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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 5
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
    72

    तुभ्यं॒ वातः॑ पवतां मात॒रिश्वा॒ तुभ्यं॑ वर्षन्त्व॒मृता॒न्यापः॑। सूर्य॑स्ते त॒न्वे॒ शं त॑पाति॒ त्वां मृ॒त्युर्द॑यतां॒ मा प्र मे॑ष्ठाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तुभ्य॑म् । वात॑: । प॒व॒ता॒म् । मा॒त॒रिश्वा॑ । तुभ्य॑म् । व॒र्ष॒न्तु॒ । अ॒मृता॑नि । आप॑: । सूर्य॑: । ते॒ । त॒न्वे᳡ । शम् । त॒पा॒ति॒ । त्वाम् । मृ॒त्यु: । द॒य॒ता॒म् । मा । प्र । मे॒ष्ठा॒: ॥१.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तुभ्यं वातः पवतां मातरिश्वा तुभ्यं वर्षन्त्वमृतान्यापः। सूर्यस्ते तन्वे शं तपाति त्वां मृत्युर्दयतां मा प्र मेष्ठाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तुभ्यम् । वात: । पवताम् । मातरिश्वा । तुभ्यम् । वर्षन्तु । अमृतानि । आप: । सूर्य: । ते । तन्वे । शम् । तपाति । त्वाम् । मृत्यु: । दयताम् । मा । प्र । मेष्ठा: ॥१.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य कर्त्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (तुभ्यम्) तेरे लिये (मातरिश्वा) अन्तरिक्ष में चलनेवाला (वातः) वायु (पवताम्) शुद्ध हो, (तुभ्यम्) तेरे लिये (आपः) जलधाराएँ (अमृतानि) अमृत वस्तुएँ (वर्षन्तु) बरसावें। (सूर्यः) सूर्य (ते) तेरे (तन्वे) शरीर के लिये (शम्) शान्ति से (तपाति) तपे, (मृत्युः) मृत्यु (त्वाम्) तुझ पर (दयताम्) दया करे, (मा प्र मेष्ठाः) तू मत दुःखी होवे ॥५॥

    भावार्थ

    पुरुषार्थी मनुष्य को वायु आदि पदार्थ सुखदायी होते हैं, और वह क्लेशों में नहीं पड़ता ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(तुभ्यम्) त्वदर्थम् (वातः) वायुः (पवताम्) शुद्धयतु (मातरिश्वा) अ० ५।१०।८। अन्तरिक्षसंचारी (तुभ्यम्) (वर्षन्तु) सिञ्चन्तु (अमृतानि) मृत्युनिवारकाणि वस्तूनि (आपः) जलधाराः (सूर्यः) (ते) तव (तन्वे) शरीराय (शम्) सुखम् (तपाति) लेटि, आडागमः (त्वाम्) (मृत्युः) (दयताम्) दय रक्षणे। पालयतु। (मा प्र मेष्ठाः) मीङ् हिंसायाम्-लुङ्। एकाच उपदेशेऽनुदात्तात्। पा० ७।२।१–०। इट्प्रतिषेधः। हिंसितो दुःखितो भा भूः ॥

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    विषय

    शुद्ध वायु, पवित्र जल व सूर्यकिरण

    पदार्थ

    १. हे पुरुष! (तुभ्यम्) = तेरे लिए यह (मातरिश्वा) = [मातरि अन्तरिक्षे श्वयति] अन्तरिक्ष में गति करनेवाला (वातः) = वायु (पवताम्) = बहे-पवित्रता करनेवाला हो। (तुभ्यम्) = तेरे लिए (आपः) = जल (अमृतानि वर्षन्तु) = अमृतों का वर्षण करें। ये मेघजल तुझे नीरोगता प्राप्त कराएँ। २. (सूर्यः ते तन्वे शं तपाति) = यह सूर्यदेव तेरे शरीर के लिए सुखकर होकर तपे। (मृत्युः त्वा दयताम्) = यह मृत्यु तेरा रक्षण करे, (मा प्रमेष्ठा:) = तू हिंसित न हो।

    भावार्थ

    'शुद्ध वायु का सेवन, पवित्र मेघ-जलों का ग्रहण व सूर्यकिरणों में निवास' हमें दीर्घजीवन प्राप्त कराएँ।

