यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 37
तत्सूर्य्य॑स्य देव॒त्वं तन्म॑हि॒त्वं म॒ध्या कर्त्तो॒र्वित॑त॒ꣳ सं ज॑भार। य॒देदयु॑क्त ह॒रितः॑ स॒धस्था॒दाद्रात्री॒ वास॑स्तनुते सि॒मस्मै॑॥३७॥
स्वर सहित पद पाठतत्। सूर्य्य॑स्य। दे॒व॒त्वमिति॑ देव॒ऽत्वम्। तत्। म॒हि॒त्वमिति॑ महि॒ऽत्वम्। म॒ध्या। कर्त्तोः॑। वित॑तमिति॑ विऽत॑तम्। सम्। ज॒भा॒र॒ ॥य॒दा। इत्। अयु॑क्त। ह॒रितः॑। स॒धस्था॒दिति॑ स॒धऽस्था॑त। आत्। रात्री॑। वासः॑। त॒नु॒ते॒। सि॒मस्मै॑ ॥३७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तत्सूर्यस्य देवत्वन्तन्महित्वम्मध्या कर्तार्विततँ सञ्जभार । यदेदयुक्त हरितः सधस्थादाद्रात्री वासस्तनुते सिमस्मै ॥
स्वर रहित पद पाठ
तत्। सूर्य्यस्य। देवत्वमिति देवऽत्वम्। तत्। महित्वमिति महिऽत्वम्। मध्या। कर्त्तोः। विततमिति विऽततम्। सम्। जभार॥यदा। इत्। अयुक्त। हरितः। सधस्थादिति सधऽस्थात। आत्। रात्री। वासः। तनुते। सिमस्मै॥३७॥
विषय - उपसंहार=Retirement
पदार्थ -
१. (तत्) = तभी (सूर्यस्य) = गतमन्त्र में वर्णित सूर्य का (देवत्वम्) = देवपन व (तत्) = तभी (महित्वम्) = बड़प्पन, महिमा होती है (यदा) = जब मध्या (कर्त्तोः) = कामों के बीच में (विततम्) = फैले हुए क्रिया - जाल को (संजभार) = मनुष्य संगृहीत करता है। संसार के कार्यभारों-व्यापार आदि को समेटकर २. (यदा) = जब यह (इत्) = निश्चय से (सधस्थात्) = सदा साथ रहनेवाले प्रभु से (हरित:) = ज्ञान की रश्मियों को (अयुक्त) = अपने साथ जोड़ता है। मनुष्य कार्यों से निपटकर जब प्रभु के समीप बैठता है, तब उसे ज्ञानधन प्रभु की ज्ञानरश्मियाँ क्यों न दीप्त करेंगी ? इन ज्ञानरश्मियों से द्योतित होकर ही यह 'देव' = चमकनेवाला बनता है। चमकने पर ही इसकी महिमा होती है। इस प्रकार यह देवत्व व महत्त्व को प्राप्त करता है। ३. (आत्) = अन्यथा, कार्यों का उपसंहार करके प्रभु की गोद में न बैठने पर रात्री अज्ञानान्धकार सिमस्मै सबके लिए (वासः) = अन्धकारवस्त्र को (तनुते) = तान देती है, अर्थात् मनुष्य गरीब हुआ तो नमक- तेल-ईंधन की चिन्ता में और धनी हुआ तो रुपये-पैसे की चिन्ता में जीवन को बिता देता है। उसे " कोऽहं कुत आजात: ' ' ' मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ' इन प्रश्नों के सोचने का समय ही नहीं मिलता। ४. इस अज्ञानान्धकार को नष्ट करनेवाला व्यक्ति ही 'कुत्स' है। यह 'कुथ हिंसायाम्' अज्ञान की हिंसा करने के लिए ज्ञान के सूर्य का अपने में उदय करता है। इस सूर्योदय के लिए ही लौकिक कार्यों से निवृत्त होकर प्रभु चरणों में बैठता है।
भावार्थ - भावार्थ- हम जीविका के कार्यों का उपसंहार करके सधस्थ प्रभु से ज्ञान प्राप्त करें, जिससे हमपर अज्ञान का पर्दा न पड़ा रहे।
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