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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 20
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
    43

    आहा॑र्ष॒मवि॑दं त्वा॒ पुन॒रागाः॒ पुन॑र्णवः। सर्वा॑ङ्ग॒ सर्वं॑ ते॒ चक्षुः॒ सर्व॒मायु॑श्च तेऽविदम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । अ॒हा॒र्ष॒म् । अवि॑दम् । त्वा॒ । पुन॑: । आ । अ॒गा॒: । पुन॑:ऽनव: । सर्व॑ऽअङ्ग । सर्व॑म् । ते॒ । चक्षु॑: । सर्व॑म् । आयु॑: । च॒ । ते॒ । अ॒वि॒द॒म् ॥१.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आहार्षमविदं त्वा पुनरागाः पुनर्णवः। सर्वाङ्ग सर्वं ते चक्षुः सर्वमायुश्च तेऽविदम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । अहार्षम् । अविदम् । त्वा । पुन: । आ । अगा: । पुन:ऽनव: । सर्वऽअङ्ग । सर्वम् । ते । चक्षु: । सर्वम् । आयु: । च । ते । अविदम् ॥१.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 1; मन्त्र » 20
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य कर्त्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्य !] (त्वा) तुझको (आ अहार्षम्) मैंने ग्रहण किया है और (अविदम्) पाया है, तू (पुनर्णवः) नवीन होकर (पुनः) फिर (आ अगाः) आया है। (सर्वाङ्ग) हे सम्पूर्ण [विद्या के] अङ्गवाले (ते) तेरे लिये (सर्वम्) सम्पूर्ण (चक्षः) दर्शनसामर्थ्य (च) और (ते) तेरे लिये (सर्वम्) सम्पूर्ण (आयुः) आयु (अविदम्) मैंने पायी है ॥२०॥

    भावार्थ

    जिस पुरुष को आचार्य स्वीकार करके विद्यादान देकर द्विजन्मा बनाता है, वह सब प्रकार विद्या से प्रकाशित होकर उत्तम जीवनयुक्त होता है ॥२०॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।१६१।५ ॥

    टिप्पणी

    २०−(आ) समन्तात् (अहार्षम्) स्वीकृतवानस्मि (अविदम्) लब्धवानस्मि। (त्वा) ब्रह्मचारिणम् (पुनः) विद्याप्राप्त्यनन्तरम् (आ अगाः) आगतवानसि (पुनर्णवः) विद्यया नवीनजीवनः सम् (सर्वाङ्ग) प्राप्तविद्यासम्पूर्णाङ्ग (सर्वम्) सम्पूर्णम् (ते) तुभ्यम् (चक्षुः) दर्शनसामर्थ्यम् (आयुः) जीवनम्। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    पुनः नवः

    पदार्थ

    १. हे मृत्युग्नस्त पुरुष! (आहार्ष त्वा) = मैं तुझे मृत्यु के मुख से बाहर ले-आया हूँ। मृत्युमुख से ऊपर उठाकर मैंने (अविदम्) = तुझे पाया है। (पुनः आगा:) = तू पुन: हमारे बीच में आ गया है। (पुनः नवः) = तू फिर नवीन हो उठा है-तूने नवजीवन पाया है। २.हे (सर्वाङ्ग) = सब स्वस्थ अङ्गोंवाले पुरुष! (ते सर्व चक्षुः) = तेरी पूर्ण स्वस्थ चक्षु को-पूर्ण स्वस्थ इन्द्रियों को (च) = तथा (सर्वं आयुः अविदम्) = शतसवंत्सरलक्षण-पूर्ण जीवन को मैंने पाया है।

    भावार्थ

    हम रोगों से ऊपर उठकर पूर्ण स्वस्थ इन्द्रियोंवाले व पूर्ण शतसंवत्सरमित जीवनवाले हों।

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    भाषार्थ

    (त्वा) तुझे (आहार्षम्) मैंने मृत्यु से छीन लिया है, (अविदम्) और तुझें प्राप्त कर लिया है, (पुनः) फिर तू (आ अगः) आ गया है, (पुनर्णवः) फिर तुझे नया जीवन प्राप्त हुआ है। (सर्वाङ्ग) हे सब अङ्गों वाले ! (ते) तुझे (चक्षुः) चक्षु आदि (सर्वम्) सर्व इन्द्रियां (च) और (सर्वं आयुः) सम्पूर्ण आयु (अविदम) मैंने प्राप्त करादी है।

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    विषय

    दीर्घजीवन-विद्या

    भावार्थ

    हे पुरुष ! जीव ! (आ अहार्षम्) मैं परमेश्वर तुझ को इस शरीर में प्राप्त कराता हूँ। और (त्वा अविदम्) तुझको स्वयं लिए रहता हूँ या तेरी खबर रखता हूँ। तू इस शरीर में (पुनः आगाः) बार बार आता है। और (पुनः नवः) पुनः पुनः नया होता है। हे (सर्वाङ्ग) समस्त अंगों से युक्त पुरुष ! (ते) तेरी (सर्वम्) समस्त (आयुः च) आयु (ते) तुझे (अविदम्) प्राप्त कराता हूं। ईश्वर हमें इस देह में लाता हमारी खबर रखता है, जीवन के योग्य सब पदार्थ देता है, हम सदा नये होकर उत्पन्न होते हैं और शरीर को भी प्रति-दिन वह नया बनाये रखता है, हमें इन्द्रियें ज्ञान प्राप्त करने के लिए देता है और वह दीर्घ जीवन का प्रदान करता है।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘आहार्षत्वाविदं त्वा पुनरागाः पुनर्नवः’ इति ऋ०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। आयुर्देवता। १, ५, ६, १०, ११ त्रिष्टुभः। २,३, १७,२१ अनुष्टुभः। ४,९,१५,१६ प्रस्तारपंक्तयः। त्रिपाद विराड् गायत्री । ८ विराट पथ्याबृहती। १२ त्र्यवसाना पञ्चपदा जगती। १३ त्रिपाद भुरिक् महाबृहती। १४ एकावसाना द्विपदा साम्नी भुरिग् बृहती।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Long Life

    Meaning

    I have brought you back from the jaws of calamity. I have regained you. You have come back, renewed, refreshed. I have recovered you whole in body and health, all your eye sight, all your health and age in full I have recovered for you.

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    Translation

    I have snatched you (from death). I have got you back. You have come again, new again. O whole-limbed person, I have restored to you all your vision and all your lifespan.

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    Translation

    O ailing man ! I, the physician have captured your all and have attained you again, you have returned and restored to youth, I have found you perfect in your all the limbs, in all your sight and in all your life.

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    Translation

    O soul, I bring thee unto this body. I look after thee. Thou assumest body again and again, and art born a new. Perfect in body: so have 1 restored all thy sight, and all thy life.

    Footnote

    I' refers to God. All thy sight: All thy organs. All thy life: Full life of one hundred years.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २०−(आ) समन्तात् (अहार्षम्) स्वीकृतवानस्मि (अविदम्) लब्धवानस्मि। (त्वा) ब्रह्मचारिणम् (पुनः) विद्याप्राप्त्यनन्तरम् (आ अगाः) आगतवानसि (पुनर्णवः) विद्यया नवीनजीवनः सम् (सर्वाङ्ग) प्राप्तविद्यासम्पूर्णाङ्ग (सर्वम्) सम्पूर्णम् (ते) तुभ्यम् (चक्षुः) दर्शनसामर्थ्यम् (आयुः) जीवनम्। अन्यद् गतम् ॥

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