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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 12
    ऋषिः - शशकर्णः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    यदिन्द्रे॑ण स॒रथं॑ या॒थो अ॑श्विना॒ यद्वा॑ वा॒युना॒ भव॑थ॒: समो॑कसा । यदा॑दि॒त्येभि॑ॠ॒भुभि॑: स॒जोष॑सा॒ यद्वा॒ विष्णो॑र्वि॒क्रम॑णेषु॒ तिष्ठ॑थः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । इन्द्रे॑ण । स॒रथ॑म् । या॒थः । अ॒श्वि॒ना॒ । यत् । वा॒ । वा॒युना॑ । भव॑थः । सम्ऽओ॑कसा । यत् । आ॒दि॒त्येभिः॑ । ऋ॒भुऽभिः॑ । स॒ऽजोष॑सा । यत् । वा॒ । विष्णोः॑ । वि॒ऽक्रम॑णेषु । तिष्ठ॑थः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदिन्द्रेण सरथं याथो अश्विना यद्वा वायुना भवथ: समोकसा । यदादित्येभिॠभुभि: सजोषसा यद्वा विष्णोर्विक्रमणेषु तिष्ठथः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । इन्द्रेण । सरथम् । याथः । अश्विना । यत् । वा । वायुना । भवथः । सम्ऽओकसा । यत् । आदित्येभिः । ऋभुऽभिः । सऽजोषसा । यत् । वा । विष्णोः । विऽक्रमणेषु । तिष्ठथः ॥ ८.९.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 12
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 32; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (अश्विना) हे अश्विनौ ! युवाम् (यत्, इन्द्रेण, सरथम्, याथः) सम्राजा सहरथेन कदाचिद्गच्छथः (यद्, वा) अथवा (वायुना) शीघ्रगामिशूरेण (समोकसा) सस्थानौ (भवथः) भवथः (यद्, आदित्येभिः, ऋभुभिः) कदा सत्यवादिभी राजभिः (संजोषसा) सप्रेमाणौ भवथः (यद्, वा) अथवा (विष्णोः, विक्रमणेषु) सूर्यस्य प्रकाश्येषु देशेषु (तिष्ठथः) स्वतन्त्रं वर्तेथे ॥१२॥

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    विषयः

    पुना राजकर्त्तव्यमाह ।

    पदार्थः

    हे अश्विना=हे अश्विनौ=पुण्यकृतौ राजानौ ! यद्=यदि युवाम् । इन्द्रेण=सभाध्यक्षेण मन्त्रिणा सह । सरथम्=समानमेकरथमास्थाय । याथः=गच्छथः । यद्वा । यदि । वायुना=वायुवत् सर्वत्र प्रवेशकारिणा दूतेन सह । समोकसा=समाननिवासौ । भवथः । यद्वा । यद्=यदि । आदित्यैः=आदित्यवत् प्रतापिभिः सैन्यैः सह । यद्वा । ऋभुभिः=कलाकुशलैर्विद्वद्भिः सह । सजोषसा=सजोषसौ सह प्रीयमाणौ । वर्तेथे । यद्वा=यदि । विष्णोः=विस्तीर्णस्य वनादेः । विक्रमणेषु=भ्रमणेषु । कस्मिंश्चिदपि स्थाने युवां तिष्ठथः । अतः सर्वस्मादपि स्थानात् प्रजानामाह्वाने सति । आगच्छथः ॥१२ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (अश्विना) हे सेनाध्यक्ष तथा सभाध्यक्ष ! आप (यत्, इन्द्रेण, सरथम्, याथः) कदाचित् सम्राट् के सहित चलते हैं (यद्, वा) अथवा कभी (वायुना) शीघ्रगामी शूर के (समोकसा) समान स्थान में (भवथः) रहते हैं (यद्, आदित्येभिः, ऋभुभिः) सत्यतायुक्त राजाओं की (सजोषसा) मैत्री के साथ रहते हैं (यद्, वा) अथवा (विष्णोः, विक्रमणेषु) सूर्य से प्रकाशित यावत् देशों में (तिष्ठथः) स्वतन्त्र विचरते हैं ॥१२॥

    भावार्थ

    हे श्रीमान् सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! सम्राट् के सहगामी तथा उनके समीपवर्ती होने के कारण आप हमारी अभीष्ट कामनाओं को पूर्ण करें, जिससे हमारे याज्ञिक कार्य्य सफलतापूर्वक पूर्ण हों ॥१२॥

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    विषय

    पुनः राजकर्तव्य कहते हैं ।

    पदार्थ

    (अश्विना) हे पुण्यवान् राजा औ अमात्यादिवर्ग ! आप दोनों (यद्) यदि (इन्द्रेण) सभाध्यक्ष मन्त्री के साथ (सरथम्) एक रथ पर (याथः) विराजमान हों । (यद्वा) यद्वा (वायुना) वायुसमान सर्वत्र प्रवेशकारी किसी दूत के साथ (समोकसा) किसी भवन में (भवथः) विचार करते हों (यद्) यद्वा (आदित्यैः) सूर्यवत् प्रतापी सैन्यगणों के साथ यद्वा (ऋभुभिः) कलाकुशल पुरुषों के साथ (सजोषसा) आनन्द करते हों (यद्वा) यद्वा (विष्णोः) वनादिक के (विक्रमणेषु) भ्रमण में (तिष्ठथः) विद्यमान हों । कहीं पर हों, प्रजा की आवश्यकता होने पर वहाँ शीघ्र आ जावें ॥१२ ॥

