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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 13
    ऋषिः - शशकर्णः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    यद॒द्याश्विना॑व॒हं हु॒वेय॒ वाज॑सातये । यत्पृ॒त्सु तु॒र्वणे॒ सह॒स्तच्छ्रेष्ठ॑म॒श्विनो॒रव॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अ॒द्य । अ॒श्विनौ॑ । अ॒हम् । हु॒वेय॑ । वाज॑ऽसातये । यत् । पृ॒त्ऽसु । तु॒र्वणे॑ । सहः॑ । तत् । श्रेष्ठ॑म् । अ॒श्विनोः॑ । अवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदद्याश्विनावहं हुवेय वाजसातये । यत्पृत्सु तुर्वणे सहस्तच्छ्रेष्ठमश्विनोरव: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । अद्य । अश्विनौ । अहम् । हुवेय । वाजऽसातये । यत् । पृत्ऽसु । तुर्वणे । सहः । तत् । श्रेष्ठम् । अश्विनोः । अवः ॥ ८.९.१३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 13
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 32; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (अश्विनौ) हे अश्विनौ ! (यत्, अद्य) यत्सम्प्रति (वाजसातये) युद्धे बलप्राप्तये (अहम्, हुवेय) अहमाह्वयानि (यत्) यच्च (पृत्सु) युद्धेषु (तुर्वणे) शत्रुनाशाय त्वां ह्वयानि (तत्) तत्कारणम् (अश्विनोः) अश्विनोर्युवयोः (सहः) बलम् (अवः) रक्षणं च (श्रेष्ठम्) प्रशस्तमस्ति ॥१३॥

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    विषयः

    राजकर्त्तव्यमाह ।

    पदार्थः

    हे मनुष्याः । अद्य=सम्प्रति । यद्=यदा । अहम्=विद्वान् विज्ञाता । अश्विनौ=प्रजानियोजितौ पुण्यकृतौ राजानौ । वाजसातये=न्यायप्राप्तये । हुवेय=आह्वयामि । तदा । तावागच्छतः । यतः । पृत्सु=पृतनासु=सेनासु । सेनानां तुर्वणे=हिंसने । यत् सहस्तेजोऽभिभवकारकं वर्तते । तद् । अश्विनौ श्रेष्ठमवोरक्षणं विद्यते । अतो यूयमपि तौ सदाऽऽह्वयत ॥१३ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (अश्विनौ) हे सेनाध्यक्ष तथा सभाध्यक्ष ! (यत्, अद्य) जो इस समय (वाजसातये) युद्ध में बलप्राप्ति के लिये (अहं, हुवेय) हम आपका आह्वान करें (यत्) और जो (पृत्सु) युद्धों में (तुर्वणे) शत्रुहिंसन के लिये आह्वान करें (तत्) तो उसका यही हेतु है कि (अश्विनोः) आपका (सहः) बल (अवः) तथा रक्षण (श्रेष्ठम्) सबसे अधिक है ॥१३॥

    भावार्थ

    हे सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! यदि हमें अपनी रक्षा के लिये शत्रुओं के सन्मुख होकर युद्ध करना पड़े, तो आप हमारे रक्षक हों, क्योंकि आप बलवान् होने से विद्वानों की सदैव रक्षा करनेवाले हैं ॥१३॥

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    विषय

    राजकर्त्तव्य कहते हैं ।

    पदार्थ

    हे मनुष्यों ! (अद्य) आजकल (यद्) जब-२ (अहम्) मैं (वाजसातये) न्याय करवाने के लिये (अश्विनौ) प्रजानियोजित पुण्यकृत राजा और अमात्यवर्ग को (हुवेय) बुलाता हूँ, तब-२ वे अवश्य आते हैं, क्योंकि (पृत्सु) दुष्ट सेनाओं की (तुर्वणे) हिंसा करने में (यत्+सहः) जो उनका अभिभवकारी तेज है (तत्) वह (अश्विनोः) अश्विद्वय का (श्रेष्ठम्) श्रेष्ठ (अवः) रक्षण है, अतः उनको आप लोग भी बुलाया करें ॥१३ ॥

