अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 19
उत्त्वा॑ मृ॒त्योर॑पीपरं॒ सं ध॑मन्तु वयो॒धसः॑। मा त्वा॑ व्यस्तके॒श्यो॒ मा त्वा॑घ॒रुदो॑ रुदन् ॥
स्वर सहित पद पाठउत् । त्वा॒ । मृ॒त्यो: । अ॒पी॒प॒र॒म् । सम् । ध॒म॒न्तु॒ । व॒य॒:ऽधस॑: । मा । त्वा॒ । व्य॒स्त॒ऽके॒श्य᳡: । मा । त्वा॒ । अ॒घ॒ऽरुद॑: । रु॒द॒न् ॥१.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
उत्त्वा मृत्योरपीपरं सं धमन्तु वयोधसः। मा त्वा व्यस्तकेश्यो मा त्वाघरुदो रुदन् ॥
स्वर रहित पद पाठउत् । त्वा । मृत्यो: । अपीपरम् । सम् । धमन्तु । वय:ऽधस: । मा । त्वा । व्यस्तऽकेश्य: । मा । त्वा । अघऽरुद: । रुदन् ॥१.१९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
[हे पुरुष !] (त्वा) तुझे (मृत्योः) मृत्यु से (उत्) भले प्रकार (अपीपरम्) मैंने बचाया है। (वयोधसः) जीवन धारण करनेवाले पदार्थ (सम्) ठीक-ठीक (धमन्तु) मिलें। (त्वा) तुझको (मा) न तो (व्यस्तकेश्यः) प्रकाश गिरा देनेवाली [विपत्तियां], और (मा) न (त्वा) तुझे (अघरुदः) पाप की पीड़ाएँ (रुदन्) रुलावें ॥१९॥
भावार्थ
मनुष्य विद्वानों द्वारा अज्ञान से बचकर पुरुषार्थ करके विपत्तियों से छूट कर कभी दुःख न उठावें ॥१९॥
टिप्पणी
१९−(उत्) उत्कर्षेण (त्वा) त्वाम् (मृत्योः) दरिद्रतादिक्लेशात् (अपीपरम्) पॄ पालनपूरणयोः-लुङ्। रक्षितवानस्मि (सम्) सम्यक् (धमन्तु) गच्छन्तु-निघ० २।१४। प्राप्नुवन्तु (वयोधसः) जीवनधारकाः पदार्थाः (मा) निषेधे (त्वा) (व्यस्तकेश्यः) वि+असु क्षेपणे-क्त+काशृ दीप्तौ-घञ्। आकारस्य एकारः। स्वाङ्गाच्चोपसर्जनादसंयोगोपधात्। पा० ४।१।५४। इति ङीप्। केशी केशा रश्मयस्तैस्तद्वान् भवति काशनाद्वा प्रकाशनाद्वा-निरु० १२।२५। व्यस्तः केशः प्रकाशो याभिस्ताः। नाशितप्रकाशाः (त्वा) (अघरुदः) रुदेः क्विप्। अघस्य रुदः। पापपीडाः (मा रुदन्) रुदिर् अश्रुविमोचने-लुङ्। अन्तर्गतण्यर्थः। मा रूरुदन्। मा रोदयन्तु ॥
विषय
अकालमृत्यु पर रोदन
पदार्थ
१. हे आयुष्काम पुरुष! (त्वा) = तुझे (मृत्योः उत् अपीपरम्) = मृत्यु से ऊपर उठाता हूँ, उचित उपायों के द्वारा तुझे मृत्यु से बचाता हूँ। (वयोधस:) = उत्तम अन्न व आयुष्य को धारण करनेवाले देव (सं धमन्तु) = [धयतिर्गतिकर्मा-नि०२।१४] तेरे सब अङ्ग-प्रत्यङ्गों को ठीक से संगत करें। २. असमय में मृत्यु के कारण (व्यस्तकेश्य:) = बिखरे हुए बालोंवाली बन्धु-योषाएँ [स्त्रियाँ] (त्वा मा रुदन्) = तेरा रोना न रोएँ तथा (अघरुदः) = मृत्युरूप व्यसन के कारण रोनेवाले ये बान्धव (त्वा मा) [रुदन्] = तेरी मृत्यु पर रोनेवाले न बनें। असमय की मृत्यु रोदन का कारण बनती ही है।
भावार्थ
हम अकाल मृत्यु से न मरें, जिससे बन्धु-बान्धवों को हमारी मृत्यु पर रोना धोना न पड़े।
भाषार्थ
(त्वा) तुझे (मृत्योः) मृत्यु से (उत् अपीपरम्) मैंने पार कर दिया है, (वयोधसः) आयु को धारण कराने वाली धमनियां (स धमन्तु) सब धड़कने लगें (व्यस्तकेश्यः) बिखरे केशों वाली स्त्रियाँ (त्वा) तुझे लक्षित कर (म रुदन्) न रोएं, (अधरुदः) व्यसन अर्थात् दुःख आने पर रोदन करने वाले अन्य बन्धुजन (त्वा) तुझे लक्षित करके (मा रुदन्) न रोएं।
