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  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 30
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - प्रजापत्यादयो देवताः छन्दः - निचृदतिधृतिः स्वरः - षड्जः
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    प्र॒जाप॑तये च वा॒यवे॑ च गोमृ॒गो वरु॑णायार॒ण्यो मे॒षो य॒माय॒ कृष्णो॑ मनुष्यरा॒जाय॑ म॒र्कटः॑ शार्दू॒लाय॑ रो॒हिदृ॑ष॒भाय॑ गव॒यी क्षि॑प्रश्ये॒नाय॒ वर्त्ति॑का॒ नील॑ङ्गोः॒ कृमिः॑ समु॒द्राय॑ शिशु॒मारो॑ हि॒मव॑ते ह॒स्ती॥३०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। च॒। वा॒यवे॑। च॒। गो॒मृ॒ग इति॑ गोऽमृ॒गः। वरु॑णाय। आ॒र॒ण्यः। मे॒षः। य॒माय॑। कृष्णः॑। म॒नु॒ष्य॒रा॒जायेति॑ मनुष्यऽरा॒जाय॑। म॒र्कटः॑। शा॒र्दू॒लाय॑। रो॒हित्। ऋ॒ष॒भाय॑। ग॒व॒यी। क्षि॒प्र॒श्ये॒नायेति॑ क्षिप्रऽश्ये॒नाय॑। वर्त्ति॑का। नील॑ङ्गोः। कृमिः॑। स॒मु॒द्राय॑। शि॒शु॒मार॒ऽइति॑ शिशु॒ऽमारः॑। हि॒मवत॒ऽइति॑ हि॒मऽव॑ते। ह॒स्ती ॥३० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रजापतये च वायवे च गोमृगो वरुणायारण्यो मेषो यमाय कृष्णो मनुष्यराजाय मर्कटः शार्दूलाय रोहिदृषभाय गवयी क्षिप्रश्येनाय वर्तिका नीलंगोः कृमिः समुद्राय शिशुमारो हिमवते हस्ती ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्रजापतय इति प्रजाऽपतये। च। वायवे। च। गोमृग इति गोऽमृगः। वरुणाय। आरण्यः। मेषः। यमाय। कृष्णः। मनुष्यराजायेति मनुष्यऽराजाय। मर्कटः। शार्दूलाय। रोहित्। ऋषभाय। गवयी। क्षिप्रश्येनायेति क्षिप्रऽश्येनाय। वर्त्तिका। नीलङ्गोः। कृमिः। समुद्राय। शिशुमारऽइति शिशुऽमारः। हिमवतऽइति हिमऽवते। हस्ती॥३०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 30
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    भावार्थ -
    ( प्रजापतये वायवे च ) प्रजा के पालक और वायु के समान वेग से जाने के लिये (गोमृगः) गवय अनुकरण करने योग्य है । (वरुगाय ) शत्रु के वारण करने के लिये (आचण्यः मेषः) जंगली मेढ़ा अनुकरणी है । अर्थात् शत्रु रणार्थं वीर मेढ़े के समान शत्रु से टक्कर ले | और (यमाय कृष्णः ) यम, नियमपालक ब्रह्मचारी के लिये (कृष्ण) कृष्ण- मेष अनुकरणी है, वह उसके समान हृष्ट पुष्ट हो । (मनुष्यराजाय मर्कटः) - मनुष्य स्वभाव के राजा के लिये वानर का दृष्टान्त समझे । अर्थात् मनुष्य स्वभाव के राजा वानर के समान चपल, क्रोधी अथवा वे उनके समान दिखावटी क्रोध के हों । भीतर से वे क्रोध न करें। ( शार्दूलाय रोहित् ) जिस प्रकार सिंह के लिये एक मृग पर्याप्त होता है उसी प्रकार शार्दूल के समान वीर पराक्रमी के लिये ( रोहित् ) वृद्धिशील प्रजा प्राप्त हो (ऋषभाय गवयी) जिस प्रकार बैल को भोग के लिये गौ प्राप्त होती है उसी प्रकार नरश्रेष्ठ को यह पृथिवी भोग के लिये प्राप्त हो । (क्षप्रश्येनाय वर्त्तिका) जिस प्रकार वेग से झटपने वाले बाज को (वर्त्तिका) बटेरी शिकार में प्राप्त होती है । उसी प्रकार वेग़ से परराष्ट्र पर आक्रमण करने में समर्थ वीर पुरुष को भी (वर्त्तिका) राज्य से वृत्ति प्राप्त हो (नीलंगो: कृमि:) नीड़ में बैठने वाले विशेष छोटी जाति के पक्षी को जिस प्रकार भोजन के लिये ( कृमि:) कृमि प्राप्त होता है उसी प्रकार 'नीड़' अर्थात् आश्रय रक्षास्थान में बैठे पुरुष को उसके कर्म का फल प्राप्त हों । (समुद्वाय शिशुमारः) समुद्र में जिस प्रकार 'शिशुमार' नाम घड़ियाल रहते हैं । उसी प्रकार ऐश्वर्य के समुद्र राजा के पास घ परशत्रु की लक्ष्मी को बल से खींच लाने वाले विजयी पुरुष हों । (हिमवते हस्ती) जिस प्रकार विशालकाय हाथी हिमवान् पर्वत का आश्रय लेता है उसी प्रकार हिमालय के समान उन्नत पुरुष के अधीन नर-कुंजर प्राप्त हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - प्रजापत्यादयः । निचृदतिधृतिः । षड्जः ॥

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