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अथर्ववेद के काण्ड - 12 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 7
    ऋषिः - कश्यपः देवता - वशा छन्दः - भुरिगनुष्टुप् सूक्तम् - वशा गौ सूक्त
    55

    यद॑स्याः॒ कस्मै॑ चि॒द्भोगा॑य॒ बाला॒न्कश्चि॑त्प्रकृ॒न्तति॑। ततः॑ किशो॒रा म्रि॑यन्ते व॒त्सांश्च॒ घातु॑को॒ वृकः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। अ॒स्या॒: । कस्मै॑ । चि॒त् । भोगा॑य । बाला॑न् । क: । चि॒त् । प्र॒ऽकृ॒न्तति॑ । तत॑: । कि॒शो॒रा: । म्रि॒य॒न्ते॒ । व॒त्सान्। च॒ । घातु॑क: । वृक॑: ॥४.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदस्याः कस्मै चिद्भोगाय बालान्कश्चित्प्रकृन्तति। ततः किशोरा म्रियन्ते वत्सांश्च घातुको वृकः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। अस्या: । कस्मै । चित् । भोगाय । बालान् । क: । चित् । प्रऽकृन्तति । तत: । किशोरा: । म्रियन्ते । वत्सान्। च । घातुक: । वृक: ॥४.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 4; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्) यदि (कस्मैचित्) किसी ही (भोगाय) कुटिलता के लिये (अस्याः) इस [वेदवाणी] के (बालान्) बलों को (कश्चित्) कोई पुरुष (प्रकृन्तति) कतर लेता है। (ततः) उस [कुटिलता] से (किशोराः) किशोर [तरुण अवस्थावाले] (म्रियन्ते) मर जाते हैं, (च) और (वृकः) वह भेड़िया [समान हिंसक] (वत्सान् घातुकः) [बोलते हुए] बच्चों का हत्यारा [होता है] ॥७॥

    भावार्थ

    जो कुटिल कुचाली मनुष्य पवित्र वेदवाणी को चोरी, डकैती, व्यभिचार आदि कुनीति में लगाता है, वह अपने प्रिय सम्बन्धियों को भी मारकर नरक में पड़ता है ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(यत्) यदि (अस्याः) वेदवाण्याः (कस्मैचित्) अनिश्चिताय (भोगाय) भुजो कौटिल्ये−घञ्। कौटिल्याय (बालान्) बल प्राणने−घञ्। पराक्रमान् (कश्चित्) दुष्टः (प्रकृन्तति) प्रकर्षेण छिनत्ति (ततः) तस्मात् कारणात् (किशोराः) किशोरादयश्च। उ० १।६५। किम्+शॄ हिंसायाम्−ओरन्। तरुणावस्थाः पुरुषाः (म्रियन्ते) प्राणांस्त्यजन्ति (वत्सान्) वृतॄवदिवचिवसि०। उ० ३।६˜२। वद व्यक्तायां वाचि−स प्रत्ययः। वदनशीलान् बालकान् (च) (घातुकः) लषपतपदस्थाभूवृषहन०। पा० ३।२।१५४। हन हिंसागत्योः−उकञ्। नलोकाव्यय०। पा० २।३।६९। इति सकर्मकता। घ्नन्। हन्ता (वृकः) वृक इव हिंसकः ॥

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    विषय

    वत्सान् घातुकः 'वृकः'

    पदार्थ

    १. (यत्) = जब (कस्मैचित् भोगाय) = किसी सांसारिक भोग-विलास के दृष्टिकोण से (कश्चित्) = कोई व्यक्ति (बालान्) = अपने छोटे बच्चों को (अस्याः प्रकृन्तति) = इस वेदवाणी से विच्छिन्न करता है, अर्थात् इसप्रकार सोचकर कि 'वेद पढ़कर क्या करेगा? क्या कमा पाएगा?' वह अपने सन्तानों को वेद न पढ़ाकर अन्य मार्गों पर ले जाता है, (तत:) = तब (किशोरा: मियन्ते) = वे युवक विलासवृत्ति के शिकार होकर युवावस्था में ही मर जाते हैं । २. वस्तुत: इस दिशा में सोचनेवाला व्यक्ति अपने (वत्सान्) = सन्तानों को (घातुक:) = मारनेवाला (वृक:) = भेड़िया ही होता है। वह सन्तानों का कल्याण नहीं कर पाता।

