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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 9
    ऋषिः - चातनः देवता - इन्द्रासोमौ, अर्यमा छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - शत्रुदमन सूक्त
    62

    ये पा॑कशं॒सं वि॒हर॑न्त॒ एवै॒र्ये वा॑ भ॒द्रं दू॒षय॑न्ति स्व॒धाभिः॑। अह॑ये वा॒ तान्प्र॒ददा॑तु॒ सोम॒ आ वा॑ दधातु॒ निरृ॑तेरु॒पस्थे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । पा॒क॒ऽशं॒सम् । वि॒ऽहर॑न्ते । एवै॑: । ये । वा॒ । भ॒द्रम् । दू॒षय॑न्ति । स्व॒धाभि॑: । अह॑ये । वा॒ । तान् । प्र॒ऽददा॑तु । सोम॑: । आ । वा॒ । द॒धा॒तु॒ । नि:ऽऋ॑ते: । उ॒पऽस्थे॑ ॥४.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये पाकशंसं विहरन्त एवैर्ये वा भद्रं दूषयन्ति स्वधाभिः। अहये वा तान्प्रददातु सोम आ वा दधातु निरृतेरुपस्थे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । पाकऽशंसम् । विऽहरन्ते । एवै: । ये । वा । भद्रम् । दूषयन्ति । स्वधाभि: । अहये । वा । तान् । प्रऽददातु । सोम: । आ । वा । दधातु । नि:ऽऋते: । उपऽस्थे ॥४.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 4; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और मन्त्री के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो [दुष्ट] (एवैः) शीघ्रगामी [पुरुषार्थी] पुरुषों के साथ [वर्तमान] (पाकशंसम्) दृढ़ स्तुतिवाले पुरुष को (विहरन्ते) विशेष करके नष्ट करते हैं, (वा) अथवा (स्वधाभिः) आत्मधारणाओं के साथ [रहनेवाले] (भद्रम्) कल्याण को (दूषयन्ति) दूषित करते हैं। (सोमः) ऐश्वर्यवान् राजा (वा) अवश्य (तान्) उन्हें (अहये) सर्प [समान क्रूर पुरुष] को (प्र ददातु) दे देवे, (वा) अथवा (निर्ऋतेः) अलक्ष्मी की (उपस्थे) गोद में (आ दधातु) रख देवे ॥९॥

    भावार्थ

    जो कोई पाखण्डी उपकारी सज्जनों के कामों में बाधा डालें, राजा उनको वधक आदि से मरवा डाले अथवा निर्धन कर देवे ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−ऐश्वर्यवान् प्रेरको वा राजा (आ) समन्तात् (दधातु) स्थापयतु (निर्ऋतेः) अ० २।१०।१। कृच्छ्रापत्तेः। अलक्ष्म्याः (उपस्थे) उत्सङ्गे ॥

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    विषय

    अहये प्रददातु

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (पाकशंसम्) = परिपक्व व पवित्र वचनोंवाले मुझे (एवैः) = अपने प्राप्तव्य कामों के हेतु से-अपने स्वार्थों के हेतु से (विहरन्ते) = विशिष्टरूप से अपहत [क्षीण] करते हैं वा अथवा (ये) = जो (भद्रम्) = शुभ कर्मरत मुझे (स्वधाभि:) = अपने वेतन आदि के बल से वेतनभोगी पुरुषों द्वारा (दूषयन्ति) = दूषित करते हैं। (सोमा) = न्यायाधीश (तान्) = उन्हें (अहये प्रददातु) = सर्प के लिए दे-दे उन्हें सर्पदंशन द्वारा समाप्त करा दे (वा) = अथवा उन्हें (निर्ऋतिः उपस्थे) = मृत्यु की गोद में (आ दधातु) = स्थापित करे।

    भावार्थ

    सत्यवचन व भद्र कौवाले पुरुषों को क्षीण व नष्ट करनेवाले लोगों को सर्पदंश द्वारा व अन्य प्रकार से मृत्यु की गोद में स्थापित करना ही ठीक है।

