अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 9/ मन्त्र 25
सूक्त - अथर्वा
देवता - शतौदना (गौः)
छन्दः - द्व्यनुष्टुब्गर्भानुष्टुप्
सूक्तम् - शतौदनागौ सूक्त
क्रो॒डौ ते॑ स्तां पुरो॒डाशा॒वाज्ये॑ना॒भिघा॑रितौ। तौ प॒क्षौ दे॑वि कृ॒त्वा सा प॒क्तारं॒ दिवं॑ वह ॥
स्वर सहित पद पाठक्रो॒डौ । ते॒ । स्ता॒म् । पु॒रो॒डाशौ॑ । आज्ये॑न । अ॒भिऽधा॑रितौ । तौ । प॒क्षौ । दे॒वि॒ । कृ॒त्वा । सा । प॒क्तार॑म् । दिव॑म् । व॒ह॒ ॥९.२५॥
स्वर रहित मन्त्र
क्रोडौ ते स्तां पुरोडाशावाज्येनाभिघारितौ। तौ पक्षौ देवि कृत्वा सा पक्तारं दिवं वह ॥
स्वर रहित पद पाठक्रोडौ । ते । स्ताम् । पुरोडाशौ । आज्येन । अभिऽधारितौ । तौ । पक्षौ । देवि । कृत्वा । सा । पक्तारम् । दिवम् । वह ॥९.२५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 9; मन्त्र » 25
भाषार्थ -
(ते) तेरे (क्रोडौ) दो क्रोड़, (आज्येन) घृत द्वारा (अभिघारितौ) सींचे गए (पुरोडाशौ) दो पुरोडाश हों। (देवि) हे देवि! (तौ) उन दो [पुराडाशों] को (पक्षौ) यो पंख (कृत्वा) कर के (पक्तारम्) पकाने वाले को (दिवम्) दिव् में (वह) ले जा या पहुंचा।
टिप्पणी -
[क्रोडौ= छाती के वाम-दक्षिणपार्श्व। पुरोडाशौ= जौ या तण्डुल को पीठी द्वारा, आग पर पकाए, दो भटूरे। पुरोडाशें की यज्ञाहुतियां दी जाती है। यज्ञ द्वारा यजमान स्वर्ग पहुंचने का अधिकार प्राप्त करता है। पुरोडाश चूंकि गौ [बैल] द्वारा कृषिजन्य जौ तण्डुलों द्वारा बनाया जाता है, अतः परम्परया पुरोडाश का सम्बन्ध गौ के साथ है। अतः कल्पनारूप में कहा है कि हे गौ! तु दो पंखों वाले पक्षीरूप हो कर तु, यजमान को स्वर्ग पहुंचा पारमेश्वरी माता के पक्ष में दो पुरोडाश है मस्तिष्क के दाएं-बाएं के खण्ड। इन्हें ही माता की छाती के बाम-दक्षिण के दो पार्श्व और इन में लगे दो पंख कहा है। माता पक्षीरूप होकर उपासक को उस के दिव- रूपी मस्तिष्क में स्थित सहस्रारचक्र में मानो शीघ्र उठाकर, पहुंचा देती है। उपासक हृदयचक्र में विराजमान था। किसी अध्यात्म गुरु की शक्ति न थी कि वह उपासक को हृदय-चक्र से उठाकर शीघ्र सहस्रारचक्र में पहुंचा दे। इसलिए अध्यात्मगुरु, माता से प्रार्थना करता है कि वह इस उपासक को शीघ्र सहस्रारचक्र में पहुंचा दे।]