Ashvins, radiations of life energy, in every detail from inception to completion by faithful intention and relentless application of mind, and he has fed the fire of his yajnic search and research with the sweetest and most vibrating soma of his life’s passion into the vedi.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात हा भाव आहे, की सर्व नीतिज्ञ विद्वान पुरुषांनी क्षात्रबळ = राजमर्यादा चांगल्या प्रकारे जाणावी अन्यथा राजनियमाच्या विरुद्ध वागून दंडाचे भागीदार बनू नये. राजकीय पुरुषांचा उत्तमोत्तम पदार्थांद्वारे सत्कार करावा. ज्यामुळे सर्वत्र सत्कारासाठी ते सिद्ध व्हावेत. ॥७॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    National Character formation

    Word Meaning

    ऋषि कोटि के पुरुष और स्त्री राष्ट्र को नेतृत्व प्रदान कर के नानाविध से राष्ट्र को उपद्रवों विप्लवों से रहित स्थिरता और मधुर पदार्थों और यज्ञीय भावनाओं को राष्ट्र में स्थापित करें.

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