Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 4/ मन्त्र 4
    सूक्त - चातनः देवता - इन्द्रासोमौ, अर्यमा छन्दः - जगती सूक्तम् - शत्रुदमन सूक्त

    इन्द्रा॑सोमा व॒र्तय॑तं दि॒वो व॒धं सं पृ॑थि॒व्या अ॒घशं॑साय॒ तर्ह॑णम्। उत्त॑क्षतं स्व॒र्यं पर्व॑तेभ्यो॒ येन॒ रक्षो॑ वावृधा॒नं नि॒जूर्व॑थः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑सोमा । व॒र्तय॑तम् । दि॒व: । व॒धम् । सम् । पृ॒थि॒व्या: । अ॒घऽशं॑साय । तर्ह॑णम् । उत् । त॒क्ष॒त॒म् । स्व॒र्य᳡म् । पर्व॑तेभ्य: । येन॑ । रक्ष॑: । व॒वृ॒धा॒नम् । नि॒ऽजूर्व॑थ: ॥४.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रासोमा वर्तयतं दिवो वधं सं पृथिव्या अघशंसाय तर्हणम्। उत्तक्षतं स्वर्यं पर्वतेभ्यो येन रक्षो वावृधानं निजूर्वथः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रासोमा । वर्तयतम् । दिव: । वधम् । सम् । पृथिव्या: । अघऽशंसाय । तर्हणम् । उत् । तक्षतम् । स्वर्यम् । पर्वतेभ्य: । येन । रक्ष: । ववृधानम् । निऽजूर्वथ: ॥४.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 4; मन्त्र » 4

    पदार्थ -

    १.हे (इन्द्रासोमा) = जितेन्द्रियता व सौम्यता के भावो! [इन्द्र-राजा, सोमः-न्यायाधीश] जितेन्द्रिय राजन् व सौम्य न्यायाधीश! आप दोनों (दिवः) = मस्तिष्करूप धुलोक से-ज्ञान से (वधम्) = पापी के विनाशक आयुध को (वर्तयतम्) = प्रवृत्त करो। इसप्रकार ज्ञानपूर्वक दण्ड दो कि पापी की पापवृत्ति नष्ट हो जाए। (पृथिव्या:) = पृथिवी से ऐसे आयुध को (सम्) [वर्तयतम्] = उत्पन्न करो जोकि (अघशंसाय) = पाप का शंसन करनेवाले के लिए (तर्हणम्) = विनाशक हो। पार्थिव अस्त्रों से-तलवार आदि से शत्रु का विनाश किया जाए। २. (पर्वतेभ्य:) = पर्ववान् मेघों से (स्वर्यम्) = शब्दपूर्वक सन्तप्त करनेवाली विद्युत् = शक्ति से उत्पन्न शस्त्र को (उत्तक्षतम्) = बनाओ, (येन) = जिससे कि (वावृधानम्) = दुष्टता में बहुत बढ़ते हुए (रक्ष:) = राक्षसीवृत्ति के पुरुष को (निजूर्वथ:) = आप हिसित कर दें।

    भावार्थ -

    पापी को ज्ञान के अस्त्र से विनष्ट किया जाए-समझाकर उसके पाप को दूर किया जाए। ऐसा न होने पर पार्थिव अस्त्रों से दण्डित कर उसे पाप-निवृत्ति के लिए प्रेरित किया जाए। विवशता में विधत-शस्त्र से [electric chair पर बिठाकर] उसे समाप्त कर दिया जाए।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top