ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 108/ मन्त्र 7
आ सो॑ता॒ परि॑ षिञ्च॒ताश्वं॒ न स्तोम॑म॒प्तुरं॑ रज॒स्तुर॑म् । व॒न॒क्र॒क्षमु॑द॒प्रुत॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । सो॒त॒ । परि॑ । सि॒ञ्च॒त॒ । अश्व॑म् । न । स्तोम॑म् । अ॒प्ऽतुर॑म् । र॒जः॒ऽतुर॑म् । व॒न॒ऽक्र॒क्षम् । उ॒द॒ऽप्रुत॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ सोता परि षिञ्चताश्वं न स्तोममप्तुरं रजस्तुरम् । वनक्रक्षमुदप्रुतम् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । सोत । परि । सिञ्चत । अश्वम् । न । स्तोमम् । अप्ऽतुरम् । रजःऽतुरम् । वनऽक्रक्षम् । उदऽप्रुतम् ॥ ९.१०८.७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 108; मन्त्र » 7
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अश्वम्, न) यः विद्युदिव (अप्सुरम्) अन्तरिक्षपदार्थान् सुगत्या योजयति (रजस्तुरम्) तेजस्विपदार्थेभ्यश्च गतिं ददाति यश्च (वनक्रक्षं, उदप्रुतम्) सर्वत्रैव ओतप्रोतोऽस्ति तं (स्तोमं) स्तुत्यर्हं परमात्मानं (परि, सिञ्चत) उपासनारूपवारिणा सम्यक् सिञ्चत (आ) समन्तात् (सोत) साक्षात्कुरुत ॥७॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अश्वम्, न) जो विद्युत् के समान (अप्तुरम्) अन्तरिक्षस्थ पदार्थों को गति देनेवाला (रजस्तुरम्) तेजस्वी पदार्थों को गति देनेवाला और (वनक्रक्षम्, उदप्रुतम्) जो सर्वत्र ओतप्रोत हो रहा है, ऐसे (स्तोमम्) स्तुतियोग्य परमात्मा को (परिसिञ्चत, आ) अपनी उपासनारूप वारि से भले प्रकार सिञ्चन करते हुए उसका (सोत) साक्षात्कार करें ॥७॥
भावार्थ
विद्युदादि नानाविध कियाशक्तियों का प्रदाता, निर्माता तथा प्रकाशक एकमात्र परमात्मा ही है, वही सबका उपासनीय और वही सबको कल्याण का देनेवाला है ॥७॥
विषय
वनक्रक्षम् - उदप्रुतम्
पदार्थ
(आसोत) = इस सोम को सर्वथा अपने में उत्पन्न करो, तथा (परिषिञ्चत) = शरीर में चारों ओर सिक्त करो। उस सोम को, जो (अश्वं न) = एक अश्व के समान (स्तोमम्) = स्तव्य है। जैसे एक घोड़ा संग्राम में विजय का कारण बनता है, उसी प्रकार यह सोम जीवन संग्राम में विजय का साधक होता है। यह सोम हमें (अप्तुरम्) = कर्मों में प्रेरित करता है और (रजस्तुरम्) = राजसी भावों को हिंसित करता है, यह सोम (वनक्रक्षं) = उपासकों के जीवन में वासनाओं को कुचलनेवाला है [क्रक्ष् crush] तथा (उदप्रुतम्) = ज्ञानजल को जीवन में गति देनेवाला है।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से क्रियाशीलता बढ़ती है, राजसभाव नष्ट होते हैं, वासनाएँ विकीर्ण हो जाती हैं, और ज्ञानजल प्रवाहित होता है।
विषय
सर्वसञ्चालक अव्यक्त प्रभु की उपासना।
भावार्थ
हे विद्वान् जनो ! आप लोग (अश्वं न स्तोमं) अश्व के समान वेगवान्, बलवान्, व्यापक, स्तुतियोग्य, (अप्-तुरम्) प्रकृति परमाणुओं के चलाने वाले, (रजः-तुरम्) समस्त लोक लोकान्तरों के संचालक (वनक्रक्षम्) तेज, भोग्य ऐश्वर्यों, लोकों में व्यापक, काष्ठों में अग्नि के तुल्य अव्यक्त, (उद-प्रुतम्) जल से पूर्ण समुद्र वा जलाशय के तुल्य प्रभु की (आ सोत परि सिंचत) आदर से उपासना करो और उसके रस से ही अपने को बढ़ाओ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः– १, २ गौरिवीतिः। ३, १४-१६ शक्तिः। ४, ५ उरुः। ६, ७ ऋजिष्वाः। ८, ९ ऊर्द्धसद्मा। १०, ११ कृतयशाः। १२, १३ ऋणञ्चयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ९, ११ उष्णिक् ककुप्। ३ पादनिचृदुष्णिक् । ५, ७, १५ निचृदुष्णिक्। २ निचृद्वहती। ४, ६, १०, १२ स्वराड् बृहती॥ ८, १६ पंक्तिः। १३ गायत्री ॥ १४ निचृत्पंक्तिः॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O celebrants, come, realise and all-ways serve Soma like sacred adorable energy impelling as particles of water and rays of light, the spirit pervasive in the universe and deep as the bottomless ocean.
मराठी (1)
भावार्थ
विद्युत इत्यादी नानाविध क्रियाशक्तींचा प्रदाता निर्माता व प्रकाशक एकमेव परमात्माच आहे तोच सर्वांचा उपासनीय व सर्वांचे कल्याण करणारा आहे ॥७॥
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