    भावार्थ

    माता-पिता को चाहिए कि वे अपने सन्तानों को वेद अवश्य पढाएँ। 'वेद पढाने से उतना रुपया न कमा पाएगा' यह सोचकर वेद न पढ़ानेवाला पिता एक वृक के समान है जोकि अपने सन्तानरूप वत्सों को मारता है।

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    भाषार्थ

    (कश्चित्) राजपक्ष का कोई व्यक्ति, (कस्मैचित् भोगाय) किसी स्वार्थ लाभ के लिये, (यद्) जो (अस्याः) ब्रह्मज्ञ की इस वाणी के (बालान्) बालों को (प्रकृन्तति) काटता है, (ततः) तदनन्तर (किशोराः) बालक (म्रियन्ते) मर जाते हैं, (वृकः वत्सान् च) और भेड़िया शिशुऔं का (घातुकः) हनन करता है।

    टिप्पणी

    [बालान् प्रकृन्तति=वाणी या वक्तृता की "बाल की खाल उतारना"। किशोराः= ब्रह्मज्ञ पक्षीय तथा राजपक्षीय लोगों में युद्ध की अवस्था में किशोर सैनिक भी मर जाते हैं, और ब्रह्मज्ञ पक्ष का सेनाध्यक्ष मानो वृक बन कर शिशुओं को भी मार देता है, ताकि ऐसे राजा के वंश का ही विलोप हो जाये]।

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    विषय

    ‘वशा’ शक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    और (यद्) यदि (कश्चित्) कोई आदमी (कस्मैचिद् भोगाय) किसी अपने भोग-सिद्धि के लिये (अस्याः बालान्) इस वशा के बालों को (प्रकृन्तति) काट लेता है (ततः) तो फिर उसके (किशोराः) कच्ची उमर के बालक (म्रियन्ते) मारे जाते हैं और (वृकः) भेड़िया जिस प्रकार बछड़ों को मार डालता है उसी प्रकार (वृकः) जविन का नाशक मृत्यु या चोर डाकू उसके (वत्सान् च) बच्चों को (घातुकः) मार डाला करता है।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘बालान्’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कश्यप ऋषिः। मन्त्रोक्ता वशा देवता। वशा सूक्तम्। १-६, ८-१९, २१-३१, ३३-४१, ४३–५३ अनुष्टुभः, ७ भुरिग्, २० विराड्, ३३ उष्णिग्, बृहती गर्भा, ४२ बृहतीगर्भा। त्रिपञ्चाशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vasha

    Meaning

    And whoever, for whatever selfish purpose, twists its meaning and cuts its extensive hair for his own trophy, for that very reason his coming generations die out and waiting wolves pounce upon his children.

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    Translation

    If, for any one’s advantage, any one cuts off the tail-tuft of her, then his colts die, and the wolf slays his calves.

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    Translation

    Who soever for the beauty or advantage of any one cut and applies the long hair of her tail, his youthful children die (as the consequence of this act) and wolf kills the children.

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    Translation

    If to his own selfish advantage one applies the elevating forces of this Vedic knowledge, his tiny children, in consequence thereof, die. Death destroys his progeny as a violent wolf destroys the calves.

    Footnote

    They who use the Vedic knowledge for immoral purposes, are put to grief.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(यत्) यदि (अस्याः) वेदवाण्याः (कस्मैचित्) अनिश्चिताय (भोगाय) भुजो कौटिल्ये−घञ्। कौटिल्याय (बालान्) बल प्राणने−घञ्। पराक्रमान् (कश्चित्) दुष्टः (प्रकृन्तति) प्रकर्षेण छिनत्ति (ततः) तस्मात् कारणात् (किशोराः) किशोरादयश्च। उ० १।६५। किम्+शॄ हिंसायाम्−ओरन्। तरुणावस्थाः पुरुषाः (म्रियन्ते) प्राणांस्त्यजन्ति (वत्सान्) वृतॄवदिवचिवसि०। उ० ३।६˜२। वद व्यक्तायां वाचि−स प्रत्ययः। वदनशीलान् बालकान् (च) (घातुकः) लषपतपदस्थाभूवृषहन०। पा० ३।२।१५४। हन हिंसागत्योः−उकञ्। नलोकाव्यय०। पा० २।३।६९। इति सकर्मकता। घ्नन्। हन्ता (वृकः) वृक इव हिंसकः ॥

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