    भावार्थ

    जब-२ विद्वान् या मूर्ख प्रजा राजा को न्यायार्थ बुलावें, तब-२ शीघ्र राजा वहाँ पहुँचे ॥१३ ॥

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    विषय

    पक्षान्तर में राजा और सेनापति के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    और ( यत् ) जो ( अद्य ) आज मैं (अश्विनौ) जितेन्द्रिय और अश्वादि के नायकों को (वाज-सातये) अन्न, ऐश्वर्यादि प्राप्ति के लिये सदावत् ( हुवेय ) बुलाया करूं । ( यत् ) क्योंकि जो ( पृत्सु ) संग्राम में ( तुर्वणे ) शत्रु के नाश करने में ( सहः ) शत्रु पराजयकारी बल है ( तत् ) वही ( अश्विनोः ) उन जितेन्द्रिय अश्वादि के स्वामी, जनों का ( श्रेष्ठं अवः ) सर्वश्रेष्ठ बल और रक्षा सामर्थ्य है । यदि राष्ट्र के स्त्री पुरुष युद्ध-काल में शत्रु को परास्त नहीं कर सकें तो वे कुछ नहीं, उनका अन्न वेतनादि पाना, भोजन करना, ऐश्वर्य भोगना आदि सब व्यर्थ है और पाप है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शशकर्ण: काण्व ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, ४, ६ बृहती। १४, १५ निचृद् बृहती। २, २० गायत्री। ३, २१ निचृद् गायत्री। ११ त्रिपाद् विराड् गायत्री। ५ उष्णिक् ककुष् । ७, ८, १७, १९ अनुष्टुप् ९ पाद—निचृदनुष्टुप्। १३ निचृदनुष्टुप्। १६ आर्ची अनुष्टुप्। १८ वराडनुष्टुप् । १० आर्षी निचृत् पंक्तिः। १२ जगती॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    श्रेष्ठं अवः

    पदार्थ

    [१] (यत्) = जब (अद्य) = आज (अहम्) = मैं (अश्विनौ) = प्राणापान का (हुवेय) = आह्वान करूँ, यदि मैं प्राणसाधना में प्रवृत्त होऊँ, तो ये प्राणापान (वाजसातये) = मुझे शक्ति को प्राप्त कराने के लिये हों। [२] (यत्) = क्योंकि प्राणसाधना से (पृत्सु) = संग्रामों में (तुर्वणे) = शत्रुओं के हिंसन के निमित्त (सहः) = बल प्राप्त होता है, (तत्) = सो (अश्विनो:) = इन प्राणापान का (अवः) = रक्षण (श्रेष्ठम्) = श्रेष्ठ है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना के द्वारा शक्ति प्राप्त होती है। शक्ति से शत्रुओं का मर्षण होता है। इस प्रकार प्राणों द्वारा प्राप्त होनेवाला रक्षण श्रेष्ठ है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    When I call upon the Ashvins, defenders of humanity and protectors of life, for the sake of victory in our struggle for existence, or I call on them against the enemies in our conflicts with negativities, they would come, because their courage and force for the defence and protection of life is highest and best.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे सभाध्यक्षा व सेनाध्यक्षा, जर आम्हाला आपल्या रक्षणासाठी शत्रूशी युद्ध करणे भाग पडले तर तुम्ही आमचे रक्षक आहात. कारण तुम्ही बलवान असल्यामुळे विद्वानांचे रक्षण करणारे आहात. ॥१३॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    Fully coordinated Efforts

    Word Meaning

    King should sit for regular dinner meets with all the agencies to ensure harmonious praiseworthy fully coordinated work in nation building for providing internal and external security. राजा को सब शासनाध्यक्षों के साथ सहभोज के आयोजनों द्वारा राष्ट्र की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के सराहनीय और उत्तम कार्यों में सब के सहयोग और समन्वय का वातावरण स्थापित करना चाहिये.

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