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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 16
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - स्वराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    विश्वे॑षा॒मदि॑तिर्य॒ज्ञिया॑नां॒ विश्वे॑षा॒मति॑थि॒र्मानु॑षाणाम्। अ॒ग्निर्दे॒वाना॒मव॑ऽआवृणा॒नः सु॑मृडी॒को भ॑वतु जा॒तवे॑दाः॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वे॑षाम्। अदि॑तिः। य॒ज्ञिया॑नाम्। विश्वे॑षाम्। अति॑थिः। मानु॑षाणाम् ॥ अ॒ग्निः। दे॒वाना॑म्। अवः॑। आ॒वृ॒णा॒न इत्या॑ऽवृ॒णा॒नः। सु॒मृडी॒क इति॑ सुऽमृडी॒कः। भ॒व॒तु॒। जा॒तवे॑दा॒ इति॑ जा॒तऽवे॑दाः ॥१६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वेषामदितिर्यज्ञियानाँविश्वेषामतिथिर्मानुषाणाम् । अग्निर्देवानामवऽआवृणानः सुमृडीको भवतु जातवेदाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वेषाम्। अदितिः। यज्ञियानाम्। विश्वेषाम्। अतिथिः। मानुषाणाम्॥ अग्निः। देवानाम्। अवः। आवृणान इत्याऽवृणानः। सुमृडीक इति सुऽमृडीकः। भवतु। जातवेदा इति जातऽवेदाः॥१६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 16
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    पदार्थ -
    १. [क] गत मन्त्र में 'हम यज्ञों में जानेवाले हों', इन शब्दों से प्रार्थना समाप्त हुई थी। इन (विश्वेषाम्) = सब (यज्ञियानाम्) = यज्ञ की वृत्तिवाले व्यक्तियों का वह प्रभु (अदिति:) = खण्डन न करनेवाला = शरीर को ठीक रखनेवाला है। वस्तुतः यज्ञिय भावना पुरुष को विलास से बचाकर स्वास्थ्य का धनी बनाती है। [ख] 'अदिति' शब्द का अर्थ 'अदीना देवमाता' भी है, न गिड़गिड़ानेवाली, अर्थात् आत्मसम्मान की भावना से युक्त और दिव्य गुणों का निर्माण करनेवाली । यज्ञिय वृत्ति होने पर दिव्य गुण पनपते हैं । २. वे प्रभु (विश्वेषाम्) = सब (मानुषाणाम्) = मनुष्यों का हित करनेवालों के (अतिथि:) = मेहमान व प्राप्त होनेवाले हैं। प्रभुभक्त वे ही हैं जो 'सर्वभूतहिते रत' हैं। मनुष्य मनुष्य की सहायता करता है तो प्रभु उसके हृदय में आसीन होते हैं। प्रभु को पाने का उपाय जन सेवा भी है। ३. मानवहित में लगा हुआ व्यक्ति देव बन जाता है और देवानाम् इन देवों का अग्निः ये अग्रणी प्रभु (अवः) = रक्षण (आवृणान:) = करते हैं ४. (जातवेदा:) = वे सर्वज्ञ प्रभु 'अदिति व मानुष' के लिए (सुमृडीकः भवतु) = उत्तम सुख प्राप्त करानेवाले हों। यज्ञिय, मानुष व देव बननेवाला व्यक्ति प्रशस्तेन्द्रिय होने से 'गोतम' कहलाता है। वही इस मन्त्र का ऋषि है। भावार्थ-हम यज्ञिय बनेंगे तो प्रभु हमारे लिए 'अदिति' होंगे। हम मानुष बनें प्रभु

    भावार्थ - अतिथि होंगे। हम देव बनें प्रभु हमारा रक्षण करेंगे। वे जातवेद प्रभु हमें सदा सुख देते हैं। ऋषि:- लुशो धानाकः । देवता-सविता ।

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