अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 35
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
स वै भूमे॑रजायत॒ तस्मा॒द्भूमि॑रजायत ॥
स्वर सहित पद पाठस: । वै । भूमे॑: । अ॒जा॒य॒त॒ । तस्मा॑त् । भूमि॑: । अ॒जा॒य॒त॒ ॥७.७॥
स्वर रहित मन्त्र
स वै भूमेरजायत तस्माद्भूमिरजायत ॥
स्वर रहित पद पाठस: । वै । भूमे: । अजायत । तस्मात् । भूमि: । अजायत ॥७.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 35
पदार्थ -
१. (सः) = वह प्रभु (वै) = निश्चय से (भूमे:) = इस भूमि से (अजायत) = प्रादुर्भूत महिमावाला हो रहा है। यह भूमि अपने से उत्पन्न होनेवाले विविध वनस्पतियों के पत्र-पुष्पों में विविध पुण्यगन्धों को प्राप्त करा रही है। किन्हीं भी दो वनस्पतियों की गन्ध एक-सी नहीं, क्या ही अद्भुत चमत्कार-सा है! (भूमिः) = यह भूमि (तस्मात्) = उस प्रभु से ही तो (अजायत) = उत्पन्न हुई है। २. (सः वा) = वह प्रभु निश्चय से (अग्नेः) = अग्नि से (अजायत) = प्रादुर्भूत होता है। मिलाने व फाड़ने [संयुक्त व वियुक्त करने] की विरोधी शक्तियों को लिये हुए यह अग्नि भी विचित्र ही तत्त्व है। तस्मात् उस प्रभु से ही अग्निः (अजायत) = अग्नि उत्पन्न किया गया है। ३. (सः वा) = वह प्रभु निश्चय से (अद्भ्यः) = सब वनस्पतियों में विविध रसों का संचार करनेवाले जलों से (अजायत) = प्रादुर्भत महिमावाला होता है। तस्मात्-उस प्रभु से ही तो (आपः अजायन्त) = जल प्रादुर्भूत हुए हैं। ४. (सः वा) = यह प्रभु निश्चय से (ऋग्भ्यः) = ऋचाओं से (अजायत) = प्रादुर्भूत हो रहा है। किसप्रकार ये ऋचाएँ सम्पूर्ण प्रकृति-विज्ञान को प्रकट कर रही हैं? तस्मात् ऋचा: अजायन्त-उस प्रभु ने सृष्टि के आरम्भ में ही इन ऋचाओं का ज्ञान दिया है। ५. (सः वै) = वह प्रभु निश्चय से (यज्ञात्) = यज्ञ से (अजायत) = प्रकट हो रहा है, किसप्रकार 'यज्ञ' पर्जन्य को उत्पन्न कर वृष्टि द्वारा अन्नों का उत्पादन करके हमारे जीवन का आधार बनता है? तस्मात् यज्ञः (अजायत) = प्रभु से ही प्रजाओं के साथ ही इस यज्ञ का भी प्रादुर्भाव किया गया है। यज्ञ ही जीवन है।
विशेष -
'भूमि, अग्नि, जल, ऋचाओं व यज्ञों' में इस प्रभु की महिमा का प्रादुर्भाव हो रहा है|