Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 12 के सूक्त 4 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 52
    ऋषिः - कश्यपः देवता - वशा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वशा गौ सूक्त
    37

    ये गोप॑तिं परा॒णीया॑था॒हुर्मा द॑दा॒ इति॑। रु॒द्रस्या॑स्तां ते हे॒तिं परि॑ य॒न्त्यचि॑त्त्या ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । गोऽप॑तिम् । प॒रा॒ऽनीय॑ । अथ॑ । आ॒हु: । मा । द॒दा॒: । इति॑ । रु॒द्रस्य॑ । अ॒स्ताम् । ते । हे॒तिम् । परि॑ । य॒न्ति॒ । अचि॑त्त्या ॥४.५२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये गोपतिं पराणीयाथाहुर्मा ददा इति। रुद्रस्यास्तां ते हेतिं परि यन्त्यचित्त्या ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । गोऽपतिम् । पराऽनीय । अथ । आहु: । मा । ददा: । इति । रुद्रस्य । अस्ताम् । ते । हेतिम् । परि । यन्ति । अचित्त्या ॥४.५२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 4; मन्त्र » 52
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (अथ) और (ये) जो (गोपतिम्) भूपति [राजा] को (पराणीय) बहका कर (आहुः) कहते हैं−“(मा ददाः इति) मत दे।” (ते) वे लोग (अचित्त्या) अज्ञान से (रुद्रस्य) दुःखनाशक शूर पुरुष के (अस्ताम्) चलाये हुए (हेतिम्) वज्र को (परि) सब ओर से (यन्ति) पाते हैं ॥५२॥

    भावार्थ

    जो दुष्ट दुर्बलेन्द्रिय राजा को कुमार्ग में डाल कर वेदवाणी के प्रचार में रुकावट डाले, उसको शूरवीर पुरुष यथावत् दण्ड देवे ॥५२॥

    टिप्पणी

    ५२−(ये) दुष्टाः (गोपतिम्) भूपालम्। राजानम् (पराणीय) कुमार्गे नीत्वा (अथ) पुनः (आहुः) कथयन्ति (मा ददाः) मा देहि (इति) (रुद्रस्य) दुःखनाशकस्य (अस्ताम्) क्षिप्ताम् (ते) दुष्टाः (हेतिम्) वज्रम् (परि) सर्वतः (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (अचित्त्या) अज्ञानेन ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वेदज्ञान प्रसार पर प्रतिबन्ध

    पदार्थ

    १. (ये) = जो बलावलेपवाले क्षत्रिय लोग (गोपतिम्) = ज्ञान के स्वामी को (पराणीय) = प्रजावर्ग से दूर करके (अथ) = अब (आहुः) = यह कहते हैं कि (मा ददा: इति) = इन प्रजाओं के लिए इस वेदज्ञान को मत दो, (ते) = वे बलदर्पदप्त राजन्य (अचित्त्या) = इस नासमझी से (रुद्रस्य) = उस दुष्टों को रुलानेवाले प्रभु के (अस्तां हेतिम्) = फेंके हुए वन को (परियन्ति) = सर्वतः प्राप्त होते हैं।

    भावार्थ

    यदि एक राजा ज्ञान की बाणी के प्रसार पर प्रतिबन्ध लगाता है, तो वह प्रभु के वज्र से आहत होता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (ये) जो लोग (गोपतिम्) पृथिवीपति को (पराणीय) परे ले जा कर (अथ) तदनन्तर (इति आहुः) यह कहते हैं कि (मा)(ददाः) दे, (ते) वे (अचित्तया) निज अज्ञान के कारण (रुद्रस्य) सेनापति के (अस्ताम्) चलाए हुए अस्त्र को (परि यन्ति) सब और से प्राप्त करते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ‘वशा’ शक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (ये) जो लोग (गोपतिम्) गौ के स्वामी को (परा-नीय) दूर एकान्त में लेजा कर (अथ) बाद में (आहुः) उससे कहते हैं कि तू (मा ददाः इति) वशा को दान मत कर (ते) वे (अचित्या) अपनी मूर्खता से ही (रुदस्य) रुद्र के (अस्तां हेतिम्) फेंके हुए बाण के (परियन्ति) शिकार हो जाते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कश्यप ऋषिः। मन्त्रोक्ता वशा देवता। वशा सूक्तम्। १-६, ८-१९, २१-३१, ३३-४१, ४३–५३ अनुष्टुभः, ७ भुरिग्, २० विराड्, ३३ उष्णिग्, बृहती गर्भा, ४२ बृहतीगर्भा। त्रिपञ्चाशदृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vasha

    Meaning

    Those who take the Gopati, ruler of the land and master of mother knowledge and free speech, aside and say : “Do not allow free education and free speech to the people”, fall to the wrathful strike of Rudra by the reason of their own ignorance and foolishness.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    They who, leading away her master, then say: do not give -- they, through ingorance, go to meet the hurled missile of Rudra.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Those persons who taking the owner of cow outside say him not to give cow, become the subject of the missile of Rudra the commander of army through their want of sense.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    They who seduce the king and say, Propagate not Vedic knowledge ’ encounter through their want of sense the missile shot by a powerful person.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५२−(ये) दुष्टाः (गोपतिम्) भूपालम्। राजानम् (पराणीय) कुमार्गे नीत्वा (अथ) पुनः (आहुः) कथयन्ति (मा ददाः) मा देहि (इति) (रुद्रस्य) दुःखनाशकस्य (अस्ताम्) क्षिप्ताम् (ते) दुष्टाः (हेतिम्) वज्रम् (परि) सर्वतः (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (अचित्त्या) अज्ञानेन ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top