अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 31
मन॑सा॒ सं क॑ल्पयति॒ तद्दे॒वाँ अपि॑ गच्छति। ततो॑ ह ब्र॒ह्माणो॑ व॒शामु॑प॒प्रय॑न्ति॒ याचि॑तुम् ॥
स्वर सहित पद पाठमन॑सा । सम् । क॒ल्प॒य॒ति॒ । तत् । दे॒वान् । अपि॑ । ग॒च्छ॒ति॒ । तत॑: । ह॒ । ब्र॒ह्माण॑: । व॒शाम् । उ॒प॒ऽप्रय॑न्ति । याचि॑तुम् ॥४.३१॥
स्वर रहित मन्त्र
मनसा सं कल्पयति तद्देवाँ अपि गच्छति। ततो ह ब्रह्माणो वशामुपप्रयन्ति याचितुम् ॥
स्वर रहित पद पाठमनसा । सम् । कल्पयति । तत् । देवान् । अपि । गच्छति । तत: । ह । ब्रह्माण: । वशाम् । उपऽप्रयन्ति । याचितुम् ॥४.३१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पदार्थ
वह [वेदवाणी] (मनसा) मनन के साथ (देवान्) विजय चाहनेवाले [ब्रह्मचारियों] को (सम्) यथावत् (कल्पयति) समर्थ करती है, (तत्) तब [उनको] (अपि गच्छति) अवश्य मिलती है। (तथा ह) इसी कारण से (ब्रह्माणः) ब्रह्मचारी लोग (वशाम्) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] के (याचितुम्) माँगने के लिये (उपप्रयन्ति) पहुँचते जाते हैं ॥३१॥
भावार्थ
जैसे-जैसे ब्रह्मचारी लोग वेदवाणी के लिये प्रयत्न करते हैं, वैसे-वैसे ही वेदवाणी उन्हें समर्थ करके मिलती जाती है ॥३१॥
टिप्पणी
३१−(मनसा) मननेन (सम्) सम्यक् (कल्पयति) समर्थयति वेदवाणी (तत्) तदा (देवान्) विजिगीषून् ब्रह्मचारिणः (अपि) एव (गच्छति) प्राप्नोति (ततः) तस्मात् कारणात् (ह) एव (ब्रह्माणः) ब्रह्मचारिणः (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (उपप्रयन्ति) समीपे गच्छन्ति (याचितुम्) प्रार्थयितुम् ॥
विषय
शक्ति दिव्यगुण
पदार्थ
१. यह वेदवाणी (मनसा) = मनन के द्वारा (संकल्पयति) = हमें सम्यक् समर्थ बनाती है [क्लप सामर्थ्य]। (तत्) = तब यह (अध्येता देवान् अपिगच्छति) = दिव्यगुणों की ओर गतिवाला होता है। शक्ति के साथ ही सब सद्गुणों का वास है। Virtue वीरत्व ही तो है। इसी कारण उपनिषद् में यह कहा गया है कि 'नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः' निर्बल से आत्मतत्त्व अलभ्य है। २. (ततो ह) = उस कारण से ही, क्योंकि यह वशा हमें समर्थ बनाकर दिव्यगुण-सम्पन्न करती है, (ब्रह्मण:) = ब्राह्मणवृत्ति के लोग (वशाम्) = कमनीया वेदवाणी को (याचितुम्) = माँगने के लिए (उपप्रयन्ति) = ज्ञानियों के [गोपतियों के] समीप उपस्थित होते हैं।
भावार्थ
वेदवाणी का मनन हमें शक्तिशाली बनाकर दिव्यगुण-सम्पन्न बनाता है, इसीलिए ब्राह्मणवृत्ति के लोग इस वशा की याचना के लिए गोपति के समीप उपस्थित होते हैं।
भाषार्थ
(मनसा) मन से (सं कल्पयति) संकल्प करती है, (तत्) वह संकल्प (देवान्) देवों को (अपि गच्छति) प्राप्त होता है। (ततः ह) तत्पश्चात् निश्चय से, (ब्रह्माणः) ब्रह्मवेत्ता तथा वेदवेत्ता (वशाम्) वेदवाणी की (याचितुम्) याचना के लिये (उप प्रयन्ति) गोपति के समीप प्रयाण करते हैं।
टिप्पणी
[मनसा,- संकल्प मन का गुण हैं न कि आत्मा का। अभिप्राय यह कि वेदवाणी के प्रचार के स्वातन्त्र्य के लिये प्रथम देवकोटि के विद्वानों से परामर्श लेना चाहिये। तत्पश्चात् राजा के पास इस निमित्त प्रयाण करना चाहिये। मन्त्र ३० और ३१ में मनः और मनसा, तथा संकल्प का वर्णन कवितारूप में है]।
विषय
‘वशा’ शक्ति का वर्णन।
भावार्थ
जब वह अपने (मनसा) मन से (संकल्पयाति) संकल्प कर लेता है (तत्) तब वह (देवान् अपि गच्छति) देवों, विद्वानों को भी प्राप्त हो जाती है। (ततः) उसके बाद (ब्रह्माण:) ब्राह्मण लोग (वशाम्) उस वशा को (याचितुम्) मांगने के लिये भी (उप प्रयन्ति) आ जाते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कश्यप ऋषिः। मन्त्रोक्ता वशा देवता। वशा सूक्तम्। १-६, ८-१९, २१-३१, ३३-४१, ४३–५३ अनुष्टुभः, ७ भुरिग्, २० विराड्, ३३ उष्णिग्, बृहती गर्भा, ४२ बृहतीगर्भा। त्रिपञ्चाशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vasha
Meaning
Vasha, the spirit of Being and universal awareness, vibrates and acts through the universal mind. That vibration in the universal mind stimulates the sages at the core of their being and imagination, and thereby the seekers of divinity approach Vasha, universal awareness itself, to pray for the gift of her own self.
Translation
She plans (it) with her mind; then she goes unto the gods: thence the priests go on to ask for the cow.
Translation
The master of the cow settles the thought in his mind. This thought goes to learned men. Consequently the Brahmar comes and asks for the cow.
Translation
Vedic knowledge, through deep reflection by the Brahmcharis, strengthens them, and manifests itself unto them. Then verily the Brahmcharis approach the learned and ask for it.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३१−(मनसा) मननेन (सम्) सम्यक् (कल्पयति) समर्थयति वेदवाणी (तत्) तदा (देवान्) विजिगीषून् ब्रह्मचारिणः (अपि) एव (गच्छति) प्राप्नोति (ततः) तस्मात् कारणात् (ह) एव (ब्रह्माणः) ब्रह्मचारिणः (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (उपप्रयन्ति) समीपे गच्छन्ति (याचितुम्) प्रार्थयितुम् ॥
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