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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 65
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - ईश्वरो देवता छन्दः - विराट् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    प्रजा॑पते॒ न त्वदे॒तान्य॒न्यो विश्वा॑ रू॒पाणि॒ परि॒ ता ब॑भूव।यत्का॑मास्ते जुहु॒मस्तन्नो॑ऽअस्तु व॒यꣳ स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम्॥६५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रजा॑पत॒ इति॒ प्रजा॑ऽपते। न। त्वत्। ए॒तानि॑। अ॒न्यः। विश्वा॑। रू॒पाणि॑। परि॑। ता। ब॒भू॒व॒। यत्का॑मा॒ इति॒ यत्ऽका॑माः। ते॒। जु॒हु॒मः। तत्। नः॒। अ॒स्तु॒। व॒यम्। स्या॒म॒। पत॑यः। र॒यी॒णाम् ॥६५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा रूपाणि परि ता बभूव । यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नोऽअस्तु वयँस्याम पतयो रयीणाम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्रजापत इति प्रजाऽपते। न। त्वत्। एतानि। अन्यः। विश्वा। रूपाणि। परि। ता। बभूव। यत्कामा इति यत्ऽकामाः। ते। जुहुमः। तत्। नः। अस्तु। वयम्। स्याम। पतयः। रयीणाम्॥६५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 65
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    पदार्थ -
    हे (प्रजापते) सब प्रजा के रक्षक स्वामिन् ईश्वर! कोई भी (त्वत्) आप से (अन्यः) भिन्न (ता) उन (एतानि) इन पृथिव्यादि भूतों तथा (विश्वा) सब (रूपाणि) स्वरूपयुक्त वस्तुओं पर (न) नहीं (परि, बभूव) बलवान् है, (यत्कामाः) जिस-जिस पदार्थ की कामना वाले होकर (वयम्) हम लोग आप की (जुहुमः) प्रशंसा करें (तत्) वह-वह कामना के योग्य वस्तु (नः) हम को (अस्तु) प्राप्त हो, (ते) आपकी कृपा से हम लोग (रयीणम्) विद्या, सुवर्ण आदि धनों के (पतयः) रक्षक स्वामी (स्याम) होवें॥६५॥

    भावार्थ - जो परमेश्वर से उत्तम, बड़ा, ऐश्वर्ययुक्त, सर्वशक्तिमान् पदार्थ कोई भी नहीं है तो उस के तुल्य भी कोई नहीं। जो सब का आत्मा, सब का रचने वाला, समस्त ऐश्वर्य का दाता ईश्वर है, उसकी भक्तिविशेष और अपने पुरुषार्थ से इस लोक के ऐश्वर्य और योगाभ्यास के सेवन से परलोक के सामर्थ्य को हम लोग प्राप्त हों॥६५॥

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