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    भाषार्थ

    (ये) जो (पाकशंसम्) परिपक्व विचारों तथा पवित्र कर्मों के कथन करने वाले मुझ को, (एवैः) निज व्यवहारों द्वारा (विहरन्ते) कर्तव्यों से विहृत अर्थात् पराङ्मुख कर देते हैं, (वा) या (ये) जो (स्वधाभिः) स्वनिहित कुसंस्कारों के कारण (भद्रम्) [मेरे] भद्रकर्म को (दूषयन्ति) दूषित कर्म कहते हैं, (तान्) उन्हें (सोमः) सेनाध्यक्ष [मन्त्र १] (वा) या तो (अहये) सांप के लिये (प्रददातु) प्रदान करे, (वा) अथवा (निर्ऋतेः) कृच्छापत्ति की (उपस्थे) गोद में (आदधातु) स्थापित करे।

    टिप्पणी

    [विहरणम् = Taking away (आप्टे)। एवैः= इण् गतौ + वन् (उणा० १।१५२), तथा मन्त्र (७)।]

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    विषय

    दुष्ट प्रजाओं का दमन।

    भावार्थ

    (एवैः) अभिलषित अभिप्रायों से (विहरन्तेः) विचरतें हुए (ये) जो लोग (पाकशंसम्) परिपक्व सत्य, यथार्थ बात के उपदेश करने वाले पुरुष को (दूषयन्ति) बदनाम करते या उस पर दोषारोप करते हैं (ये) जो लोग (भद्रम्) अन्यों के कल्याणकारी साधु पुरुष की (स्वधाभिः) अपने स्वार्थों से प्रेरित होकर (दूषयन्ति) निन्दा करते हैं (सोमः) सोम्यगुण युक्त राजा या शान्तस्वभाव का व्यवस्थापक धर्माधिकारी (तान्) उन असत्य दोषारोपकों को (अहये) सांप के या सांप समान क्रुर स्वभाव वाले जल्लाद दण्डकारी को (प्रददातु) सौप दे। (वा) या (निर्ऋतेः) निर्ऋति मृत्यु दण्डकारी विभाग के (उप एत्य) वश में (आ दधातु) कर दें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    चातन ऋषिः। इन्द्रासोमौ देवते। रक्षोहणं सूक्तम्। १-३, ५, ७, ८, २१, २४ विराट् जगती। ८-१७, १९, २२, २४ त्रिष्टुभः। २०, २३ भृरिजौ। २५ अनुष्टुप्। पञ्चविंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Destruction of Enemies

    Meaning

    O Soma, lord of peace and justice, if there be those who, with smartness and fast actions, malign, locerate and deprive the man of purity, truth, honour and spotless reputation, or with their powers and prestige denigrate the man of goodness and charitable disposition and bring disgrace upon him, deliver such men to the sufferance of darkness and remorse or let them suffer the pangs of deprivation themselves.

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    Translation

    May Lord of love-divine 'surrender him to a serpent’ or throw him into the lap of death, who falsely accuses me or persecutes me, whilst I always adhere to truth. May this be also the fate of them, who, with jealousy, vilify everything that is good in me.

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    Translation

    Let the King hand over for serpent like cruel man those person who discard and accuse the man dealing affairs with right eousness and who harm the virtue and virtuous man with their own interests and let them be consigned to calamity.

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    Translation

    Those who destroy, as is their wont, the pure-minded, and with their evil natures harm the righteous, may the King, hand them over to the executioner awful like a serpent, or consign them to the lap of poverty.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−ऐश्वर्यवान् प्रेरको वा राजा (आ) समन्तात् (दधातु) स्थापयतु (निर्ऋतेः) अ० २।१०।१। कृच्छ्रापत्तेः। अलक्ष्म्याः (उपस्थे) उत्सङ्गे ॥

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