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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 17
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
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    उत्त्वा॒ द्यौरुत्पृ॑थि॒व्युत्प्र॒जाप॑तिरग्रभीत्। उत्त्वा॑ मृ॒त्योरोष॑धयः॒ सोम॑राज्ञीरपीपरन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । त्वा॒। द्यौ: । उत् । पृ॒थि॒वी । उत् । प्र॒जाऽप॑ति: । अ॒ग्र॒भी॒त् । उत् । त्वा॒ । मृ॒त्यो: । ओष॑धय: । सोम॑ऽराज्ञी: । अ॒पी॒प॒र॒न् ॥१.१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्त्वा द्यौरुत्पृथिव्युत्प्रजापतिरग्रभीत्। उत्त्वा मृत्योरोषधयः सोमराज्ञीरपीपरन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । त्वा। द्यौ: । उत् । पृथिवी । उत् । प्रजाऽपति: । अग्रभीत् । उत् । त्वा । मृत्यो: । ओषधय: । सोमऽराज्ञी: । अपीपरन् ॥१.१७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 1; मन्त्र » 17
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य कर्त्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (त्वा) तुझको (द्यौः) सूर्य ने (उत्) ऊपर को, (पृथिवी) पृथिवी ने (उत्) ऊपर को और (प्रजापतिः) प्रजापालक परमेश्वर ने (उत्) ऊपर को (अग्रभीत्) ग्रहण किया है। (त्वा) तुझको (सोमराज्ञीः) सोम [अमृत वा चन्द्रमा] को राजा रखनेवाली (ओषधयः) ओषधियों ने (मृत्योः) मृत्यु से [अलगा कर] (उत्) भली-भाँति (अपीपरन्) पाला है ॥१७॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर, सूर्य और पृथिवी के नियमों को विचार कर अन्न आदि पदार्थ प्राप्त करके प्रसन्न रहें ॥१७॥

    टिप्पणी

    १७−(उत्) ऊर्ध्वम् (त्वा) त्वाम् (द्यौः) प्रकाशमानः सूर्यः (पृथिवी) (प्रजापतिः) प्रजापालको जगदीश्वरः (अग्रभीत्) गृहीतवान् (मृत्योः) मृत्युरूपदुःखात् (ओषधयः) अन्नादिपदार्थाः (सोमराज्ञीः) सोमोऽमृतं चन्द्रो वा राजा यासां ताः (अपीपरन्) पॄ पालनपूरणयोः-लुङ्। अपालयन् ॥

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    विषय

    द्यौः-पृथिवी

    पदार्थ

    १. हे पुरुष! (त्वा) = तुझे (द्यौः)-द्युलोक (उत् अग्रभीत्) = मृत्यु से ऊपर उठाए। धुलोकस्थ सूर्य रोगकृमि-विनाशक किरणों के द्वारा तुझे नीरोगता प्रदान करे । (पृथिवी उत्) = यह पृथिवी तुझे मृत्यु से ऊपर उठाए। (प्रजापतिः) = प्रजाओं का रक्षक प्रभु (उत्) = तुझे मृत्यु से ऊपर उठाए। यह पृथिवी माता तुझे शरीर-धारण के लिए आवश्यक भोजन दे तथा प्रभु का स्मरण तुझे उन भोगों के अति प्रयोग से बचानेवाला हो। २. ये पृथिवी से उत्पन्न होनेवाली (ओषधयः) = ओषधियाँ (त्वा) = तुझे (मृत्योः) = मृत्यु से (उत् अपीपरन्) = ऊपर उठाकर पालन करनेवाली हों। ये ओषधियाँ सोम (राज्ञी:) = [सोमस्य पत्न्यः] सोम की पत्नियाँ हैं-सोम इनका रक्षक है। शरीर में इनके द्वारा उत्पन्न होनेवाला सोम शरीर को दीप्त करनेवाला है [राजु दीप्ती]।

    भावार्थ

    द्युलोकस्थ सूर्य व पृथिवी से उत्पन्न होनेवाले भोज्य पदार्थ हमें मृत्यु से बचाएँ। पृथिवी से उत्पन्न होनेवाली ओषधियों से बननेवाले सोम-कण हमारे जीवन को दीप्त बनाए।

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    भाषार्थ

    (त्वा) तुझे (द्यौः) द्युलोक ने (उदग्रभीत्) समुन्नति के लिये स्वीकृत किया है, अपनाया है, (उत् पृथिवी) पृथिवी ने उन्नति के लिये अपनाया है, (उत् प्रजापतिः अग्रभीत्) प्रजाओं के पति परमेश्वर ने उन्नति के लिये अपनाया है। (त्वा) तुझे (मृत्योः) मृत्यु से [छुड़ा कर] (सोमराज्ञीः) सोम ओषधिप्रधान (ओषधयः) औषधियों ने (अपीपरन्) पालित किया है।

    टिप्पणी

    [अपीपरन्=पॄ पालनपूरणयोः (जुहोत्यादिः, क्र्यादिः)। मृत्योः= आसन्नमृत्यु से, या मूर्च्छा से]।

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    विषय

    दीर्घजीवन-विद्या

    भावार्थ

    (द्यौः) यह महान् आकाश या सूर्य (त्वा) तुझ को (मृत्योः) मृत्यु से (उद् अग्रभीत्) ऊपर उठाये रहे, बचावे। (पृथिवी उत् अग्रभीत्) यह पृथिवी तुझे मृत्यु से बचाये। (प्रजापतिः) प्रजा का स्वामी परमेश्वर (त्वा उत अग्रभीत्) तुझ को बचावे। और (ओषधयः) ये ओषधियां (सोमराज्ञीः) जिनका राजा सोम है अर्थात् जिनमें सबसे अधिक गुणकारी ओषधि सोमलता है, वे (त्वामृत्योः) तुझ को मृत्यु से (उत् अपीपरन्) ऊपर उठावें, बचावें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। आयुर्देवता। १, ५, ६, १०, ११ त्रिष्टुभः। २,३, १७,२१ अनुष्टुभः। ४,९,१५,१६ प्रस्तारपंक्तयः। त्रिपाद विराड् गायत्री । ८ विराट पथ्याबृहती। १२ त्र्यवसाना पञ्चपदा जगती। १३ त्रिपाद भुरिक् महाबृहती। १४ एकावसाना द्विपदा साम्नी भुरिग् बृहती।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life

    Meaning

    May the heaven, earth, and Prajapati, lord sustainer and protector of living beings, take care of you and protect you. And may herbs and herbal medications with life-saving soma on top of them fulfil and exalt you over and above the fear of death.

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    Translation

    May the heaven, may the earth, and may the Lord of creatures raise you up. May the medicines, whose lord is the moon, rescue you from death.

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    Translation

    The heavenly region has raised you from death, the earth and the air have raised you from the destruction, and the herbaceous plants like soma, etc. have rescued you from death.

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    Translation

    May the Sun, the Earth and God save thee from death; May the plants and herbs with Moon as their King rescue thee from death.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १७−(उत्) ऊर्ध्वम् (त्वा) त्वाम् (द्यौः) प्रकाशमानः सूर्यः (पृथिवी) (प्रजापतिः) प्रजापालको जगदीश्वरः (अग्रभीत्) गृहीतवान् (मृत्योः) मृत्युरूपदुःखात् (ओषधयः) अन्नादिपदार्थाः (सोमराज्ञीः) सोमोऽमृतं चन्द्रो वा राजा यासां ताः (अपीपरन्) पॄ पालनपूरणयोः-लुङ्। अपालयन् ॥

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