अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 9
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - आयुः
छन्दः - प्रस्तारपङ्क्तिः
सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
72
श्या॒मश्च॑ त्वा॒ मा श॒बल॑श्च॒ प्रेषि॑तौ य॒मस्य॒ यौ प॑थि॒रक्षी॒ श्वानौ॑। अ॒र्वाङेहि॒ मा वि दी॑ध्यो॒ मात्र॑ तिष्ठः॒ परा॑ङ्मनाः ॥
स्वर सहित पद पाठश्या॒म: । च॒ । त्वा॒ । मा । श॒बल॑: । च॒ । प्रऽइ॑षितौ । य॒मस्य॑ । यौ । प॒थि॒रक्षी॒ इति॑ प॒थि॒ऽरक्षी॑ । श्वानौ॑ । अ॒वाङ् । आ । इ॒हि॒ । मा । वि । दी॒ध्य॒: । मा । अत्र॑ । ति॒ष्ठ॒: । परा॑क्ऽमना: ॥१.९॥
स्वर रहित मन्त्र
श्यामश्च त्वा मा शबलश्च प्रेषितौ यमस्य यौ पथिरक्षी श्वानौ। अर्वाङेहि मा वि दीध्यो मात्र तिष्ठः पराङ्मनाः ॥
स्वर रहित पद पाठश्याम: । च । त्वा । मा । शबल: । च । प्रऽइषितौ । यमस्य । यौ । पथिरक्षी इति पथिऽरक्षी । श्वानौ । अवाङ् । आ । इहि । मा । वि । दीध्य: । मा । अत्र । तिष्ठ: । पराक्ऽमना: ॥१.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(श्यामः) चलनेवाला [प्राणवायु] (च च) और (शबलः) जानेवाला [अपानवायु] (त्वा) तुझको (मा) न [छोड़े], (यौ) जो दोनों [प्राण और अपान] (यमस्य) नियन्ता मनुष्य के (प्रेषितौ) भेजे हुए, (पथिरक्षी) मार्गरक्षक (श्वानौ) दो कुत्तों [के समान हैं]। (अर्वाङ्) समीप (आ इहि) आ, (मा वि दीध्यः) विरुद्ध मत क्रीड़ा कर, (इह) यहाँ पर (पराङ्मनाः) उदास मन होकर (मा तिष्ठः) मत ठहर ॥९॥
भावार्थ
मन्त्र के प्रथम पाद में [छोड़े] पद अध्याहार है। मनुष्य प्राण, और अपान द्वारा बल पराक्रम स्थिर रखकर कभी दीन न होवें। प्राण और अपान शरीर की इस प्रकार रक्षा करते हैं, जैसे कुत्ते मार्ग में अपने स्वामी की ॥९॥ यजुर्वेद ३४।५५। में वर्णन है−“तत्र जागृतो अस्वप्नजौ सत्रसदौ च (देवौ) वहाँ पर दो न सोनेवाले और बैठक [शरीर] में बैठनेवाले, चलने फिरनेवाले [प्राण और अपान] जागते हैं” ॥
टिप्पणी
९−(श्यामः) इषियुधीन्धिदसिश्याधूसूभ्यो मक्। उ० १।१४५। श्यैङ् गतौ-मक्। गमनशीलः। प्राणवायुः (च) (त्वा) (मा) निषेधे। त्यजतामिति शेषः (शबलः) शपेर्बश्च। उ० १।१०५। शप गतौ-कल, पस्य बः। गतिमान्। अपानवायुः (च) (प्रेषितौ)) प्रेरितौ। नियोजितौ (यमस्य) नियामकमनुष्यस्य (यौ) प्राणापानौ (पथिरक्षी) छन्दसि वनसनरक्षिमथाम्। पा० ३।२।२७। पथिन्+रक्ष पालने-इन्। मार्गरक्षकौ (श्वानौ) श्वन्नुक्षन्पूषन्० उ० १।१५९। टुओश्वि गतिवृद्ध्योः-कनिन्। कुक्कुरौ यथा (अर्वाङ्) अ० ३।२।३। अभिमुखः। समीपस्थः (एहि) आगच्छ (वि) विरुद्धम् (मा दीध्यः) दीधीङ् दीप्तिदेवनयोः-लेट्, अडागमः, परस्मैपदं छान्दसम्। देवनं क्रीडनं मा कार्षीः (अत्र) संसारे (मा तिष्ठः) गतिं निवृत्य मा वर्तस्व (पराङ्मनाः) उन्मनाः ॥
विषय
"श्यामः शबल: च' श्वानौ [यमरूप]
