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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 36
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - स्त्रियो देवताः छन्दः - भुरिगुष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    नार्य॑स्ते॒ पत्न्यो॒ लोम॒ विचि॑न्वन्तु मनी॒षया॑।दे॒वानां॒ पत्न्यो॒ दिशः॑ सू॒चीभिः॑ शम्यन्तु त्वा॥३६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नार्य्यः॑। ते॒। पत्न्यः॑। लोम॑। वि। चि॒न्व॒न्तु॒। म॒नी॒षया॑। दे॒वाना॑म्। पत्न्यः॑। दिशः॑। सू॒चीभिः॑। श॒म्य॒न्तु॒। त्वा॒ ॥३६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नार्यस्ते पत्न्यो लोम विचिन्वन्तु मनीषया । देवानाम्पत्न्यो दिशः सूचीभिः शम्यन्तु त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नार्य्यः। ते। पत्न्यः। लोम। वि। चिन्वन्तु। मनीषया। देवानाम्। पत्न्यः। दिशः। सूचीभिः। शम्यन्तु। त्वा॥३६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 36
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    पदार्थ -
    हे पण्डिता पढ़ाने वाली विदुषी स्त्री! जो कुमारी (मनीषया) तीक्ष्ण बुद्धि से (ते) तेरी (लोम) अनुकूल आज्ञा को (विचिन्वन्तु) इकट्ठा करें वे (देवानाम्) पण्डितों की (नार्य्यः, पत्न्यः) पण्डितानी हों। हे कुमारी! जो पण्डितों की (पत्न्यः) पण्डितानी होके (सूचीभिः) मिलाप की क्रियाओं से (दिशः) दिशाओं के समान शुद्ध पाकविद्या पढ़ी हुई हैं, वे (त्वा) तुझे (शम्यन्तु) शान्ति और ज्ञान दें॥३६॥

    भावार्थ - जो कन्या प्रथम अवस्था में सोलह वर्ष की अवस्था से चौबीस वर्ष की अवस्था तक ब्रह्मचर्य से विद्या उत्तम शिक्षा को पाकर अपने सदृश पुरुषों की पत्नी हों, वे दिशाओं के समान उत्तम प्रकाशयुक्त कीर्ति वाली हों॥३६॥

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