अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 9/ मन्त्र 5
सूक्त - अथर्वा
देवता - शतौदना (गौः)
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शतौदनागौ सूक्त
स स्व॒र्गमा रो॑हति॒ यत्रा॒दस्त्रि॑दि॒वं दि॒वः। अ॑पू॒पना॑भिं कृ॒त्वा यो ददा॑ति श॒तौद॑नाम् ॥
स्वर सहित पद पाठस: । स्व॒:ऽगम् । आ । रो॒ह॒ति॒ । यत्र॑ । अ॒द: । त्रि॒ऽदि॒वम् । दि॒व: । अ॒पू॒पऽना॑भिम् । कृ॒त्वा । य: । ददा॑ति । श॒तऽओ॑दनाम् ॥९.५॥
स्वर रहित मन्त्र
स स्वर्गमा रोहति यत्रादस्त्रिदिवं दिवः। अपूपनाभिं कृत्वा यो ददाति शतौदनाम् ॥
स्वर रहित पद पाठस: । स्व:ऽगम् । आ । रोहति । यत्र । अद: । त्रिऽदिवम् । दिव: । अपूपऽनाभिम् । कृत्वा । य: । ददाति । शतऽओदनाम् ॥९.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 9; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(यः) जो अध्यात्म गुरु, (अपूपनाभिम्) अपूप का बन्धन (कृत्वा) कर के, (शतौदनाम्) सैंकड़ों ओदनादि भोज्य पदार्थ देने वाली पारमेश्वरी माता का (ददाति) दान करता है, (सः) वह (स्वर्गम्) सुख प्राप्ति के स्थान पर (आरोहति) आरोहण करता है (यत्र) जहां कि (दिवः) दिव् का (अदः) वह (त्रिदिवम्) त्रिदिव रूप है।
टिप्पणी -
[मन्त्र में मस्तिष्क को स्वर्ग कहा है। मस्तिष्कनिष्ठ सहस्रार चक्र स्वर्गरूप है, जहां परमेश्वर का पूर्ण साक्षात् कर अध्यात्म गुरु, सुख विशेष पाता है। परमेश्वर के आनन्द रस का पान कर आनन्दी हो जाता है। मस्तिष्क दिव् है। (देखो मन्त्र ३)। मस्तिष्क तीन विभागों में विभक्त है। इसे त्रिदिव कहा है। यथा, बृहत् मस्तिष्क और लघु मस्तिष्क। बृहत् मस्तिष्क के दो भाग है, दाहिना गोलाएं और बायां गोलार्ध। लघु मस्तिष्क बृहत् मस्तिक के नीचे की ओर लगा रहता है। इस प्रकार मस्तिष्क तीन भागों में विभक्त होता है, जिन्हें कि त्रिदिव कहा है। अपूपनाभिम् = अपूप का अर्थ है पूड़ा। यह मीठा और स्वादु होता है। अध्यात्म गुरु शिष्य के भोजनार्थ अपूप आदि को नाभि अर्थात् बन्धन बना कर, शिष्य को अपने साथ बान्धे रखता है। नाभि = नह् बन्धने। अन्तव्यवस्था के विना, शिष्य का बन्धन, गुरु के साथ नहीं हो सकता। क्योंकि अन्न के लिये गुरु का आश्रम त्याग कर उसे अन्यत्र भी जाना पड़ता है। अतः गुरु निज आश्रम में ही शिष्य के लिये अन्न व्यवस्था कर उसे अपने साथ बान्धे रखता है, और उसे शतौदना प्रदान करता है, पारमेश्वरी माता का ज्ञान प्रदान करता है, उस के स्वरूप का दर्शन कराता है। ऐसा योग्य गुरु निज आध्यात्मिक शक्तियों में समुन्नत हुआ, स्वर्गारोहण का अधिकारी होता है।