Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 37
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - अर्द्धमासादयो देवताः छन्दः - भुरिग्जगती स्वरः - निषादः
    1

    अ॒न्य॒वा॒पोऽर्द्धमा॒साना॒मृश्यो॑ म॒यूरः॑ सुप॒र्णस्ते ग॑न्ध॒र्वाणा॑म॒पामु॒द्रो मा॒सान् क॒श्यपो॑ रो॒हित् कु॑ण्डृ॒णाची॑ गो॒लत्ति॑का॒ तेऽप्स॒रसां॑ मृ॒त्यवे॑ऽसि॒तः॥३७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒न्य॒वा॒प इत्य॑न्यऽवा॒पः। अ॒र्द्ध॒मा॒साना॒मित्य॑र्द्धऽमा॒साना॑म्। ऋश्यः॑। म॒यूरः॑। सु॒प॒र्ण इति॑ सुऽप॒र्णः। ते। ग॒न्ध॒र्वाणा॑म्। अ॒पाम्। उ॒द्रः। मा॒सान्। क॒श्यपः॑। रो॒हित्। कु॒ण्डृ॒णाची॑। गो॒लत्ति॑का। ते। अ॒प्स॒रसा॑म्। मृ॒त्यवे॑। अ॒सि॒तः ॥३७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अन्यवापोर्धमासानामृश्यो मयूरः सुपर्णस्ते गन्धर्वाणामपामुद्रो मासाङ्कश्यपो रोहित्कुण्डृणाची गोलत्तिका ते प्सरसाम्मृत्यवे सितः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अन्यवाप इत्यन्यऽवापः। अर्द्धमासानामित्यर्द्धऽमासानाम्। ऋश्यः। मयूरः। सुपर्ण इति सुऽपर्णः। ते। गन्धर्वाणाम्। अपाम्। उद्रः। मासान्। कश्यपः। रोहित्। कुण्डृणाची। गोलत्तिका। ते। अप्सरसाम्। मृत्यवे। असितः॥३७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 37
    Acknowledgment

    भावार्थ -
    ( अन्यवाप: अर्धमासानाम् ) स्वक्षेत्र में दूसरों द्वारा बीज- वपन केवल ( अर्धमासानाम् ) आधे मास, ऋतुकाल- मात्र के लिये हो । उसके अतिरिक्त समय में नियुक्त पुरुष का क्षेत्र से कोई सम्बन्ध नहीं । प्रकार 'अन्यवाप' अर्थात् दूसरे के बीज से उत्पन्न कोयल का काक से पालनमात्र का सम्बन्ध है बाद में वह पुनः कोयल का ही बच्चा कहाता है इसी प्रकार असमर्थ पुरुष की स्त्री में अन्य वीर्य द्वारा उत्पादित नियोगज पुत्रों का भी वीर्यसेक्ता के साथ केवल ऋतुकाल के १५ दिनों के संगमात्र का सम्बन्ध है । उसके अतिरिक्त वे पुत्र स्त्री के पाणिगृहीता पति के ही कहाते हैं । (ऋष्यः मयूरः सुपर्णः ते गन्धर्वाणाम् ) ऋष्य नामक मृग जो गान पर मुग्ध हो जाता है 'मयूरः' मोर जो मधुर षड्ज स्वर का आलाप करता है 'सुपर्ण:' हंस ये गन्धर्व अर्थात् गान-विद्या के विशेष- विशेष पुरुषों के लिये स्वर - निर्णय में अनुकरणीय हैं । ऋष्य मृग का स्वर ऋषभ, मयूर का षड्ज और हंस का पञ्चम है । (अपाम् उद्रः) 'उद्र' अर्थात् उदक में रमण करनेहारे कर्कट नाम जीव का अनुकरण करके ( अपाम् ) जलों के विहार करने के साधन तैयार करें। (कश्यपः) सर्वप्रकाशक सूर्य ( मासान् ) १२ मासों का उत्पादक है । ( रोहित कुण्डणाची गोलत्तिका ते अप्सरसाम् ) रोहित, कुण्डणाची और गोलत्तिका ये तीन पशुजातियां स्त्री स्वभाव वाले दृष्टान्त हैं । १. 'रोहित' पुरुष का सङ्ग लाभ कर पुत्र सन्तानादि से फूलती फलती हैं, वह लता स्वभाव की हैं जो पुरुष का आश्रय करके रहती हैं। दूसरी (कुण्डुणाची) दाह या कामनावश पुरुष के पास आती हैं। तीसरी 'गोलत्तिका' अर्थात् गोरतिका, गौ के स्वभाव की, अन्न वस्त्र ही से संतोष करने वाली, अथवा गौ, इन्द्रियों को सुख देने वाली, रतिप्रदा । कदाचित् कामशास्त्र की दृष्टि से रोहित = मृगी । कुण्डुणाची = हस्तिनी और गोलत्तिका = चित्रिणी हों । (असितः) बन्धनरहित जीव (मृत्यवे) मृत्यु अर्थात् शरीर त्याग के वश होता है । अर्थात् मृत्यु का स्वरूप देहबन्धन से छूटना है । अथवा (असितः) कृष्ण, पापी बन्धनरहित, निर्मर्याद पुरुष (मृत्यवे) मृत्युदण्ड के योग्य है । कृष्ण सर्प का विष मृत्युकारक होता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अधमासादयः । भुरिंग जगती । निषादः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top