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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 96/ मन्त्र 6
    सूक्त - पूरणः देवता - इन्द्राग्नी, यक्ष्मनाशनम् छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९६

    मु॒ञ्चामि॑ त्वा ह॒विषा॒ जीव॑नाय॒ कम॑ज्ञातय॒क्ष्मादु॒त रा॑जय॒क्ष्मात्। ग्राहि॑र्ज॒ग्राह॒ यद्ये॒तदे॑नं॒ तस्या॑ इन्द्राग्नी॒ प्र मु॑मुक्तमेनम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मु॒ञ्चामि॑ । त्वा॒ । ह॒विषा॑ । जीव॑नाय । कम् । अ॒ज्ञा॒त॒य॒क्ष्मात् । उ॒त । रा॒ज॒ऽय॒क्ष्मात् ॥ ग्राहि॑: । ज॒ग्राह॑ । यदि॑ । ए॒तत् । ए॒न॒म् । तस्या॑: । इ॒न्द्र॒ग्नी इति॑ । प्र । मु॒मु॒क्त॒म् । ए॒न॒म् ॥९६.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मुञ्चामि त्वा हविषा जीवनाय कमज्ञातयक्ष्मादुत राजयक्ष्मात्। ग्राहिर्जग्राह यद्येतदेनं तस्या इन्द्राग्नी प्र मुमुक्तमेनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मुञ्चामि । त्वा । हविषा । जीवनाय । कम् । अज्ञातयक्ष्मात् । उत । राजऽयक्ष्मात् ॥ ग्राहि: । जग्राह । यदि । एतत् । एनम् । तस्या: । इन्द्रग्नी इति । प्र । मुमुक्तम् । एनम् ॥९६.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 96; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    १. (त्वा) = तुझे हविषा हवि के द्वारा-अग्निकुण्ड में डाली गई आहुतियों के द्वारा-अज्ञात (यक्ष्मात्) = अज्ञात रोगों से (उत) = और (राजयक्ष्मात्) = क्षयरोग से (मुञ्चामि) = मुक्त करता हूँ। जीवनाय जिससे तू उत्कृष्ट जीवन को प्रास कर सके तथा तेरा जीवन (कम्) = सुखमय हो। २. अथवा (यदि) = यदि (एनम्) = इसको एतत् [एतस्मिन् काले सा०] अब (ग्राहि:) = अंगों को पकड़-सा लेनेवाला वातरोग (जग्राह) = जकड़ लेता है, तो (एनम्) = इसको (इन्द्राग्नी) = इन्द्र और अग्नि (तस्या:) = उस ग्राहि नामक रोग से (प्रमुमुक्तम्) = मुक्त करें। अग्निहोत्र में दौस होता हुआ अग्नि हविर्द्रव्यों को सूक्ष्मकणों में विभक्त करके सूर्यलोक तक पहुँचाता है 'अग्नौ प्रास्ताहुतिः सम्यगादित्यमुपतिष्ठते'। सूर्य [इन्द्र] जलों को वाष्पीभूत करके इन सूक्ष्मकों के चारों ओर प्रास कराता है। इसप्रकार वृष्टि के बिन्दु इन इविद्रव्यों को केन्द्रों में लिये हुए होते हैं। उनके वर्षण से उत्पन्न अन्न-कण भी उन्हीं हविर्द्रव्यों के गुणों से युक्त हुए-हुए रोगों के निवारक बनते हैं। इसप्रकार इन्द्र और अग्नि हमें रोगमुक्त करके दीर्घजीवन प्राप्त कराते हैं।

    भावार्थ - अग्निहोत्र में डाले गये हविर्द्रव्यों से हम रोगमुक्त हो पाते हैं। सब अज्ञातरोग राजयक्ष्मा व ग्राहि नामक रोग सूर्य व अग्नि के द्वारा दूर किये जाते हैं।

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