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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 41
    ऋषिः - नृमेध ऋषिः देवता - सूर्यो देवता छन्दः - निचृद् बृहती स्वरः - मध्यमः
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    श्राय॑न्तऽइव॒ सूर्य्यं॒ विश्वेदिन्द्र॑स्य भक्षत।वसू॑नि जा॒ते जन॑मान॒ऽओज॑सा॒ प्रति॑ भा॒गं न दी॑धिम॥४१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श्राय॑न्तऽइ॒वेति॒ श्राय॑न्तःऽइव। सूर्य॑म्। विश्वा॑। इत्। इन्द्र॑स्य। भ॒क्ष॒त॒ ॥ वसू॒नि। जा॒ते। जन॑माने। ओज॑सा। प्रति॑। भा॒गम्। न। दी॒धि॒म॒ ॥४१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    श्रायन्तऽइव सूर्यँविश्वेदिन्द्रस्य भक्षत । वसूनि जाते जनमानऽओजसा प्रति भागन्न दीधिम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    श्रायन्तऽइवेति श्रायन्तःऽइव। सूर्यम्। विश्वा। इत्। इन्द्रस्य। भक्षत॥ वसूनि। जाते। जनमाने। ओजसा। प्रति। भागम्। न। दीधिम॥४१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 41
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    पदार्थ -
    १. प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि 'नृ-मेध' है, जो सब नरों से मिलकर चलता है [मेध= संगम]। 'यह अकेला खाएगा' यह कैसे हो सकता है! इसका विचार है कि (सूर्यम् इव) = सूर्य की भाँति (श्रायन्तः) = [to sweat, to perspire] श्रम के कारण पसीने से तर-बतर होते हुए (विश्वा इत्) = सभी प्राणी (इन्द्रस्य) = उस प्रभु से दिये गये भोजन का (भक्षत) = भक्षण करें। इस मन्त्रार्थ में यह बात स्पष्ट है- [क] सबने अधिक-से-अधिक श्रम करना है, और [ख] अपनी-अपनी आवश्यकतानुसार सबने भोजन प्राप्त करना है। वस्तुतः राष्ट्र को इस प्रकार के नियम बना देने चाहिएँ कि कोई व्यक्ति बिना कर्म किये न खा सके और कोई भी कर्म करनेवाला अपनी आवश्यकताओं को न पा सके, यह न हो। २. हम (ओजसा) = शक्ति के द्वारा (जाते) = धनों के उत्पन्न होने पर और जनमाने आगे उत्पन्न होनेवाले धनों में (वसूनि) = धनों को (भागं न) = सेवनीय भाग के अनुसार (प्रतिदीधिम) = प्रत्येक व्यक्ति के लिए धारण करें। अपनी शक्ति के अनुसार हम कमाएँ, परन्तु उसे सारा अपने पर व्यय करने के स्थान में भाग के अनुसार सबको दें। घर में यह साम्यवाद कितना सुन्दर चलता है। पिता कमाता है, वह कम खाता है, परन्तु न कमानेवाला बच्चा सबसे अधिक खाता है। एवं, घर में ये दोनों सिद्धान्त कार्य करते दिखते हैं। [क] काम सब शक्ति के अनुसार करते हैं और [ख] खाते सब आवश्यकतानुसार हैं। यही दो सिद्धान्त सारे राष्ट्र में लागू हों तो न राष्ट्र निर्धन हो और ना ही कोई भूखा मरे ।

    भावार्थ - भावार्थ- सूर्य की भाँति हम श्रमशील हों, उत्पन्न धनों को सबके साथ बाँटकर खाएँ, धनों को प्रभु का समझें ।

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