यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 32
ऋषिः - प्रस्कण्व ऋषिः
देवता - सूर्यो देवता
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
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येना॑ पावक॒ चक्ष॑सा भुर॒णयन्तं॒ जनाँ॒२ऽअनु॑।त्वं व॑रुण॒ पश्य॑सि॥३२॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑। पा॒व॒क॒। चक्ष॑सा। भु॒र॒ण्यन्त॑म्। जना॑न्। अनु॑ ॥ त्वम्। व॒रु॒॒ण॒। पश्य॑सि ॥३२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
येना पावक चक्षसा भुरण्यन्तञ्जनाँऽअनु । त्वँवरुण पश्यसि ॥
स्वर रहित पद पाठ
येन। पावक। चक्षसा। भुरण्यन्तम्। जनान्। अनु॥ त्वम्। वरुण। पश्यसि॥३२॥
विषय - भुरण्यन् जन
पदार्थ -
१. प्रभु पावक = पवित्र करनेवाले हैं। गतमन्त्र में ब्रह्मज्ञान का उल्लेख था। यह ब्रह्मज्ञान मनुष्य के जीवन को पवित्र करता है। ब्रह्मदर्शन करने पर पाप सम्भव ही नहीं। पापों को दूर करके वे प्रभु अपने सखा जीव के जीवन को सुन्दर बनाते हैं, प्रभु वरुण हैं, क्योंकि द्वेषादि बुराइयों का वारण करके वे हमें पवित्र व श्रेष्ठ बनाते हैं। हे प्रभो! (येन चक्षसा) = जिस ज्ञान के द्वारा आप हमें पवित्र व श्रेष्ठ बनाते हैं, वह ज्ञान हमें प्राप्त कराइए। २. (भुरण्यन्तं जनान्) = इन औरों का भरण करनेवाले लोगों का हे (वरुण) = श्रेष्ठ व शरणीय प्रभो! (त्वम्) = आप (अनुपश्यसि) = पालन व पोषण Look after करते हो। मनुष्य साथी प्राणियों का ध्यान करता है तो प्रभु उस मनुष्य का ध्यान करते हैं। ३ मन्त्र का ऋषि प्रस्कण्व=अत्यन्त बुद्धिमान् है । वह वेद में आदिष्ट प्रभु की आज्ञाओं का पालन करता हुआ यज्ञमय जीवन बिताता है। [क] ज्ञान प्राप्त करता है [ख] अन्यों का भरण-पोषण करता है। [ग] द्वेष का निवारण करता है। इन सब बातों के परिणामस्वरूप प्रभु उसका ध्यान करते हैं।
भावार्थ - भावार्थ - ज्ञान से हम अपने जीवन को पवित्र करें, लोकधारण करनेवाले बनें। तब वह प्रभु हमारा उसी प्रकार धारण व ध्यान करेंगे जैसे माता पुत्र का ।
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