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    भाषार्थ

    (तुभ्यम्) तेरे लिये (मातरिश्वा) अन्तरिक्षसंचारी (वातः) वायु (पवताम्) प्रवाहित हो (तुभ्यम्) तेरे लिये (आपः) मेघीय-जल (अमृतानि) अमृत वस्तुएं (वर्षन्तु) वर्साएं। (सूर्यः) सूर्य (ते तन्वे) तेरी तनू के लिये (शम्) सुखपूर्वक (तपाति) तपे, (मृत्युः) मृत्यु (त्वां) तेरी (दयताम्) रक्षा करे या तुझ पर दया करे, (मा प्रमेष्ठाः) ताकि तू हिंसित न हो।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में पुरुष के लिये आशीर्वाद का कथन हुआ है। मातरिश्वा= माता अन्तरिक्षम्, निर्मीयन्तेऽस्मिन् भूतानीति व्युत्पत्तेः, तस्मिन् श्वसितीति मातरिश्वा (सायण)। अन्तरिक्षसंचारी वायु स्वास्थ्यकारी होती है। अमृतानि= जल, नानाविध अन्न, फल, सब्जी आदि अमृत वस्तुएं हैं, जिनकी प्राप्ति वर्षा द्वारा होती है। मृत्युः= परमेश्वर (मन्त्र १)। दयताम् = दय दानगतिरक्षणहिंसादानेषु (भ्वादिः) में "दय" का अर्थ "रक्षण" भी है। तपाति = लेट् । मेष्ठाः=मीङ् हिंसायाम्, लुङ]।

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    विषय

    दीर्घजीवन-विद्या

    भावार्थ

    हे जीव ! (तुभ्यं) तेरे लिये (मातरिश्वा) अन्तरिक्ष में गति करने वाला (वातः) वायु (पवताम्) सदा बहता रहे, तू सदा स्वच्छ वायु का सेवन कर। और (तुभ्यम्) तेरे लिये (आपः) जल (अमृतानि) अमृत, जीवन के प्राणरूप सूक्ष्म अंशों को (वर्षन्तु) बरसावें, प्रदान करें, तू स्वच्छ जीवन की वृद्धि करने वाले जलों का पान कर। (ते तन्वे) तेरे शरीर के लिये (सूर्यः) यह सूर्य सब सौर-जगत् का और प्राणियों का प्रेरक (शम्) कल्याणकारी होकर (तपाति) तपे। और (मृत्युः) मृत्यु, शरीर से जीव को पृथक करने वाली शक्ति भी इस प्रकार (त्वां) तेरी (दयताम्) रक्षा करे और तू (मा प्र मेष्ठाः) मत मर, चिरजीवन धारण कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। आयुर्देवता। १, ५, ६, १०, ११ त्रिष्टुभः। २,३, १७,२१ अनुष्टुभः। ४,९,१५,१६ प्रस्तारपंक्तयः। त्रिपाद विराड् गायत्री । ८ विराट पथ्याबृहती। १२ त्र्यवसाना पञ्चपदा जगती। १३ त्रिपाद भुरिक् महाबृहती। १४ एकावसाना द्विपदा साम्नी भुरिग् बृहती।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life

    Meaning

    Let the winds of cosmic energy blow for you. Let the rains bring you nectar showers of immortality, let the sun shine for the health and well being of your person, let death itself be kind and compassionate and spare you from violence and protect you.

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    Translation

    May the wind of the midspace blow clean and pure for you. May the water rain elixir for you. May the Sun shine hot pleasing to your body. May death have mercy on you. May you not die.

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    Translation

    May the wind blowing in the vast space breath pleasure for you, may the waters shower nectar for you, may the sun shine with healing balm on your body, may destruction avoid you and do not depart from this world immaturely.

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    Translation

    O soul, may the wind moving in the atmosphere blow purely for thee, and let waters rain on thee their nectar. The Sun shall shine with efficacy on thy body; Death shall have mercy on thee: don’t die early!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(तुभ्यम्) त्वदर्थम् (वातः) वायुः (पवताम्) शुद्धयतु (मातरिश्वा) अ० ५।१०।८। अन्तरिक्षसंचारी (तुभ्यम्) (वर्षन्तु) सिञ्चन्तु (अमृतानि) मृत्युनिवारकाणि वस्तूनि (आपः) जलधाराः (सूर्यः) (ते) तव (तन्वे) शरीराय (शम्) सुखम् (तपाति) लेटि, आडागमः (त्वाम्) (मृत्युः) (दयताम्) दय रक्षणे। पालयतु। (मा प्र मेष्ठाः) मीङ् हिंसायाम्-लुङ्। एकाच उपदेशेऽनुदात्तात्। पा० ७।२।१–०। इट्प्रतिषेधः। हिंसितो दुःखितो भा भूः ॥

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