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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 4
    ऋषिः - आभूतिर्ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - आर्षी गायत्री स्वरः - षड्जः
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    पु॒नाति॑ ते परि॒स्रुत॒ꣳ सोम॒ꣳ सूर्य॑स्य दुहि॒ता। वारे॑ण॒ शश्व॑ता॒ तना॑॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒नाति॑। ते॒। प॒रिस्रुत॒मिति॑ परि॒ऽस्रुत॑म्। सोम॑म्। सूर्य्य॑स्य। दु॒हि॒ता। वारे॑ण। शश्व॑ता तना॑ ॥४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुनाति ते परिस्रुतँ सोमँ सूर्यस्य दुहिता । वारेण शश्वता तना ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पुनाति। ते। परिस्रुतमिति परिऽस्रुतम्। सोमम्। सूर्य्यस्य। दुहिता। वारेण। शश्वता तना॥४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 4
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    अन्वयः - हे मनुष्य! या तना सूर्यस्य दुहितेवोषा शश्वता वारेण ते परिस्रुतं सोमं पुनाति, तस्या त्वमोषधिरसं सेवस्व॥४॥

    पदार्थः -
    (पुनाति) पवित्रीकरोति (ते) तव (परिस्रुतम्) सर्वतः प्राप्तम् (सोमम्) ओषधिरसम् (सूर्य्यस्य) (दुहिता) पुत्रीवोषा (वारेण) वरणीयेन (शश्वता) सनातनेन गुणेन (तना) विस्तृतेन प्रकाशेन॥४॥

    भावार्थः - ये मनुष्याः सूर्योदयात् प्राक् शौचं विधाय यथानुकूलमौषधं सेवन्ते, तेऽरोगा भूत्वा सुखिनो जायन्ते॥४॥

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