अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 1/ मन्त्र 9
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - आयुः
छन्दः - प्रस्तारपङ्क्तिः
सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
श्या॒मश्च॑ त्वा॒ मा श॒बल॑श्च॒ प्रेषि॑तौ य॒मस्य॒ यौ प॑थि॒रक्षी॒ श्वानौ॑। अ॒र्वाङेहि॒ मा वि दी॑ध्यो॒ मात्र॑ तिष्ठः॒ परा॑ङ्मनाः ॥
स्वर सहित पद पाठश्या॒म: । च॒ । त्वा॒ । मा । श॒बल॑: । च॒ । प्रऽइ॑षितौ । य॒मस्य॑ । यौ । प॒थि॒रक्षी॒ इति॑ प॒थि॒ऽरक्षी॑ । श्वानौ॑ । अ॒वाङ् । आ । इ॒हि॒ । मा । वि । दी॒ध्य॒: । मा । अत्र॑ । ति॒ष्ठ॒: । परा॑क्ऽमना: ॥१.९॥
स्वर रहित मन्त्र
श्यामश्च त्वा मा शबलश्च प्रेषितौ यमस्य यौ पथिरक्षी श्वानौ। अर्वाङेहि मा वि दीध्यो मात्र तिष्ठः पराङ्मनाः ॥
स्वर रहित पद पाठश्याम: । च । त्वा । मा । शबल: । च । प्रऽइषितौ । यमस्य । यौ । पथिरक्षी इति पथिऽरक्षी । श्वानौ । अवाङ् । आ । इहि । मा । वि । दीध्य: । मा । अत्र । तिष्ठ: । पराक्ऽमना: ॥१.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 1; मन्त्र » 9
विषय - "श्यामः शबल: च' श्वानौ [यमरूप]
पदार्थ -
१. 'अहर्वै शबलो रात्रिः श्यामः' [कौ०२।१] इस वाक्य के अनुसार दिन और रात्रि' ही यम के शबल व श्याम श्वा हैं। हे पुरुष! ये (यौ) = जो (श्यामः च शबल: च) = रात्रि व दिनरूप [श्याम व शबल वर्णवाले] (यमस्य) = सर्वनियन्ता प्रभु के (पथिरक्षी श्वानौ) = मार्गरक्षक श्वा हैं, ये (प्रेषितौ) = भेजे हुए (त्वा) = तुझे (मा) = मत सन्दष्ट करें। दिन व रात्रि हमारे जीवनों को काटते चलते हैं। इसी दृष्टि से इन्हें यमराज के 'श्वा' कहा गया है। ३. हे पुरुष! तू इनसे असन्दष्ट हुआ हुआ (अर्वाड् एहि) = हमारे सामने आनेवाला बन। (मा विदीध्य:) = गये हुए पुरुषों का विलाप ही मत करता रह । सब प्रकार के रोने-पीटने को छोड़कर अपने कर्तव्य-कार्यों को करने के लिए उद्यत हो। (अत्र) = इस जीवन में (पराङ् मना:) = सुदूर गये हुए मनवाला होकर (मा तिष्ठः) = मत स्थित हो। गये हुए पुरुषों का ही राग न अलापता रह। भटकते हुए मन को स्थिर करके कर्तव्य कर्मों में तत्पर हो।
भावार्थ -
दिन-रात्रिरूप यमराज के श्वान ही हमें न काटते रहें। इनसे सन्दष्ट हुए-हुए हम मरे हुओं का राग ही न अलापते रहें। न भटकते हुए मनवाले होकर हम अपने कर्तव्यों को करने में तत्पर हों।
इस भाष्य को एडिट करें