पदार्थ
१. 'अहर्वै शबलो रात्रिः श्यामः' [कौ०२।१] इस वाक्य के अनुसार दिन और रात्रि' ही यम के शबल व श्याम श्वा हैं। हे पुरुष! ये (यौ) = जो (श्यामः च शबल: च) = रात्रि व दिनरूप [श्याम व शबल वर्णवाले] (यमस्य) = सर्वनियन्ता प्रभु के (पथिरक्षी श्वानौ) = मार्गरक्षक श्वा हैं, ये (प्रेषितौ) = भेजे हुए (त्वा) = तुझे (मा) = मत सन्दष्ट करें। दिन व रात्रि हमारे जीवनों को काटते चलते हैं। इसी दृष्टि से इन्हें यमराज के 'श्वा' कहा गया है। ३. हे पुरुष! तू इनसे असन्दष्ट हुआ हुआ (अर्वाड् एहि) = हमारे सामने आनेवाला बन। (मा विदीध्य:) = गये हुए पुरुषों का विलाप ही मत करता रह । सब प्रकार के रोने-पीटने को छोड़कर अपने कर्तव्य-कार्यों को करने के लिए उद्यत हो। (अत्र) = इस जीवन में (पराङ् मना:) = सुदूर गये हुए मनवाला होकर (मा तिष्ठः) = मत स्थित हो। गये हुए पुरुषों का ही राग न अलापता रह। भटकते हुए मन को स्थिर करके कर्तव्य कर्मों में तत्पर हो।
भावार्थ
दिन-रात्रिरूप यमराज के श्वान ही हमें न काटते रहें। इनसे सन्दष्ट हुए-हुए हम मरे हुओं का राग ही न अलापते रहें। न भटकते हुए मनवाले होकर हम अपने कर्तव्यों को करने में तत्पर हों।
भाषार्थ
(यमस्य) यम के (श्वानौ) दो कुत्ते हैं, (श्यामः) काला (च) और (शबलः च) चितकबरा (प्रेषितौ) [ये यम के] भेजे हुए हैं, (यौ) जो दोनों कि (पथिरक्षी) [यम द्वारा दर्शाए] मार्ग में रक्षक हैं, [चौकीदार हैं]। (अर्वाङ) इधर अर्थात् इस आश्रम की ओर (एहि) आ (विदीध्यः मा) विविध पदार्थों का ध्यान न कर या विविध प्रकार की चिन्ताएं न कर, और (अत्र) इस ब्रह्मचर्याश्रम में (पराङ्मनाः) कर्तव्य पराङ्मुख हुआ (मा तिष्ठः) तू बैठा न रह।
टिप्पणी
[यम का अभिप्राय है "नियन्ता परमेश्वर"। इसे "महायम" भी कहा है (अथर्व० १३।४ (१)।५), यह नियन्ता है और सर्वतो महान् है। दो कुत्ते हैं तमोगुण और रजस् तथा तमस् का मिश्रण। "तमस्" श्यामः काला कुत्ता है, और रजस् तमस् का मिश्रण शबल अर्थात् चितकबरा कुत्ता। ये दोनों प्रेयमार्ग के पथिक को प्रेयमार्ग में बान्धे रखते हैं। इन से बचने का उपाय है ब्रह्मचर्य जीवन। दोनों कुत्ते यम द्वारा निर्दिष्ट मार्ग की रक्षा करते हैं, ताकि तमोगुणी की ओर रजस्-तमस् के मिश्रणवाले व्यक्ति की निजकर्मों से बन्धी हुई आत्मा इस मार्ग में रहती हुई, निजकर्मों के फलों को भोग सके]।
विषय
दीर्घजीवन-विद्या
भावार्थ
