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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 108 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 108/ मन्त्र 15
    ऋषिः - शक्तिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    इन्द्रा॑य सोम॒ पात॑वे॒ नृभि॑र्य॒तः स्वा॑यु॒धो म॒दिन्त॑मः । पव॑स्व॒ मधु॑मत्तमः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑य । सो॒म॒ । पात॑वे । नृऽभिः॑ । य॒तः । सु॒ऽआ॒यु॒धः । म॒दिन्ऽत॑मः । पव॑स्व । मधु॑मत्ऽतमः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्राय सोम पातवे नृभिर्यतः स्वायुधो मदिन्तमः । पवस्व मधुमत्तमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्राय । सोम । पातवे । नृऽभिः । यतः । सुऽआयुधः । मदिन्ऽतमः । पवस्व । मधुमत्ऽतमः ॥ ९.१०८.१५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 108; मन्त्र » 15
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (इन्द्राय, पातवे) कर्मयोगितृप्तये (नृभिर्यतः) मनुष्यैः साक्षात्कृतो भवान् (मधुमत्तमः) अत्यन्तमधुरान् (मदिन्तमः) आह्लादकांश्च गुणान् धारयति (स्वायुधः) स्वाभाविकशक्तिप्रदो भवान् (पवस्व) मज्ज्ञानविषयो भवतु ॥१५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (इन्द्राय, पातवे) कर्मयोगी की तृप्ति के लिये (नृभिः, यतः) साक्षात्कार किये हुए आप जो (मधुमत्तमः) अत्यन्त मीठे और (मदिन्तमः) आह्लादक गुणों को धारण किये हुए हैं, (स्वायुधः) स्वाभाविक शक्तिप्रद आप (पवस्व) हमारे ज्ञान का विषय हों ॥१५॥

    भावार्थ

    हे आनन्दवर्द्धक तथा आह्लादजनक गुणसम्पन्न परमात्मन् ! आप ऐसी कृपा करें कि हम लोग ज्ञानयोगी तथा कर्मयोगी बनकर आपका साक्षात्कार करते हुए आनन्द को प्राप्त हों ॥१५॥

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    विषय

    मदिन्तमः - मधुमत्तमः

    पदार्थ

    हे (सोम) = वीर्य ! तू (इन्द्राय पातवे) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये पान के लिये (पवस्व) = प्राप्त हो । जितेन्द्रिय पुरुष तेरा पान करनेवाला बने । (नृभिः) = उन्नतिपथ पर चलनेवाले मनुष्यों से (यतः) = संयत हुआ हुआ तू (स्वायुधः) = उत्तम 'इन्द्रिय, मन व बुद्धि' रूप आयुधों वाला हो। (मदिन्तमः) अतिशयेन उल्लास को प्राप्त करानेवाला बन । (मधुमत्तमः) = जीवन को अत्यन्त मधुर बनानेवाला तू (पवस्व) = हमें प्राप्त हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ-जितेन्द्रिय व उन्नतिपथ पर चलने वालों से सुरक्षित हुआ हुआ सोम इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि' को उत्तम बनाता है उल्लास व माधुर्य को उत्पन्न करता है ।

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    विषय

    उत्तम शासक के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (सोम) ऐश्वर्यवन् ! हे उत्तम शासन करने हारे ! हे अभिषेक-योग्य ! तू (इन्द्राय पातवे) ऐश्वर्यप्रद राज्य-पद के पालन के लिये, (सु-आयुधः) उत्तम शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित होकर (नृभिः यतः) नायक उत्तम जनों से सुसंयत, नियमबद्ध और यत्नवान् होकर (मदिन्तमः) सबसे अधिक हर्षदायी (मधुमत्-तमः) अति बलशाली और अति मधुर वचन वाला होकर (पवस्व) सुख प्रदान कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः– १, २ गौरिवीतिः। ३, १४-१६ शक्तिः। ४, ५ उरुः। ६, ७ ऋजिष्वाः। ८, ९ ऊर्द्धसद्मा। १०, ११ कृतयशाः। १२, १३ ऋणञ्चयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ९, ११ उष्णिक् ककुप्। ३ पादनिचृदुष्णिक् । ५, ७, १५ निचृदुष्णिक्। २ निचृद्वहती। ४, ६, १०, १२ स्वराड् बृहती॥ ८, १६ पंक्तिः। १३ गायत्री ॥ १४ निचृत्पंक्तिः॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, life divine, realised by leading lights, wielding noble arms of defence, being most exciting and bearing sweetest honey gifts, flow forth in consciousness for the soul’s fulfilment and for glory of the social order.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे आनंदवर्धक व आल्हादजनक गुणसंपन्न परमात्मा तू अशी कृपा कर की आम्ही ज्ञानयोगी व कर्मयोगी बनून तुझा साक्षात्कार करत आनंद प्राप्त करावा. ॥१५॥

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