    भावार्थ

    यदि कोई प्रजा आपत्ति में प्राप्त होकर राजा को बुलावे, तो राजा सर्व आवश्यक कार्यों को छोड़ प्रथम उस प्रजा का उस आपत्ति से उद्धार करे ॥१२ ॥

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    विषय

    पक्षान्तर में राजा और सेनापति के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( अश्विना ) जितेन्द्रिय, अश्वादि के स्वामी, व्यापक सामर्थ्यवान् स्त्री पुरुषो ! ( यत् ) जो आप दोनों (इन्द्रेण ) ऐश्वर्यवान् शत्रुविनाशी राजा सेनापति आदि के साथ ( स-रथं याथः ) रथ के साथ रथ चलाकर प्रयाण करते, वा ( स-रथं याथः ) सरण या युद्ध यात्रा करते हो, ( यद्वा ) अथवा जो आप दोनों ( वायुना समोकसा ) वायु और वायुवत् बलवान् सेनापति के समान भवन या पद वाले ( भवथः ) हो जाओ। ( यद् ) या जो आप दोनों ( ऋभुभिः ) सत्य ज्ञान से प्रकाशित ( आदित्येभिः ) आदित्यवत् तेजस्वी, ब्रह्मचारी विद्वानों के साथ ( स-जोषसा ) समान प्रीति युक्त होवो ( यद् वा ) या तुम दोनों ( विष्णोः ) व्यापक बलशाली राजा के ( विक्रमणेषु ) विशेष विक्रम के कार्यों में ( तिष्ठथः ) उच्चासनों पर बिराजो, वा ( विष्णोः विक्रमणेषु ) परमेश्वर की बनाई सृष्टियों में ज्ञानपूर्वक स्थिर रहो यही तुम्हारे लिये आदर्श, उत्तम कर्त्तव्य और अधिकार है। अर्थात् प्रत्येक स्त्री पुरुष इन उच्च २ पदों तक पहुंचने के लिये साधिकार हैं कि वे यत्न करें और बढ़ें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शशकर्ण: काण्व ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, ४, ६ बृहती। १४, १५ निचृद् बृहती। २, २० गायत्री। ३, २१ निचृद् गायत्री। ११ त्रिपाद् विराड् गायत्री। ५ उष्णिक् ककुष् । ७, ८, १७, १९ अनुष्टुप् ९ पाद—निचृदनुष्टुप्। १३ निचृदनुष्टुप्। १६ आर्ची अनुष्टुप्। १८ वराडनुष्टुप् । १० आर्षी निचृत् पंक्तिः। १२ जगती॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    इन्द्र-वायु-आदित्य-विष्णु

    पदार्थ

    [१] प्राणसाधना हमें जितेन्द्रिय बनाती है। इस बात को इस रूप में कहते हैं कि हे (अश्विना) = प्राणापानो! आपकी साधना के होने पर समय आता है (यत्) = जब कि (इन्द्रेण) = जितेन्द्रिय पुरुष के साथ (सरथं याथः) = समान रथ में गति करते हो । शरीर ही रथ है। इसमें जितेन्द्रिय पुरुष का प्राणों के साथ निवास होता है। (यद् वा) = अथवा आप (वायुना) = वायु के साथ [वा गतौ ] गतिशील पुरुष के साथ (सं ओकसा) = समान गृहवाले (भवथः) = होते हो। अर्थात् प्राणसाधना हमारे जीवनों को बड़ा क्रियाशील बनाती है। [२] हे प्राणापानो ! (यत्) = जब आप (ऋभुभिः) - [उरु भान्ति, ऋतेनभान्ति] खूब ज्ञान - ज्योति से दीप्त होनेवाले (आदित्येभिः) = सब ज्ञानों का आदान करनेवाले पुरुषों के साथ (सजोषसा) = प्रीतियुक्त होते हो, (यद् वा) = अथवा आप विष्णो व्यापक उन्नति करनेवाले पुरुष के (विक्रमणेषु) = [त्रीणि पदा विचक्रमे विष्णुः०] विक्रमणों में, तीन पदों में (तिष्ठथः) = स्थित होते हो। शरीर को 'तैजस' बनाना ही इस विष्णु का प्रथम पद है। मन को 'वैश्वानर' [= सब मनुष्यों के हित की भावनावाला] बनाना दूसरा पद है। मस्तिष्क को 'प्राज्ञ' बनाना नीसरा ये सब पद प्राणसाधना से ही रखे जाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना हमें 'जितेन्द्रिय, क्रियाशील, ज्ञानदीप्त व व्यापक उन्नतिवाला (विष्णु) ' बनाती है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Whether you move with the cosmic force on the same chariot or abide with the wind in the same region, or you move across the sun’s zodiacs or with the cosmic makers, or you move and abide with the vibrance of the omnipresent, wherever you be, pray come to us too.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे श्रीमान सभाध्यक्षा व सेनाध्यक्षा, सम्राटाचे सहभागी व त्यांचे समीपवर्ती असल्यामुळे तुम्ही आमच्या अभीष्ट कामनांना पूर्ण करा. ज्यामुळे आमचे याज्ञिक कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण व्हावे. ॥१२॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    Means for intelligence and communications

    Word Meaning

    To organize nation building projects, provide facilities to your staff to travel on land, by air and in space, to gather intelligence and communication with people with enlisting help of wise experts and technologists. राष्ट्र निर्माण यज्ञ के लिए सम्पूर्ण जानकारी के लिए शासनाधिकारियों को भूमि पर , आकाश में और अन्तरिक्ष मे आने जाने के साधन , उत्तम वैज्ञानिक और यान्त्रिक विशेषज्ञों के योगदानसे उपलब्ध करो.

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