Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 96/ मन्त्र 16
    सूक्त - रक्षोहाः देवता - गर्भसंस्रावप्रायश्चित्तम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९६

    यस्त्वा॒ स्वप्ने॑न॒ तम॑सा मोहयि॒त्वा नि॒पद्य॑ते। प्र॒जां यस्ते॒ जिघां॑सति॒ तमि॒तो ना॑शयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । त्वा॒ । स्वप्ने॑न । तम॑सा । मो॒ह॒यि॒त्वा । नि॒ऽपद्य॑ते ॥ प्र॒जाम् । य: । ते॒ । जिघां॑सति । तम् । इ॒त: । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥९६.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्त्वा स्वप्नेन तमसा मोहयित्वा निपद्यते। प्रजां यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । त्वा । स्वप्नेन । तमसा । मोहयित्वा । निऽपद्यते ॥ प्रजाम् । य: । ते । जिघांसति । तम् । इत: । नाशयामसि ॥९६.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 96; मन्त्र » 16

    पदार्थ -
    १. (य:) = जो (त्वा) = तुझे (स्वप्नेन् तमसा) = स्वप्नावस्था में ले-जानेवाले तमोगुणी पदार्थों के प्रयोग से (मोहयित्वा) = मूढ़ व अचेतन बनाकर (निपद्यते) = भोग के लिए प्राप्त होता है और इसप्रकार (य:) = जो (ते) = तेरी (प्रजाम्) = प्रजा को-गर्भस्थ सन्तान को (जिघांसति) = नष्ट करना चाहता है, (तम्) = उसको (इतः) = यहाँ से (नाशयामसि) = हम दूर करते हैं। २. गर्भिणी को अचेनावस्था में ले-जाकर भोगप्रवृत्त होना गर्भस्थ बालक के उन्माद या विनाश का कारण हो जाता है, अत: वह सर्वथा हेय है।

    भावार्थ - पत्नी को अचेनावस्था में उपभुक्त करना गर्भस्थ बालक के लिए अत्यन्त घातक होता है। शरीर के अंग-प्रत्यंग से दोषों का उबहण करनेवाला 'विवृहा' १७ से २३ तक मन्त्रों का ऋषि है। ज्ञानी होने से यह 'काश्यप' है -

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top