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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 61
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - प्रष्टा देवता छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    पृ॒च्छामि॑ त्वा॒ पर॒मन्तं॑ पृथि॒व्याः पृ॒च्छामि॒ यत्र॒ भुव॑नस्य॒ नाभिः॑।पृ॒च्छामि॑ त्वा॒ वृष्णो॒ऽअश्व॑स्य॒ रेतः॑ पृ॒च्छामि॑ वा॒चः प॑र॒मं व्यो॑म॥६१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पृ॒च्छामि॑। त्वा॒। पर॑म्। अन्त॑म्। पृ॒थि॒व्याः। पृ॒च्छामि॑। यत्र॑। भुव॑नस्य। नाभिः॑। पृ॒च्छामि॑। त्वा॒। वृष्णः॑। अश्व॑स्य। रेतः॑। पृ॒च्छामि॑। वा॒चः। प॒र॒मम्। व्यो॒मेति॒ विऽओ॑म ॥६१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पृच्छामि त्वा परमन्तम्पृथिव्याः पृच्छामि यत्र भुवनस्य नाभिः । पृच्छामि त्वा वृष्णोऽअश्वस्य रेतः पृच्छामि वाचः परमँव्योम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पृच्छामि। त्वा। परम्। अन्तम्। पृथिव्याः। पृच्छामि। यत्र। भुवनस्य। नाभिः। पृच्छामि। त्वा। वृष्णः। अश्वस्य। रेतः। पृच्छामि। वाचः। परमम्। व्योमेति विऽओम॥६१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 61
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    पदार्थ -
    हे विद्वान् जन! मैं (त्वा) आप को (पृथिव्याः) पृथिवी के (अन्तम्, परम्) परभाग अवधि को (पृच्छामि) पूछता (यत्र) जहां इस (भुवनस्य) लोक का (नाभिः) मध्य से खेंच के बन्धन करता है, उस को (पृच्छामि) पूछता हूँ। जो (वृष्णः) सेचनकर्त्ता (अश्वस्य) बलवान् पुरुष का (रेतः) पराक्रम है, उस को (पृच्छामि) पूछता हूँ और (वाचः) तीन वेदरूप वाणी के (परमम्) उत्तम (व्योम) आकाशरूप स्थान को (त्वा) आप से (पृच्छामि) पूछता हूँ, आप उत्तर कहिये॥६१॥

    भावार्थ - पृथिवी की सीमा क्या? जगत् का आकर्षण से बन्धन कौन? बली जन का पराक्रम कौन? और वाणी का पारगन्ता कौन है? इन चार प्रश्नों के उत्तर अगले मन्त्र में जानने चाहियें॥६१॥

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