ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 108/ मन्त्र 4
येना॒ नव॑ग्वो द॒ध्यङ्ङ॑पोर्णु॒ते येन॒ विप्रा॑स आपि॒रे । दे॒वानां॑ सु॒म्ने अ॒मृत॑स्य॒ चारु॑णो॒ येन॒ श्रवां॑स्यान॒शुः ॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑ । नव॑ऽग्वः । द॒ध्यङ् । अ॒प॒ऽऊ॒र्णु॒ते । येन॑ । विप्रा॑सः । आ॒पि॒रे । दे॒वाना॑म् । सु॒म्ने । अ॒मृत॑स्य । चारु॑णः । येन॑ । श्रवां॑सि । आ॒न॒शुः ॥
स्वर रहित मन्त्र
येना नवग्वो दध्यङ्ङपोर्णुते येन विप्रास आपिरे । देवानां सुम्ने अमृतस्य चारुणो येन श्रवांस्यानशुः ॥
स्वर रहित पद पाठयेन । नवऽग्वः । दध्यङ् । अपऽऊर्णुते । येन । विप्रासः । आपिरे । देवानाम् । सुम्ने । अमृतस्य । चारुणः । येन । श्रवांसि । आनशुः ॥ ९.१०८.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 108; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(येन) येन तवानन्देन (नवग्वः) नवाः (दध्यङ्) ध्यानिजनाः (अपोर्णुते) सदुपदेशेन लोकान् सुस्थापयन्ति (येन) येन च (विप्रासः) मेधाविनः (आपिरे) प्राप्यन्ते (येन) येन च (देवानाम्) विदुषां (चारुणः, अमृतस्य, सुम्ने) अमृतायेव चारुसुखाय जिज्ञासुर्विराजते, येन च (श्रवांसि) यशांसि (आनशुः) भुञ्जन्ति स केवलं भवत एवानन्दः ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(येन) जिस तुम्हारे आनन्द से (नवग्वः) नवीन पुरुष (दध्यङ्) ध्यानी लोग (अपोर्णुते) सदुपदेशों द्वारा लोगों को सुरक्षित करते हैं, (येन) जिससे (विप्रासः) मेधावी लोग (आपिरे) प्राप्त होते हैं, (देवानाम्, सुम्ने, चारुणः, अमृतस्य) विद्वानों के अमृतरूपी सुख में जिज्ञासु विराजमान होता है, (येन) जिससे (श्रवांसि) यशों को (आनशुः) भोगता है, वह एकमात्र आप ही का आनन्द है ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा ही अपने अनादिसिद्ध ज्ञान द्वारा लोगों को सन्मार्ग की प्रेरणा करता, वही सद्विद्यारूपी वेदों से सबका सुधार करता और वही सबको आनन्द प्रदान करनेवाला है ॥४॥
विषय
चारुणः अमृतस्य
पदार्थ
यह सोम वह है (येन) = जिसके द्वारा (नवग्वः) = स्तुत्य गतिवाला [नु स्तुतौ] (दध्यड्) = ध्यानशील पुरुष (अप ऊर्णुते) = अज्ञान के आवरण को दूर करता है। (येन) = जिसके द्वारा (विप्रासः) = अपना विशेष रूप से पूरण करनेवाले लोग (आपिरे) = उस प्रभु को प्राप्त करते हैं। यह सोम वह है (येन) = जिसके द्वारा (देवानां सुम्ने) = देववृत्ति के पुरुषों के प्रभु स्तवन के होने पर [ सुम्न = Hymn ] (चारुणः अमृतस्य) = अत्यन्त कल्याणकर अमृतत्व को (आनशुः) = प्राप्त करते हैं तथा जिससे श्रवांसि ज्ञानों को प्राप्त करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से अज्ञान का आवरण दूर होता है, प्रभु की प्राप्ति होती है, प्रभु स्तवन करते हुए हम मोक्ष को प्राप्त करते हैं, ज्ञानवृद्धि का यह सोमरक्षण कारण बनता है ।
विषय
अमृतत्वरूप मोक्ष की ओर
भावार्थ
(येन) जिस के द्वारा (दध्यङ्) धारण और ध्यान का अभ्यासी, (नवग्वः) उत्तम प्रशस्त मार्ग से जाने वाला, (चारुणः अमृतस्य) भोक्ता अमृत, आत्मा के स्वरूप को (अप ऊर्णुते) खालता है, (येन) जिससे (विप्रासः) विद्वान् ज्ञानी पुरुष (देवानां) विद्वाना वा इन्द्रियों के (सुम्ने) सुख में (अमृतस्य चारुणः) अमर फल के भोक्ता आत्मा के (श्रवांसि) ज्ञानों को प्राप्त करते हैं। और (येन श्रवांसि आनशुः) जिससे वे नाना ज्ञान प्राप्त करते हैं वही उनको (अमृत-त्वाय घोषयः) अमृत होने का उपदेश करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः– १, २ गौरिवीतिः। ३, १४-१६ शक्तिः। ४, ५ उरुः। ६, ७ ऋजिष्वाः। ८, ९ ऊर्द्धसद्मा। १०, ११ कृतयशाः। १२, १३ ऋणञ्चयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ९, ११ उष्णिक् ककुप्। ३ पादनिचृदुष्णिक् । ५, ७, १५ निचृदुष्णिक्। २ निचृद्वहती। ४, ६, १०, १२ स्वराड् बृहती॥ ८, १६ पंक्तिः। १३ गायत्री ॥ १४ निचृत्पंक्तिः॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma is that spirit of enlightenment by which the meditative sages on way to divinity open up the path to immortality, by which the saints attain to the peace and well being worthy of divinities, and by which the lovers of immortality obtain their desired ambition and fulfilment.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्माच आपल्या अनादि सिद्ध ज्ञानाद्वारे लोकांना सन्मार्गाची प्रेरणा करतो. तोच सद्विद्यारूपी वेदाद्वारे सर्वांची सुधारणा करतो व तोच सर्वांना आनंद देणारा आहे. ॥४॥
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