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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 96/ मन्त्र 16
    सूक्त - रक्षोहाः देवता - गर्भसंस्रावप्रायश्चित्तम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९६

    यस्त्वा॒ स्वप्ने॑न॒ तम॑सा मोहयि॒त्वा नि॒पद्य॑ते। प्र॒जां यस्ते॒ जिघां॑सति॒ तमि॒तो ना॑शयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । त्वा॒ । स्वप्ने॑न । तम॑सा । मो॒ह॒यि॒त्वा । नि॒ऽपद्य॑ते ॥ प्र॒जाम् । य: । ते॒ । जिघां॑सति । तम् । इ॒त: । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥९६.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्त्वा स्वप्नेन तमसा मोहयित्वा निपद्यते। प्रजां यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । त्वा । स्वप्नेन । तमसा । मोहयित्वा । निऽपद्यते ॥ प्रजाम् । य: । ते । जिघांसति । तम् । इत: । नाशयामसि ॥९६.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 96; मन्त्र » 16

    भाषार्थ -
    हे स्त्री! (यः) जो व्याभिचारी पुरुष (स्वप्नेन) स्वापन ओषधि द्वारा, या (तमसा) अन्धकार में, (त्वा) तुझे (मोहयित्वा) ज्ञानरहित करके (निपद्यते) तुझ पर बलात्कार करता है, और इस प्रकार (यः) जो (ते) तेरी (प्रजाम्) गर्भस्थ-सन्तान का (जिघांसति) गर्भपात द्वारा हनन करना चाहता है, या हनन करता है, (तम्) उसे (इतः) इस जीवन से (नाशयामसि) हम राज्याधिकारी विनष्ट कर देते हैं।

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