अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 4/ मन्त्र 24
सूक्त - चातनः
देवता - इन्द्रासोमौ, अर्यमा
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुदमन सूक्त
इन्द्र॑ ज॒हि पुमां॑सं यातु॒धान॑मु॒त स्त्रियं॑ मा॒यया॒ शाश॑दानाम्। विग्री॑वासो॒ मूर॑देवा ऋदन्तु॒ मा ते दृ॑श॒न्त्सूर्य॑मु॒च्चर॑न्तम् ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑ । ज॒हि । पुमां॑सम् । या॒तु॒ऽधान॑म् । उ॒त । स्त्रिय॑म् । मा॒यया॑ । शाश॑दानाम् । विऽग्री॑वास: । मूर॑ऽदेवा: । ऋ॒द॒न्तु॒ । मा । ते । दृ॒श॒न् । सूर्य॑म् । उ॒त्ऽचर॑न्तम् ॥४.२४॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र जहि पुमांसं यातुधानमुत स्त्रियं मायया शाशदानाम्। विग्रीवासो मूरदेवा ऋदन्तु मा ते दृशन्त्सूर्यमुच्चरन्तम् ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र । जहि । पुमांसम् । यातुऽधानम् । उत । स्त्रियम् । मायया । शाशदानाम् । विऽग्रीवास: । मूरऽदेवा: । ऋदन्तु । मा । ते । दृशन् । सूर्यम् । उत्ऽचरन्तम् ॥४.२४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 4; मन्त्र » 24
भाषार्थ -
(इन्द्र) हे सम्राट् ! (यातुधानम्) यातनाओं को धारण करने वाला, यातना के निधिभूत (पुमांसम्) पुरुष का (उत) तथा (मायया) छल कपट द्वारा (शाशदानाम्) हिंसा करने वाली (स्त्रियम्) स्त्री का (जहि) तू हनन कर (मूरदेवाः) मूढ-व्यवहारी या मारण-क्रीडा करने वाले ये (विग्रीवासः) ग्रीवाओं से विगत हुए (ऋदन्तु) नष्ट हो जाय और (उच्चरन्तम्) उदित होते हुए (सूर्यम्) सूर्य को (मा) न (दृशन्) देख पाए।
टिप्पणी -
[मन्त्र (२३) में मिथुनाः द्वारा स्त्री-पुरुष दोनों का वर्णन हुआ है। मन्त्र (२४) में भी पुमान् और स्त्री दोनों का वर्णन हुआ है। अत्याचारी दोनों को समान दण्ड देने का विधान हुआ है। जिस दिन ये उग्र अपराधी घोषित किये जाय उसी दिन इनकी ग्रीवाएं काट देनी चाहिये ताकि अगले दिन के सूर्य का ये दर्शन न कर पाएं। दण्डप्रदान और अपराध में विशेष व्यवधान न होना चाहिये। अपराध का दण्ड उसी दिन ही हो जाना चाहिये जिस दिन कि अपराध किया गया हो]।