ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 108/ मन्त्र 3
त्वं ह्य१॒॑ङ्ग दैव्या॒ पव॑मान॒ जनि॑मानि द्यु॒मत्त॑मः । अ॒मृ॒त॒त्वाय॑ घो॒षय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । हि । अ॒ङ्ग । दैव्या॑ । पव॑मान । जनि॑मानि । द्यु॒मत्ऽत॑मः । अ॒मृ॒त॒ऽत्वाय॑ । घो॒षयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं ह्य१ङ्ग दैव्या पवमान जनिमानि द्युमत्तमः । अमृतत्वाय घोषय: ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । हि । अङ्ग । दैव्या । पवमान । जनिमानि । द्युमत्ऽतमः । अमृतऽत्वाय । घोषयः ॥ ९.१०८.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 108; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पवमान) हे सर्वस्य पावक परमात्मन् ! (त्वं, दैव्या, जनिमानि) पवित्रजन्मान्यभिलक्ष्य (द्युमत्तमः) दीप्तिमान् भवान् (अमृतत्वाय) अमृतभावाय (घोषयः) घोषणं करोति (हि) निश्चयेन (अङ्ग) हे सर्वप्रिय ! भवानेव सर्वेषां कल्याणं करोति ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (त्वम्, दैव्या, जनिमानि) पवित्र जन्मों को लक्ष्य रखकर (द्युमत्तमः) दीप्तिवाले आप (अमृतत्वाय) अमृतभाव का (घोषयः) घोषण करते हैं (हि) निश्चय करके (अङ्ग) हे सर्वप्रिय परमात्मन् ! आप ही सबका कल्याण करनेवाले हैं ॥३॥
भावार्थ
वही परमपिता परमात्मा विद्वान् तथा सत्कर्मी जीवों को कल्याण के देनेवाले और वही सबका पालन पोषण करनेवाले हैं ॥३॥
विषय
द्युमत्तमः
पदार्थ
हे (अंग) = गतिशील जीवन को स्फूर्तिमय बनानेवाले (पवमान) = पवित्र करनेवाले सोम ! (त्वं हि) = तू ही (दैव्या जनिमानि) = सब देवों से सम्बद्ध, सब इन्द्रियों से सम्बद्ध शक्ति विकासों को (अमृतत्वाय घोषयः) = अमृतत्व के लिये घोषित करता है। बाह्य जगत् के सब सूर्य आदि देव शरीर में चक्षु आदि इन्द्रियों के रूप में निवास करते हैं। इन देवों की शक्ति का विकास इस सोम के द्वारा ही होता है । सोम से शक्ति सम्पन्न बन सब इन्द्रियाँ अक्षीण शक्ति व अमर बनी रहती हैं। हे सोम ! तू ही (द्युमत्तमः) = जीवन को अधिक से अधिक ज्योतिर्मय बनानेवाला है । सोम ही ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम ही सब इन्द्रियों की अक्षीण शक्ति व अमर बनाता है यह ही जीवन को ज्योतिर्मय करता है।
विषय
परम पावन से प्रार्थनाएं।
भावार्थ
(अंग) हे (पवमान) परम पावन ! (त्वं हि) निश्चय तू ही (द्युमत्-तमः) अति तेजोमय, दीप्तिमान्, (जनिमानि) उत्पन्न होने वाले जीवों को (अमृतत्वाय घोषयः) अमृत पद, मोक्ष प्राप्ति का उपदेश करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः– १, २ गौरिवीतिः। ३, १४-१६ शक्तिः। ४, ५ उरुः। ६, ७ ऋजिष्वाः। ८, ९ ऊर्द्धसद्मा। १०, ११ कृतयशाः। १२, १३ ऋणञ्चयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ९, ११ उष्णिक् ककुप्। ३ पादनिचृदुष्णिक् । ५, ७, १५ निचृदुष्णिक्। २ निचृद्वहती। ४, ६, १०, १२ स्वराड् बृहती॥ ८, १६ पंक्तिः। १३ गायत्री ॥ १४ निचृत्पंक्तिः॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, dear as life, pure and purifying, most refulgent enlightened spirit, only you can call up bom humanity to holy life and proclaim the path to immortality.
मराठी (1)
भावार्थ
परमपिता परमात्मा विद्वान व सत्कर्मी जीवांचे कल्याण करणारा आहे व तोच सर्वांचे पालनपोषण करणारा आहे. ॥३॥
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