ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 108/ मन्त्र 11
ए॒तमु॒ त्यं म॑द॒च्युतं॑ स॒हस्र॑धारं वृष॒भं दिवो॑ दुहुः । विश्वा॒ वसू॑नि॒ बिभ्र॑तम् ॥
स्वर सहित पद पाठए॒तम् । ऊँ॒ इति॑ । त्यम् । म॒द॒ऽच्युत॑म् । स॒हस्र॑ऽधारम् । वृ॒ष॒भम् । दिवः॑ । दु॒हुः॒ । विश्वा॑ । वसू॑नि । बिभ्र॑तम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
एतमु त्यं मदच्युतं सहस्रधारं वृषभं दिवो दुहुः । विश्वा वसूनि बिभ्रतम् ॥
स्वर रहित पद पाठएतम् । ऊँ इति । त्यम् । मदऽच्युतम् । सहस्रऽधारम् । वृषभम् । दिवः । दुहुः । विश्वा । वसूनि । बिभ्रतम् ॥ ९.१०८.११
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 108; मन्त्र » 11
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(त्यमेतमु) एतं परमात्मानं (मदच्युतं) आनन्दपूर्णं (सहस्रधारम्) अनन्तशक्तिमन्तं (दिवो वृषभम्) द्युलोकादानन्दवृष्टिकर्त्तारं (विश्वा, वसूनि) सकलैश्वर्याणि (बिभ्रतं) दधतम् (दुहुः) एवंभूतं तं ज्ञानवृत्तिभिः परिपूरयन्ति ॥११॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(त्यमेतमु) उस उक्त परमात्मा को (मदच्युतम्) जो आनन्द से भरपूर (सहस्रधारम्) अनन्त शक्तियोंवाला (दिवो वृषभम्) द्युलोक से आनन्द की वृष्टि करनेवाला (विश्वा वसूनि) और जो सब ऐश्वर्य्यों के (बिभ्रतम्) धारण करनेवाला है, उसको (दुहुः) ज्ञानवृत्तियों से परिपूर्ण करते हैं ॥११॥
भावार्थ
ज्ञानवृत्तियें परमात्मा का साक्षात्कार इस प्रकार करती हैं कि आवरण भङ्ग करके सर्वव्यापक को अभिव्यक्त करती हैं, इसी का नाम वृत्तिव्याप्ति है ॥११॥
विषय
विश्वा वसूनि बिभ्रतम्
पदार्थ
(एतम्) = इस (उ) = निश्चय से (त्यम्) = उस सोम को (दिवः) = स्वाध्याय द्वारा ज्ञान ज्योति से दीप्त होनेवाले पुरुष (दुहुः) = अपने अन्दर प्रपूरित करते हैं, जो (मदच्युतम्) = आनन्द को प्राप्त करानेवाला है, (सहस्त्रधारम्) = अनेक प्रकार से धारण करनेवाला है, (वृषभम्) = शक्ति का आसेचन करता है । स्वाध्याय द्वारा सुरक्षित यह सोम (विश्वा वसूनि बिभ्रतम्) = सब वसुओं का शरीर में भरण करनेवाला है। जीवन के लिये सब आवश्यक तत्त्वों को यह प्राप्त कराता है।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम आनन्द को देनेवाला, शक्ति का सेचन करनेवाला व सब निवास के लिये आवश्यक तत्त्वों को प्राप्त करानेवाला है।
विषय
समस्त ऐश्वर्य के स्वामी से प्रार्थना का उपदेश।
भावार्थ
(एतम्) उस (त्यं) परम (सहस्र-धारं) मेघ के तुल्य सहस्रों धारक शक्तियों के स्वामी, सहस्रों वेदवाणियों से स्तुति करने योग्य, (वृषभं) मेघवत् अनेक, अनन्त सुखों, ऐश्वर्यों की वर्षा करने वाले प्रभु से (दिवः) नाना कामना करने वाले पुरुष (दुहुः) रस-आनन्द का दोहन करते और अपने नाना मनोरथ पूर्ण करते हैं। वे (विश्वा वसूनि बिभ्रतम्) समस्त ऐश्वर्यों को धारण करने वाले उसी प्रभु को प्राप्त कर, (विश्वा वसूनि दुहुः) समस्त ऐश्वर्य उसी से प्राप्त करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः– १, २ गौरिवीतिः। ३, १४-१६ शक्तिः। ४, ५ उरुः। ६, ७ ऋजिष्वाः। ८, ९ ऊर्द्धसद्मा। १०, ११ कृतयशाः। १२, १३ ऋणञ्चयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ९, ११ उष्णिक् ककुप्। ३ पादनिचृदुष्णिक् । ५, ७, १५ निचृदुष्णिक्। २ निचृद्वहती। ४, ६, १०, १२ स्वराड् बृहती॥ ८, १६ पंक्तिः। १३ गायत्री ॥ १४ निचृत्पंक्तिः॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This treasure trove of the wealth, honour and excellence of existence, overflowing with honey sweets of ecstasy in a thousand streams, virile, brilliant and generous, the sages worship and they receive the milky grace of divinity for life and joy.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्ञानवृत्ती परमेश्वराचा साक्षात्कार या प्रकारे करतात की आवरण भंग करून सर्वव्यापक परमेश्वराला अभिव्यक्त करतात. त्याचेच नाव वृत्तिव्याप्ती आहे. ॥११॥
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