(श्यामः च) श्याम और (शबलः) शबल, रात और दिन ये दोनों (यमस्य) सर्वनियन्ता परमेश्वर के (प्रेषितौ) भेजे हुए (पथि-रक्षी) जीवन मार्ग की या काल की रक्षा करने वाले (श्वानौ) सदा गतिशील हैं। तू (अर्वाड़) सामने, आगे की ओर (एहि) बढ़ (मा विदीध्यः) विलाप और पछतावा मत कर। (अत्र) इस लोक में (पराङ्मनाः) पूर्व के गुज़रे हुए की चिन्ता करते हुए (मा तिष्ठः) मत बैठ। अहर्वै शवलो रात्रिः श्यामः॥ कौ० २। ९॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। आयुर्देवता। १, ५, ६, १०, ११ त्रिष्टुभः। २,३, १७,२१ अनुष्टुभः। ४,९,१५,१६ प्रस्तारपंक्तयः। त्रिपाद विराड् गायत्री । ८ विराट पथ्याबृहती। १२ त्र्यवसाना पञ्चपदा जगती। १३ त्रिपाद भुरिक् महाबृहती। १४ एकावसाना द्विपदा साम्नी भुरिग् बृहती।
इंग्लिश (4)
Subject
Long Life
Meaning
Let not the dark and the white watch-dogs, the lighted day and the dark night, sent by Yama, lord of mutability and passage of life, arrest you and your progress, they are both guardian path makers too. Come hither, this way to life. Look not, think not, wander not, this way and that around. And do not sit still, idle, absent minded.
Translation
May the black one (Syama) and the brindled (Sabela) one, two dogs guarding the path, sent out by the controller Lord (Yama), not (seize) you. Come (hither) towards us. Do not think much. Stay not here with your mind inclined to the further side. (Syamau - Sabalau) - Rg.
Translation
Let not the black night and white day which are the dog-like life-consuming forces and guarding smooth sailing of the passage of yama, the time and which by the divine power, badly catch hold of you, O man! Proceed forward to catch time and lament not over whatever of it has been spent and do not sit inactive and lamenting.
Translation
Let not the black night and the bright day seize thee, two ever moving warders of thy path of life sent forth by God. Go forward, grieve not. Don’t sit in this world brooding over the past.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(श्यामः) इषियुधीन्धिदसिश्याधूसूभ्यो मक्। उ० १।१४५। श्यैङ् गतौ-मक्। गमनशीलः। प्राणवायुः (च) (त्वा) (मा) निषेधे। त्यजतामिति शेषः (शबलः) शपेर्बश्च। उ० १।१०५। शप गतौ-कल, पस्य बः। गतिमान्। अपानवायुः (च) (प्रेषितौ)) प्रेरितौ। नियोजितौ (यमस्य) नियामकमनुष्यस्य (यौ) प्राणापानौ (पथिरक्षी) छन्दसि वनसनरक्षिमथाम्। पा० ३।२।२७। पथिन्+रक्ष पालने-इन्। मार्गरक्षकौ (श्वानौ) श्वन्नुक्षन्पूषन्० उ० १।१५९। टुओश्वि गतिवृद्ध्योः-कनिन्। कुक्कुरौ यथा (अर्वाङ्) अ० ३।२।३। अभिमुखः। समीपस्थः (एहि) आगच्छ (वि) विरुद्धम् (मा दीध्यः) दीधीङ् दीप्तिदेवनयोः-लेट्, अडागमः, परस्मैपदं छान्दसम्। देवनं क्रीडनं मा कार्षीः (अत्र) संसारे (मा तिष्ठः) गतिं निवृत्य मा वर्तस्व (पराङ्मनाः) उन्मनाः ॥
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