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  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 11
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - वसन्तादयो देवताः छन्दः - स्वराड बृहती स्वरः - मध्यमः
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    धू॒म्रान् व॑स॒न्तायाल॑भते श्वे॒तान् ग्री॒ष्माय॑ कृ॒ष्णान् व॒र्षाभ्यो॑ऽरु॒णाञ्छ॒रदे॒ पृष॑तो हेम॒न्ताय॑ पि॒शङ्गा॒ञ्छिशि॑राय॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धू॒म्रान्। व॒स॒न्ताय॑। आ। ल॒भ॒ते॒। श्वे॒तान्। ग्री॒ष्माय॑। कृ॒ष्णान्। व॒र्षाभ्यः॑। अ॒रु॒णान्। श॒रदे॑। पृष॑तः। हे॒म॒न्ताय॑। पिशङ्गा॑न्। शिशि॑राय ॥११ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धूम्रान्वसन्तायालभते श्वेतान्ग्रीष्माय कृष्णान्वर्षाभ्योरुणाञ्छरदे पृषतो हेमन्ताय पिशङ्गाञ्छिशिराय ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    धूम्रान्। वसन्ताय। आ। लभते। श्वेतान्। ग्रीष्माय। कृष्णान्। वर्षाभ्यः। अरुणान्। शरदे। पृषतः। हेमन्ताय। पिशङ्गान्। शिशिराय॥११॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 11
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    भावार्थ -
    ( वसन्ताय ) वसन्त ऋतु के लिये (धूम्रान् ) धुमेले रंग के वस्त्रादि को (आलभते ) प्राप्त करे । ( ग्रीष्माय चेतान् ) ग्रीष्म काल के लिये श्वेत वस्त्रों का उपयोग करे । (वर्षाभ्यः कृष्णान् ) वर्षा काल के लिये काले या नीले रंग के वस्त्रों का उपयोग करें । (अरुणान् शरदे) शरद् काल के लिये लाल रंग के वस्त्रों का उपयोग करे । (पृषत: हेमन्ताय ) नाना वर्ण के चिकनेदार अथवा मोटे वस्त्रों को हेमन्त काल में उपयोग करे (पिशङ्गान् शिशिराय) पीले वसन्ती रंग के वस्त्रों का उपयोग शिशिर ऋतु के लिये करे । विशेष ऋतु में विशेष रंग के वस्त्रों तथा अन्य पदार्थो के उपयोग से प्राकृतिक लाभ और चित्तप्रसाद और स्वास्थ्य उत्पन्न होता है। ऋतुभेद से जिस प्रकार मेघों का वर्णभेद है उसी प्रकार सदस्यों के भेद से राजा के कर्त्तव्यों का भेद है। जैसे बसन्त के निमित्त धूमाकार मेघों को प्राप्त करता है। ग्रीष्म में श्वेत मेघों को, वर्षा में काले, शरद मैं सायं समय में लाल, हेमन्त में कई रंग के और शिशिर के लिये पीले मेघों को प्राप्त करते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अग्न्यादयो देवताः । विराड् बृहती । मध्यमः ॥

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