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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 108 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 108/ मन्त्र 8
    ऋषिः - ऊर्ध्वसद्मा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    स॒हस्र॑धारं वृष॒भं प॑यो॒वृधं॑ प्रि॒यं दे॒वाय॒ जन्म॑ने । ऋ॒तेन॒ य ऋ॒तजा॑तो विवावृ॒धे राजा॑ दे॒व ऋ॒तं बृ॒हत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒हस्र॑ऽधारम् । वृ॒ष॒भम् । प्चायः॒ऽवृध॑म् । प्रि॒यम् । दे॒वाय॑ । जन्म॑ने । ऋ॒तेन॑ । यः । ऋ॒तऽजा॑तः । वि॒ऽव॒वृ॒धे । राजा॑ । दे॒वः । ऋ॒तम् । बृ॒हत् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सहस्रधारं वृषभं पयोवृधं प्रियं देवाय जन्मने । ऋतेन य ऋतजातो विवावृधे राजा देव ऋतं बृहत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सहस्रऽधारम् । वृषभम् । प्चायःऽवृधम् । प्रियम् । देवाय । जन्मने । ऋतेन । यः । ऋतऽजातः । विऽववृधे । राजा । देवः । ऋतम् । बृहत् ॥ ९.१०८.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 108; मन्त्र » 8
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सहस्रधारम्) योऽनेकधानन्दधाराभिः (वृषभं) कामनानां पूरकः (पयोवृधं) योऽन्नाद्यैश्वर्येण परिपूर्णः (प्रियं) यः सर्वप्रियः तस्य परमात्मनः (देवाय, जन्मने) दिव्यजन्मने प्रार्थनां करोमि (यः) यश्च (ऋतेन) प्रकृतिरूपस्तेन (ऋतजातः) ऋतजातोऽस्ति (विवावृधे) यः सर्वत्र विशेषेण वृद्धिं प्राप्तः यश्च (देवः) दिव्यस्वरूपः (राजा) सर्वभूतस्वामी च (ऋतं, बृहत्) सर्वोपरि सत्यः तमुपासीमहि वयम् ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सहस्रधारम्) जो अनन्त प्रकार की आनन्दधाराओं से (वृषभम्) कामनाओं का पूर्ण करनेवाला (पयोवृधम्) जो अन्नादि ऐश्वर्य्यों से परिपूर्ण और (प्रियम्) जो सर्वप्रिय है, ऐसे परमात्मा से मैं (देवाय, जन्मने) दिव्यजन्म के लिये प्रार्थना करता हूँ, जो (ऋतेन) प्रकृतिरूपी ऋत से (ऋतजातः) ऋतजात अर्थात् सर्वत्र विद्यमान है, (विवावृधे) जो सर्वत्र विशेषरूप से वृद्धि को प्राप्त है, (यः) जो (देवः) दिव्यस्वरूप और जो (राजा) सब भूतों का स्वामी है, वही (ऋतं बृहत्) एकमात्र सर्वोपरि सत्य है, उसी परमात्मा की हम लोग उपासना करें ॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में प्रकृति को “ऋत” इस अभिप्राय से कहा गया है कि प्रकृति परिणामी नित्य है–अर्थात् परिणाम को प्राप्त होकर नाश नहीं होती, शेष सब अर्थ स्पष्ट है ॥८॥

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    विषय

    राजा देवः ऋतं बृहत्

    पदार्थ

    गतमन्त्र की ' आसोत-परिषिञ्चत' क्रिया ही यहाँ भी अनुवृत्त होती है। उस सोम को उत्पन्न करो और शरीर में चारों ओर सिक्त करो जो (सहस्त्राधारम्) = हजारों प्रकार से धारण करनेवाला है, (वृषभम्) = शक्ति का सेचन करनेवाला है, (पयोवृधम्) = ज्ञानजल को बढ़ानेवाला है, (प्रियम्) = प्रीति का जनक है और (देवाय जन्मने) = दिव्यगुणों के जन्म के लिये होता है। (यः) = जो सोम (ऋतजातः) = ऋत के निमित्त यज्ञ के निमित्त उत्पन्न हुआ हुआ ऋतेन इन यज्ञों से (विवावृधे) = विशिष्ट वृद्धि को प्राप्त करता है। राजा दीप्त होता है, (देवः) = दिव्यगुण सम्पन्न होता है। यह सोम (बृहत् ऋतम्) = महान् ऋत है। इसी से जीवन में सब यज्ञ व ठीक बातें होती हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम हमारे जीवन में दिव्यगुणों को जन्म देता है। यह हमें दीप्तिमान् बनाता है। महान् ऋत का कारण बनता है।

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    विषय

    राजावत् आत्मा की उपासना।

    भावार्थ

    (सहस्र धारम्) सहस्रों धाराओं वाले मेघ के तुल्य सहस्रों शक्तियों से सम्पन्न, (वृषभम्) समस्त सुखों के वर्षक, (पयः- वृधम्) अन्न आदि पुष्टिकारक पदार्थों को बढ़ाने वाले, (जन्मने देवाय प्रियम्) जन्म लेने वाले देव, आत्मा को तृप्त करने वाले की उपासना करो, (यः) जो (ऋत-जातः) ऋत, सत्यज्ञान रूप में प्रकट होने वाले (ऋतेन) अपने ज्ञान, बल और सामर्थ्य से (देवः राजा) चमचमाते सूर्य वा राजा के तुल्य (बृहत् ऋतम् वावृधे) बड़े भारी सत्य ज्ञान को बढ़ाता, व्यक्त जगत् को फैलाता है। (२) पक्षान्तर में—राजा (ऋतेन) ज्ञानमय वेद के द्वारा (बृहत् ऋतं वि वावृधे) बड़े भारी सत्य-न्याय की वृद्धि करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः– १, २ गौरिवीतिः। ३, १४-१६ शक्तिः। ४, ५ उरुः। ६, ७ ऋजिष्वाः। ८, ९ ऊर्द्धसद्मा। १०, ११ कृतयशाः। १२, १३ ऋणञ्चयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ९, ११ उष्णिक् ककुप्। ३ पादनिचृदुष्णिक् । ५, ७, १५ निचृदुष्णिक्। २ निचृद्वहती। ४, ६, १०, १२ स्वराड् बृहती॥ ८, १६ पंक्तिः। १३ गायत्री ॥ १४ निचृत्पंक्तिः॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    For the rise of the self to the state of divine refulgence, let us serve and adore Soma, divine spirit of a thousand streams and showers, potent and generous, augmenter of the milk of life, dear as father and friend, who, manifestive in the laws of universal existence, pervades the expansive creativity of divine power and is the self-refulgent ruler, generous divinity and the infinite law, truth and ultimate reality itself.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात प्रकृतीला ‘‘ऋत’’ म्हटलेले आहे. प्रकृती परिणामी नित्य आहे. अर्थात्, परिणाम होऊनही तिचा नाश होत नाही. बाकी सर्व अर्थ स्पष्ट आहे. ॥८॥

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