ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
ये वां॒ दंसां॑स्यश्विना॒ विप्रा॑सः परिमामृ॒शुः । ए॒वेत्का॒ण्वस्य॑ बोधतम् ॥
स्वर सहित पद पाठये । वा॒म् । दंसां॑सि । अ॒श्वि॒ना॒ । विप्रा॑सः । प॒रि॒ऽम॒मृ॒शुः । ए॒व । इत् । का॒ण्वस्य॑ । बो॒ध॒त॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
ये वां दंसांस्यश्विना विप्रासः परिमामृशुः । एवेत्काण्वस्य बोधतम् ॥
स्वर रहित पद पाठये । वाम् । दंसांसि । अश्विना । विप्रासः । परिऽममृशुः । एव । इत् । काण्वस्य । बोधतम् ॥ ८.९.३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(अश्विना) हे अश्विनौ ! (ये, विप्रासः) ये मेधाविनः (वां, दंसांसि) युवयोः कर्माणि (परिमामृशुः) परिचरन्ति (काण्वस्य) विद्वत्कुलोत्पन्नस्य ममापि (एव, इत्) एवमेव (बोधतम्) जानीतम् ॥३॥
विषयः
राजकर्त्तव्यमाह ।
पदार्थः
हे अश्विना=अश्विनौ राजानौ ! वाम्=युवयोः । दंसांसि=शुभानि कर्माणि । ये विप्रासः=विप्रा मेधाविनो जनाः । परिमामृशुः=परिमृशन्ति गायन्तीत्यर्थः । तेषां मध्ये काण्वस्य=तत्त्ववेत्तुः पुरुषस्य । एवेत्=काण्वस्यैव । बोधतम्=प्रथमं काण्वमेव स्मरतमित्यर्थः ॥३ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(अश्विना) हे व्यापक बलवाले ! (ये, विप्रासः) जो विद्वान् (वाम्, दंसांसि) आपके कर्मों का (परिमामृशुः) परिचरण करते हैं (काण्वस्य) विद्वानों के कुल में उत्पन्न हुए हम लोगों को भी (एव, इत्) उसी प्रकार (बोधतम्) जानना ॥३॥
भावार्थ
हे बलसम्पन्न सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! जिस प्रकार आप विद्वानों का पालन, पोषण तथा रक्षण करते हैं, उसी प्रकार विद्वानों के कुल में उत्पन्न हम लोगों की भी रक्षा करें, जिससे हम लोग वेदविद्या के सम्पादन द्वारा याज्ञिक कर्मों में प्रवृत्त रहें ॥३॥
विषय
राजकर्त्तव्य कहते हैं ।
पदार्थ
(अश्विना) हे अश्विद्वय हे अश्वयुक्त राजा और राज्ञी ! (वाम्) आप दोनों के (दंसांसि) विविध शुभकर्मों को (ये+विप्रासः) जो मेधावी विद्वज्जन (परि+मामृशुः) गाते हैं, उन सबमें प्रथम (काण्वस्य+एव+इत्) तत्त्वविद् पुरुष को ही (बोधतम्) आप स्मरण रक्खें । क्योंकि तत्त्वविद् पुरुष सर्वश्रेष्ठ हैं, उनकी रक्षा प्रथम कर्त्तव्य है ॥३ ॥
भावार्थ
प्रजाहितचिन्तक राजाओं के यशों को सब ही गाते हैं, इसमें सन्देह नहीं, किन्तु तत्त्ववित् पुरुष राज्य के गुण-दोष जानते हैं और जानकर उनका संशोधन करते हैं । नए-२ अभ्युदय के उपाय नृपों को दिखलाते हैं । इस हेतु बहूपकारक होने से वे प्रथम सर्व प्रकार के सम्मान के योग्य हैं ॥३ ॥
विषय
जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( अश्विना ) जितेन्द्रिय, उत्तम स्त्री पुरुषो ! ( ये ) जो ( विप्रासः ) विद्वान् पुरुष ( वां ) आप लोगों के ( दंसांसि ) नाना प्रकार के कार्यों को ( परि ममृशुः ) करते और उन कार्यों पर विचार करते हैं, उनके किये कार्य और ( काण्वस्य एव इत् ) विद्वानों के किये ज्ञान, अनुष्ठान आदि का भी ( बोधतम् ) तुम ज्ञान प्राप्त करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शशकर्ण: काण्व ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, ४, ६ बृहती। १४, १५ निचृद् बृहती। २, २० गायत्री। ३, २१ निचृद् गायत्री। ११ त्रिपाद् विराड् गायत्री। ५ उष्णिक् ककुष् । ७, ८, १७, १९ अनुष्टुप् ९ पाद—निचृदनुष्टुप्। १३ निचृदनुष्टुप्। १६ आर्ची अनुष्टुप्। १८ वराडनुष्टुप् । १० आर्षी निचृत् पंक्तिः। १२ जगती॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
'प्राण महत्व-चिन्तन'
पदार्थ
[१] ये (विप्रासः) = जो अपना पूरण करनेवाले ज्ञानी पुरुष हैं वे हे (अश्विना) = प्राणापानो! (वाम्) = आपके (दसांसि) = वीरतापूर्ण कर्मों का (परिमामृशुः) = चिन्तन करते हैं। इन कर्मों का चिन्तन करते हुए जिन शुभ कर्मों का [परिमामृशुः ] स्पर्श करते हैं, आपकी साधना के कर्मों में प्रवृत्त होते हैं । [२] (एवा इत्) = ऐसा होने पर ही अर्थात् जब यह आपकी साधना में प्रवृत्त होता है तभी (काण्वस्य) = इस मेधावी पुरुष का आप (बोधतम्) = ध्यान करते हो। समझदार व्यक्ति प्राणों का रक्षण करता है, प्राण उसका रक्षण करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ-हम प्राणों के महत्त्व को समझते हुए प्राणसाधना में प्रवृत्त हों और इन प्राणों द्वारा शक्ति सम्पन्न बनें।
इंग्लिश (1)
Meaning
Ashvins, whatever your actions and achievements which the scholars have known and thought over, reveal the same to the modern scholar too.
मराठी (1)
भावार्थ
हे बलसंपन्न सभाध्यक्षा व सेनाध्यक्षा, ज्या प्रकारे तुम्ही विद्वानांचे पालन, पोषण व रक्षण करता त्याच प्रकारे विद्वान कुलोत्पन्न आमचे रक्षण करा. ज्यामुळे आम्ही वेदविद्येचे संपादन करून याज्ञिक कर्मात प्रवृत्त व्हावे. ॥३॥
हिंगलिश (1)
Subject
Public participation in governance
Word Meaning
जो मेधावी मंत्री गण/ बुद्धिजीवी परामर्शदाता राज्ञ कर्तव्य कर्मों के बारे में परामर्श देते रहते हैं उन को प्रजाजनों को अवगत करा कर शासन करो. Follow the advice of intellectual think tanks, share these strategies with public and act accordingly in governance.
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