अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 14
यथा॑ शेव॒धिर्निहि॑तो ब्राह्म॒णानां॒ तथा॑ व॒शा। तामे॒तद॒च्छाय॑न्ति॒ यस्मि॒न्कस्मिं॑श्च॒ जाय॑ते ॥
स्वर सहित पद पाठयथा॑ । शे॒व॒ऽधि: । निऽहि॑त: । ब्रा॒ह्म॒णाना॑म् । तथा॑ । व॒शा । ताम् । ए॒तत् । अ॒च्छ॒ऽआय॑न्ति । यस्मि॑न् । कस्मि॑न् । च॒ । जाय॑ते ॥४.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
यथा शेवधिर्निहितो ब्राह्मणानां तथा वशा। तामेतदच्छायन्ति यस्मिन्कस्मिंश्च जायते ॥
स्वर रहित पद पाठयथा । शेवऽधि: । निऽहित: । ब्राह्मणानाम् । तथा । वशा । ताम् । एतत् । अच्छऽआयन्ति । यस्मिन् । कस्मिन् । च । जायते ॥४.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(यथा) जैसे (निहितः) नियम से रक्खा हुआ (शेवधिः) निधि [सुखदायक पदार्थ] होता है, (तथा) वैसे ही (वशा) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (ब्राह्मणानाम्) ब्राह्मणों [वेदज्ञानियों] की है। (एतत्) इसीलिये (ताम्) उस [वेदवाणी] को (अच्छ−आयन्ति) अच्छे प्रकार प्राप्त करते हैं, (यस्मिन् कस्मिन् च) चाहे जिस किसी में (जायते) वह होवे ॥१४॥
भावार्थ
यह वेदवाणी ईश्वर ने वेदवेत्ताओं को संसार के सुख के लिये निधि के समान सौंपी है। मनुष्य उसको वेदद्वारा परमाणु से लेकर ईश्वरपर्यन्त खोजकर प्राप्त करें ॥१४॥
टिप्पणी
१४−(यथा) येन प्रकारेण (शेवधिः) सुखप्रदः। निधिः−निरु० २।४। (निहितः) नियमेन स्थापितः (ब्राह्मणानाम्) ब्रह्मज्ञानिनाम् (तथा) (वशा) कमनीया वेदवाणी (ताम्) वेदवाणीम् (एतत्) एतस्मात्कारणात् (अच्छायन्ति) आभिमुख्येन प्राप्नुवन्ति (यस्मिन्) (कस्मिन्) (च) सम्भावनायाम् (जायते) वर्तते ॥
विषय
वेदज्ञानरूप शेवधि
पदार्थ
१. (यथा) = जैसे (शेवधिः निहित:) = किसी पुरुष का कोश सम्यक् स्थापित किया जाता है, (तथा) = उसीप्रकार (वशा) = यह कमनीय वेदवाणी (ब्राह्मणानाम्) = ब्राह्मणों का कोश है। ब्राह्मण का वास्तविक कोश यह 'वेदवाणी' ही है। (एतत्) = [एतस्मात्] इस कारण से (यस्मिन् कस्मिन् च) = जिस किसी में भी वेदवाणी का प्रादुर्भाव हो, (ताम् अच्छ आयन्ति) = वहीं उस वेदवाणी की ओर से ब्राह्मण आते है, अर्थात् वेदवाणी के ग्रहण के लिए, जहाँ भी इसके मिलने का सम्भव हो, वहीं ये ब्राह्मण पहुँच जाते हैं।
भावार्थ
'वेदवाणी' ब्राह्मण का वास्तविक कोश है। जिस किसी भी पुरुष से इसकी प्रासि सम्भव होती है, ये ब्राह्मण उसे प्राप्त करने के लिए वहीं पहुँच जाते हैं।
भाषार्थ
(यथा) जैसे (निहितः) सुरक्षित (शेवधिः) सुखदायक खजाना होता है, (तथा) वैसे (ब्राह्मणानाम्) वेदज्ञों के लिये (वशा) वेदवाणी होती हैं। (एतत्) इस हेतु से, (यस्मिन् कस्मिन् च) जिस किसी व्यक्ति में (जायते) वेदवाणी प्रादुर्भूत हो जाती है (ताम्) उस वशा अर्थात् वेदवाणी के [द्रष्टा] की (अच्छ) ओर (आयन्ति) वेदज्ञ विद्वान् आते हैं [उस के दर्शन के लिये] अच्छ=अच्छाभी आभिमुख्ये।
टिप्पणी
[जिस किसी ऋषि को यथार्थ रूप में वेदमन्त्रों का ज्ञान प्रकट होता है, उस की ओर उस के दर्शन के लिये वेदज्ञ विद्वान् जाते हैं। अच्छ=आभिमुख्ये]।
विषय
‘वशा’ शक्ति का वर्णन।
भावार्थ
(यथा) जिस प्रकार (ब्राह्मणानां) ब्राह्मणों का (शेवधिः) कोई खज़ाना (निहितः) धरोहर रखा हैं, उस प्रकार गौ के स्वामी के पास वह ‘वशा’ उनकी धरोहर है। (यस्मिन् कस्मिन् च) और वह जिस किसी विरले पुरुष के पास भी (जायते) पैदा हो जाती है (ताम्) उसको (एतत्) इस कारण से ही (अच्छ आ यन्ति) लेने के लिये आ जाते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कश्यप ऋषिः। मन्त्रोक्ता वशा देवता। वशा सूक्तम्। १-६, ८-१९, २१-३१, ३३-४१, ४३–५३ अनुष्टुभः, ७ भुरिग्, २० विराड्, ३३ उष्णिग्, बृहती गर्भा, ४२ बृहतीगर्भा। त्रिपञ्चाशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vasha
Meaning
As it is with any pleasureable treasure of wealth, well preserved and well promoted through circulation, so it is with the treasure of the Brahmana’s free knowledge and speech. Whoever the person, whatever the place wherein it takes root and grows in freedom through circulation, the seekers rush to the man and the place for a gift for their share.
Translation
As a deposited treasure, so of the Brahmans is the cow; accordingly they come unto her, in whosesoever possession she is born.
Translation
This cow of Brahmanas is like a safely stored rich treasure. Wherever she is born Brahmanas come near her.
Translation
Like a rich treasure is this Vedic knowledge stored away in safety by the learned. Therefore men gladly come to him, whosoever possesses it.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(यथा) येन प्रकारेण (शेवधिः) सुखप्रदः। निधिः−निरु० २।४। (निहितः) नियमेन स्थापितः (ब्राह्मणानाम्) ब्रह्मज्ञानिनाम् (तथा) (वशा) कमनीया वेदवाणी (ताम्) वेदवाणीम् (एतत्) एतस्मात्कारणात् (अच्छायन्ति) आभिमुख्येन प्राप्नुवन्ति (यस्मिन्) (कस्मिन्) (च) सम्भावनायाम् (जायते) वर्तते ॥
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