टिप्पणी
[सं धमन्तु= सम् + ध्मा शब्दाग्निसंयोगयोः (भ्वादिः)। यहाँ शब्द अर्थात् धमनियों का धड़कना अभिप्रेत है]।
विषय
दीर्घजीवन-विद्या
भावार्थ
हे पुरुष ! मैं विद्वान् या ईश्वर (मृत्योः) मृत्यु के पास से (त्वा) तुझको (उत् अपीपरम्) ऊपर करता हूँ। (वयोधसः) अन्न, आयु का धारण और प्रदान करने वाले लोग तुझको पुष्ट करें। (व्यस्त-केश्यः) स्त्रियें बाल खोल खोल कर तेरे लिए (मा रुदन्) न रोया करें, और (अघ-रुदः) बुरी तरह से रोने वाले बन्धुजन भी (त्वा) तेरे लिये (मा रुदन्) न रोवें। अर्थात तू पूर्ण आयु होकर वृद्ध दशा में शरीर छोड़। इससे किसी के विलाप-दुःख का तू कारण न होगा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। आयुर्देवता। १, ५, ६, १०, ११ त्रिष्टुभः। २,३, १७,२१ अनुष्टुभः। ४,९,१५,१६ प्रस्तारपंक्तयः। त्रिपाद विराड् गायत्री । ८ विराट पथ्याबृहती। १२ त्र्यवसाना पञ्चपदा जगती। १३ त्रिपाद भुरिक् महाबृहती। १४ एकावसाना द्विपदा साम्नी भुरिग् बृहती।
इंग्लिश (4)
Subject
Long Life
Meaning
I have protected you against death. May the bearers of health and age together act, and nourish and exalt you. Let no mourners with hair dishevelled wail for you. Let no grief stricken sufferers wail for you.
Translation
I have rescued you from death. May the life-bestowers blow you. May not womenfolk with dishevelled hair, nor the wailers for the dead; wail for you.
Translation
O ailing man ! I, the physician, raise you from the death. Let the forces giving vigor strengthen and protect you. Let not the women with wild loose locks weep for you and let not the badly wailing persons cry for you.
Translation
O men, I have delivered thee from death. May thou get life-infusing objects. Let not the females with wild loose locks, and thy relatives deeply mourn over thy death.
Footnote
I' refers to God, or a learned person. A man should not die before the attainment of full age of hundred years, so that his relatives may not weep over his premature death.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१९−(उत्) उत्कर्षेण (त्वा) त्वाम् (मृत्योः) दरिद्रतादिक्लेशात् (अपीपरम्) पॄ पालनपूरणयोः-लुङ्। रक्षितवानस्मि (सम्) सम्यक् (धमन्तु) गच्छन्तु-निघ० २।१४। प्राप्नुवन्तु (वयोधसः) जीवनधारकाः पदार्थाः (मा) निषेधे (त्वा) (व्यस्तकेश्यः) वि+असु क्षेपणे-क्त+काशृ दीप्तौ-घञ्। आकारस्य एकारः। स्वाङ्गाच्चोपसर्जनादसंयोगोपधात्। पा० ४।१।५४। इति ङीप्। केशी केशा रश्मयस्तैस्तद्वान् भवति काशनाद्वा प्रकाशनाद्वा-निरु० १२।२५। व्यस्तः केशः प्रकाशो याभिस्ताः। नाशितप्रकाशाः (त्वा) (अघरुदः) रुदेः क्विप्। अघस्य रुदः। पापपीडाः (मा रुदन्) रुदिर् अश्रुविमोचने-लुङ्। अन्तर्गतण्यर्थः। मा रूरुदन्। मा रोदयन्तु ॥
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