अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 96/ मन्त्र 7
सूक्त - पूरणः
देवता - इन्द्राग्नी, यक्ष्मनाशनम्
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - सूक्त-९६
यदि॑ क्षि॒तायु॒र्यदि॑ वा॒ परे॑तो॒ यदि॑ मृ॒त्योर॑न्ति॒कं नीत ए॒व। तमा ह॑रामि॒ निरृ॑तेरु॒पस्था॒दस्पा॑र्शमेनं श॒तशा॑रदाय ॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑ । क्षि॒तऽआ॑यु: । यदि॑ । वा॒ । परा॑ऽइत: । यदि॑ । मृ॒त्यो: । अ॒न्ति॒कम् । नि॒ऽइ॑त: । ए॒व ॥ तम् । आ । ह॒रा॒मि॒ । नि:ऽऋ॑ते: । उ॒पऽस्था॑त् । अस्पा॑र्शम् । ए॒न॒म् । श॒तऽशा॑रदाय ॥९६.७॥
स्वर रहित मन्त्र
यदि क्षितायुर्यदि वा परेतो यदि मृत्योरन्तिकं नीत एव। तमा हरामि निरृतेरुपस्थादस्पार्शमेनं शतशारदाय ॥
स्वर रहित पद पाठयदि । क्षितऽआयु: । यदि । वा । पराऽइत: । यदि । मृत्यो: । अन्तिकम् । निऽइत: । एव ॥ तम् । आ । हरामि । नि:ऽऋते: । उपऽस्थात् । अस्पार्शम् । एनम् । शतऽशारदाय ॥९६.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 96; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(यदि क्षितायुः) यदि रोगी समझता है कि उसकी आयु अर्थात् जीवन-काल समाप्त हो गया है, (यदि वा) अथवा (परेतः) जीवन से रोगी यदि पराङ्मुख हो गया है, और (यदि) अगर (मृत्योः) मृत्यु के (अन्तिकम्) समीप वह (नीत एव) पहुँच ही गया है, तब भी मैं चिकित्सक (निऋर्तेः) रोगजन्य कष्ट की (उपस्थात्) गोद से (तम्) उसे (आहरामि) छीन लाता हूँ; मैंने (एनम्) इस रोगी को, (शतशारदाय) सौ वर्षों तक जीने के लिए, (अस्पार्शम्) हस्तस्पर्श कर दिया है।
टिप्पणी -
[पूर्व मन्त्र ६ में रोगी को रोग से छुड़ाने के दो उपाय दर्शाए हैं—(१) उचित ओषधियों को अग्नि में डाल कर, निकले धूम्र का पान। इसके द्वारा ओषधि का सूक्ष्मांश फेफड़ों में पहुंचकर, रक्तप्रवाह द्वारा, रोग का शीघ्र विनाश करता है। साथ ही गृहशुद्धि भी हो जाती है। (२) परमेश्वरीय-प्रार्थना। मन्त्र ७ में हस्तस्पर्श-चिकित्सा का वर्णन हुआ। हस्तस्पर्श-चिकित्सा का उत्तम वर्णन निम्नलिखित मन्त्रों में भी हुआ है। यथा— अ॒यं मे॒ हस्तो॒ भग॑वान॒यं मे॒ भग॑वत्तरः। अ॒यं मे॑ वि॒श्वभे॑षजो॒यं शि॒वाभि॑मर्शनः॥ हस्ता॑भ्यां॒ दश॑शाखाभ्यां जि॒ह्वा वा॒चः पु॑रोग॒वी। अ॒ना॒म॒यि॒त्नुभ्यां॒ हस्ता॑भ्यां॒ ताभ्यां॑ त्वा॒भि मृ॑शामसि॥ अथर्व০ ४.१३.६, ७॥ इन दो मन्त्रों का अंग्रेजी अनुवाद—”This is my fortunate hand, this may more fortunate one, this may all-healing one, this is of propitious touch with two ten-branched hands- the tongue is forerunner of voice-with two disease-removing hands : with them do we touch thee”. [इन दो मन्त्रों में हस्तस्पर्श के साथ-साथ, जिह्वा द्वारा बोल कर रोगी को रोगोन्मुक्ति के आश्वासन भी देने चाहिएँ। मन्त्र ७ में यह भी दर्शाया है कि जीवन की कोई नियत अवधि नहीं होती। स्वास्थ्य के नियमों के पालन से तथा यथोचित उपचार द्वारा १०० वर्षों की आयु सम्भव है।]