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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 108 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 108/ मन्त्र 14
    ऋषिः - शक्तिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    यस्य॑ न॒ इन्द्र॒: पिबा॒द्यस्य॑ म॒रुतो॒ यस्य॑ वार्य॒मणा॒ भग॑: । आ येन॑ मि॒त्रावरु॑णा॒ करा॑मह॒ एन्द्र॒मव॑से म॒हे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्य॑ । नः॒ । इन्द्रः॑ । पिबा॑त् । यस्य॑ । म॒रुतः॑ । यस्य॑ । वा॒ । अ॒र्य॒मणा॑ । भगः॑ । आ । येन॑ । मि॒त्रावरु॑णा । करा॑महे । आ । इन्द्र॑म् । अव॑से । म॒हे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्य न इन्द्र: पिबाद्यस्य मरुतो यस्य वार्यमणा भग: । आ येन मित्रावरुणा करामह एन्द्रमवसे महे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्य । नः । इन्द्रः । पिबात् । यस्य । मरुतः । यस्य । वा । अर्यमणा । भगः । आ । येन । मित्रावरुणा । करामहे । आ । इन्द्रम् । अवसे । महे ॥ ९.१०८.१४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 108; मन्त्र » 14
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    यः परमात्मा (नः) अस्माकं स्वामी (यस्य) यस्यानन्दं (इन्द्रः) कर्मयोगी (पिबात्) पिबति (यस्य, मरुतः) यदानन्दं विद्वद्गणः पिबति (यस्य) यदानन्दं (अर्यमणा) कर्मणा सह (भगः) कर्मयोगी पिबति (येन) येन च (मित्रावरुणा) अध्यापकोपदेशकौ (करामहे) सदुपदिशतः (महे, अवसे) अत्यन्तरक्षायै (इन्द्रम्) यः परमात्मा कर्मयोगिनमुत्पादयति स एवास्माभिरुपास्यदेवो ज्ञातव्यः ॥१४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (नः) हमारा स्वामी परमात्मा (यस्य) जिसके आनन्द को (इन्द्रः) कर्मयोगी (पिबात्) पान करते, (यस्य) जिसके आनन्द को (मरुतः) विद्वानों का गण पान करता, (यस्य) जिसके आनन्द को (अर्यमणा) कर्मों के साथ (भगः) कर्मयोगी उपलब्ध करता और (येन) जिससे (मित्रावरुणा) अध्यापक तथा उपदेशक (करामहे) सदुपदेश करते हैं, (महे, अवसे) अत्यन्त रक्षा के लिये (इन्द्रम्) कर्मयोगी को जो उत्पन्न करता है, वही हमारा उपास्य देव है ॥१४॥

    भावार्थ

    जो परमात्मा नाना प्रकार की विद्यायें और इन विद्याओं के वेत्ता कर्मयोगी तथा ज्ञानयोगियों को उत्पन्न करता, जिससे शिक्षा प्राप्त करके अध्यापक तथा उपदेशक धर्मोपदेश करते और जो दुष्टदमन के लिये रक्षक उत्पन्न करता है, वही हमारा पूजनीय देव है, उसी की उपासना करनी योग्य है ॥१४॥

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    विषय

    'इन्द्र, मरुत् अर्यमा व भग'

    पदार्थ

    गतमन्त्र की ही क्रिया यहाँ अनुवृत्त होती है । 'सः सुन्वे ' = वह सोम उत्पन्न किया जाता है (यस्य) = जिसका (नः) = हमारे में से (इन्द्रः पिबात्) = जितेन्द्रिय पुरुष पान करता है । (यस्य) = जिसका (मरुतः) = प्राण पान करते हैं, अर्थात् प्राणसाधक पुरुष जिसका पान करता है (वा) = अथवा (यस्य) = जिसका पान (अर्यमणा) = [अरीन् यच्छति] शत्रुओं का नियमन करनेवाले के साथ (भगः) = [भज सेवायाम्] प्रभु भजन करनेवाला पुरुष करता है वह सोम उत्पन्न किया जाता है येन जिससे कि मित्रावरुणा स्नेह व निर्देषता [द्वेष निवारण] के भावों को हम (आकरामहे) = सिद्ध कर पाते हैं। जिस सोम के द्वारा हम (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को अपने आभिमुख कर पाते हैं जो (महे अवसे) = हमारे महान् रक्षण के लिये होते हैं। प्रभु का दर्शन हमारे सब शत्रुओं का विध्वंस कर देता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण के लिये 'जितेन्द्रियता, प्राणसाधना, शत्रु नियमन व प्रभु भजन' साधन बनते हैं । सुरक्षित सोम से हम 'स्नेह व निर्दोषता' को प्राप्त करके प्रभु दर्शन कर पाते हैं।

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    विषय

    सर्वगुरु प्रभु को स्वीकार करना।

    भावार्थ

    (यस्य) जिसके बल से (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् प्रभु (नः) हमारा (पिबात्) पालन करता है। अथवा (यस्य) जिसके दिये को (नः इन्द्रः पिबात्) हमारा आत्मा वा राजा पान करता, उपभोग करता है, (यस्य वा मरुतः) और जिसके दिये ऐश्वर्य को ये प्राणगण वा मनुष्य जन भोग करते हैं, और (यस्य वा अर्यमणा भगः) जिसके ऐश्वर्य को शत्रुओं का नियन्ता ऐश्वर्यवान् राजा भी भोगता है (येन) जिसके द्वारा हम लोग (मित्रावरुणौ) मित्र स्नेही जन और वरुण श्रेष्ठ जनों को (आ करामहे) प्राप्त करते हैं और जिसकी कृपा से हम (अवसे महे) अपनी बड़ी भारी रक्षा के लिये (इन्द्रम् आकरामहे) अपने तेजोमय आत्मा वा तेजस्वी स्वामी वा गुरु को स्वीकार करते हैं वही ‘सोम’ है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः– १, २ गौरिवीतिः। ३, १४-१६ शक्तिः। ४, ५ उरुः। ६, ७ ऋजिष्वाः। ८, ९ ऊर्द्धसद्मा। १०, ११ कृतयशाः। १२, १३ ऋणञ्चयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ९, ११ उष्णिक् ककुप्। ३ पादनिचृदुष्णिक् । ५, ७, १५ निचृदुष्णिक्। २ निचृद्वहती। ४, ६, १०, १२ स्वराड् बृहती॥ ८, १६ पंक्तिः। १३ गायत्री ॥ १४ निचृत्पंक्तिः॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma is the omniscient and omnipotent divine spirit, whose ecstatic presence, our soul experiences, whose powers, our vibrant forces experience and adore, by whose path and guidance our power and honour moves and moves forward, by whose grace we develop our pranic energies and our sense of love and judgement, and by whose word and grace we anoint and consecrate our ruler for our high level of defence and security.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो परमात्मा नाना प्रकारची विद्या व या विद्येचा वेत्ता कर्मयोगी व ज्ञानयोगी यांना उत्पन्न करतो. ज्याच्याकडून ज्ञान प्राप्त करून अध्यापक व उपदेशक धर्मोपदेश करतात व जो दुष्टदमनासाठी रक्षक उत्पन्न करतो तोच आमचा पूज्य देव आहे. त्याचीच उपासना करणे योग्य आहे. ॥१४॥

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